Saturday, January 2, 2010

एक बच्चे का आनंद

विनय बिहारी सिंह

आज घर से आफिस आते वक्त एक अद्भुत दृश्य देखा। इस घनघोर ठंड में एक पांच साल का बच्चा फुटपाथ पर पानी भरे टब में बैठ कर नहा रहा था। टब का पानी एक छोटे से प्लास्टिक के मग से अपने सिर पर डालते हुए वह अत्यंत आनंद महसूस कर रहा था। उसे नहाते देखने के लिए मुझे थोड़ी देर के लिए रुक जाना पड़ा। वह जब भी सिर पर पानी डाल रहा था, उसके चेहरे पर चरम आनंद का भाव आ जाता था। क्या दृश्य था। उसके आनंद से मैं खुद आनंदित हुआ। ऐसा ही एक दृश्य चार दिन पहले देखने को मिला। एक मां घर का अत्यंत आवश्यक कार्य निबटा रही थी। उसे सांस लेने की फुरसत नहीं थी। लेकिन उसका छोटा सा बच्चा मां के साथ खेलना चाहता था। उस घर में अत्यंत आग्रह से चाय पर मैं आमंत्रित था। बच्चा बार- बार मां से खेलने की जिद कर रहा था और मां बार- बार बच्चे की जिद को टाल रही थी। अचानक बच्चा उठा और मां के गाल पर अत्यंत प्यार से चुंबन दे दिया। आह, मां के चेहरे का आनंद तो देखते बन रहा था। मां की आंखें आनंदातिरेक में बंद हो गईं। उसके हाथ में जो काम था वह छूट गया। मां ने बच्चे को झपट कर गोद में ले लिया और उसे चुंबन देते हुए उसके साथ खेलने लगी। बच्चा बार- बार खिलखिलाने लगा। उसी मां को मेरे लिए चाय बनानी थी। कुछ देर बच्चे के साथ खेल लेने के बाद मां बोली- सॉरी, आपके चाय में विलंब हो गया। मैंने कहा- कैसा विलंब? जो दृश्य देख रहा हूं, उसकी तुलना चाय से करके क्यों आनंद को सीमित कर रही हैं आप। लेकिन वे नहीं मानीं। बच्चे को ही लिए हुए उन्होंने चाय बनाई और जलपान की कई और वस्तुएं मेरे सामने रख दीं। मेरे लिए बच्चे का यह दृश्य इतना सुखद था कि जलपान के दौरान मैं उसी में खोया रहा। मुझे कई बार लगा कि यह मां जगन्माता का ही रूप है। जैसे हम सब उसके बच्चे हैं और हमारी छोटी- मोटी गलतियों को जगन्माता माफ कर देती हैं, ठीक उसी तरह यह मां भी है। और अगर हम जगन्माता (मां काली, दुर्गा, सरस्वती या पार्वती, राधा या सीता जी वगैरह जगन्माता के ही रूप हैं। जगन्माता एक ही हैं, उनके रूप अलग- अलग हैं।) से प्यार करें और उसका ध्यान अपनी ओर खींचें तो वह भी हमें प्यार करेगी। पश्चिम बंगाल के रामप्रसाद के बारे में मैंने पिछले दिनों इसी जगह चर्चा की थी। वे तो कहते थे कि हर सांस ही जगन्माता के नाम है। और जगन्माता भी उनसे खूब प्यार करती थीं। वे जो चाहते थे उन्हें मिल जाता था। लेकिन मजे की बात यह है कि वे कोई भी भौतिक वस्तु चाहते ही नहीं थे। बस वे कहते थे- मां मुझे तो बस तुम्हारा प्यार चाहिए। मुझे इस योग्य बना दो कि मैं जब चाहूं, तुम्हारा दर्शन कर सकूं। तुमसे सीधे बातचीत कर सकूं। और यह सुविधा उन्हें प्राप्त थी।