Wednesday, January 20, 2010

वसंत पंचमी और मां सरस्वती



विनय बिहारी सिंह


आज वसंत पंचमी पर बात की जाए। चार भुजाओं वाली मां सरस्वती को श्वेत वस्त्रों में हाथ में वीणा लिए हुए दिखाया गया है। ये चार भुजाएं चार वेदों की प्रतीक हैं। ये चार भुजाएं मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार पर नियंत्रण की भी प्रतीक हैं। वीणा दिव्य संगीत या ऊं का प्रतीक है। सरस्वती बुद्धि की देवी हैं, ग्यान की देवी हैं। विभिन्न प्रकार की कलाओं की देवी हैं- चाहे वह पेंटिंग हो या नृत्य, संगीत। उनकी सवारी हंस है। हंस के बारे में आध्यात्मिक व्याख्या है कि वह दूध और पानी को अलग कर देता है। यानी सार तत्व को ही ग्रहण करता है। ऐसा प्राणी मां सरस्वती का वाहन है। और हंस का रंग भी सफेद है। सफेद रंग शांति का प्रतीक है। गहरी शांति का। अगर आप पूर्ण रूप से शांत नहीं होंगे तो बुद्धि का उत्कृष्ट कार्य कर ही नहीं सकते। कोई भी अच्छा काम करना हो आपको एकाग्रता और शांति चाहिए। मां सरस्वती की पूजा यानी गहन अध्ययन बहुत जरूरी है। लेकिन आजकल सरस्वती पूजा के दिन मूर्तियों की पूजा का चलन बढ़ गया है। होड़ लगी है कि किसकी मूर्ति सुंदर और भव्य हो। इस पर खूब खर्च किया जाता है। लोगों से चंदा मांगा जाता है। मां सरस्वती की मूर्ति के पास ऐसे भौंडे गीत बजाए जाते हैं जिनका पूजा पाठ से कोई लेना देना नहीं है। ओछे से गीत। फिर खाने पीने का दौर चलता है। रात में कुछ युवक मूर्ति के पास बैठ कर शराब भी पीते हैं। यह क्या है? क्या सरस्वती मां की इस मूर्ति पूजा का वास्तविक पूजा से कोई संबंध है? बिल्कुल नहीं। रात दिन जोर जोर से लाउडस्पीकर बजा कर लोगों को डिस्टर्ब करना क्या सरस्वती पूजा है? और इतना खर्च तो भाई कोई अच्छी किताब खरीद कर कीजिए। सबको वह पुस्तक पढ़वाइए। तब तो मां सरस्वती की सच्ची पूजा होगी। वरना शोर- गुल और सजावट, मिठाई और भोजन बांटने से मां सरस्वती कैसे खुश होंगी, समझ से बाहर है। हां, पूजा पाठ बुरा नहीं है। लेकिन उसका एक शालीन तरीका है। मूर्ति पर हजारो खर्च करने से अच्छा है एक फोटो को फ्रेम करा कर और फूल- फल मिठाई चढ़ा कर पूजा की जा सकती है। मां सरस्वती के पूजा के मंत्रों का उच्चारण किया जा सकता है। लेकिन आजकल कई पूजा पंडालों में दिखावा ज्यादा हो जाता है। और मूर्ति के पास भौंडे गाने बजा कर आप क्या साबित कर रहे हैं। यह कैसी पूजा है भाई? शांति की देवी की पूजा शोर और भौंडे गाने से? अभी समय नहीं बीता है। हम फिर अपने ऋषियों की बातों को याद कर सकते हैं। मां सरस्वती के प्रतीकों का चिंतन- मनन कर सकते हैं। अपनी श्रेष्ठ परंपरा की तरफ लौटना सुखद ही है।

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