Saturday, January 23, 2010

रमण महर्षि कहते थे- खुद से पूछो कि मैं कौन हूं

विनय बिहारी सिंह

रमण महर्षि को उनके भक्त भगवान कहते थे। यूरोप के लेखक पाल ब्रंटन ने जब उनके बारे में सुना तो भारत पहुंचे और रमण महर्षि के आश्रम में पहुंच गए। वहां रमण महर्षि से मिलते ही चकित रह गए। वे अद्भुत संत थे। एकदम शांत। ज्यादा बातचीत नहीं करते थे लेकिन उनके मौन में ही गहरी शांति रहती थी। पाल ब्रंटन ने उन पर किताब लिखी और वह पुस्तक विश्व विख्यात हो गई। फिर तो विश्व भर के लोग उनके पास आने लगे। जब लोगों को उन्होंने आभास दे दिया कि वे अपना शरीर छोड़ने वाले हैं तो उनके भक्त व्याकुल हो गए। ऐसा सरल और उच्चकोटि का संत अब वे कहां पाएंगे। भक्तों की एक टोली ने रोते हुए उनसे पूछा- भगवान, आपके जाने के बाद हम कैसे रह पाएंगे? रमण महर्षि ने कहा- मैं कहां जाऊंगा? मैं तो यहीं बना रहूंगा। यह वाक्य उनके भक्तों का सूत्र वाक्य बन गया। आज भी उनके वेबसाइट पर जाइए- यह वाक्य लिखा मिलेगा कि मैं कहां जाऊंगा। मैं तो यहीं रहूंगा। भक्तों को उनकी बातें सुन कर संतोष हुआ। रमण महर्षि ने संकेत दिया कि मृत्यु के बाद वे शरीर में तो नहीं रहेंगे, लेकिन उन सबके संपर्क में जरूर रहेंगे। उनकी मृत्यु के अनेक वर्ष हो गए लेकिन आज भी उनके भक्त कहते हैं कि भगवान (रमण महर्षि) उनके संपर्क में हैं। परमहंस योगानंद जी ने सन १९३६ में रमण महर्षि से मुलाकात की थी। यह भी अविस्मरणीय मुलाकात थी। परमहंस जी और रमण महर्षि दोनों उच्च कोटि के सन्यासी। रमण महर्षि से एक युवक ने कहा- मैं ध्यान करना चाहता हूं लेकिन मेरा मन थोड़ी देर भगवान में लगने के बाद उछल- कूद करने लगता है। क्या करूं? रमण महर्षि ने कहा- ईश्वर को जोर से पकड़े रहो। युवक ने कहा- पकड़े तो रहता हूं लेकिन ईश्वर हाथ से छूट जाते हैं और संसार की बातें मुझे घेर लेती हैं। रमण महर्षि हंसते हुए बोले- जब तक भगवान को पकड़े रहोगे, संसार की बातें तुम्हारे दिमाग में नहीं आएंगी। युवक ने कहा- मैं तो कोशिश करता ही हूं। रमण महर्षि ने कहा- तुम हार मत मानो। डटे रहो। तुम्हारा दिमाग तुम्हारा कहना मानने लगेगा। विल पावर को मजबूत करो। कमजोर को हर कोई परेशान करता है। लेकिन मजबूत को नहीं। मजबूत बनो। तब उस युवक की समझ में आ गया कि परेशान होने की जरूरत नहीं है। उत्साह के साथ प्रयास जारी रखना होगा। तब ईश्वर प्राप्त होंगे। रमण महर्षि और अन्य ऋषियों ने कहा है कि ईमानदारी से ध्यान करने वाले की मदद भगवान जरूर करते हैं। लेकिन जो लोग ध्यान करके तुरंत उसका फल चाहते हैं, उन्हें कुछ नहीं हासिल होने वाला है। वे लोग तो रिजल्ट चाहते हैं। भगवान के साथ प्यार में रिजल्ट की उम्मीद करने की जरूरत ही नहीं है। भगवान अंतर्यामी हैं और यह भी जानते हैं कि जो व्यक्ति उन्हें प्यार कर रहा है उसकी जरूरतें क्या हैं। वे अगर उचित समझते हैं तो उसे पूरा करते हैं। सबसे खराब से संशय। ईश्वर को लेकर संशय क्या है? फिर भी लोग ईश्वर को लेकर और रमण महर्षि या परमहंस योगानंद जी जैसे सन्यासियों की बातों के प्रति शंका करते हैं। रमण महर्षि ने कहा है- गाड हिमसेल्फ कम्स एज अ गुरु। यानी ईश्वर ही गुरु बन कर आते हैं। गीता में है- संशयात्मा विनश्ति। संशय करने वाला नष्ट हो जाता है। ईश्वर को लेकर अगर कोई संशय करता है तो यह आश्चर्य की ही बात है। रमण महर्षि यह भी कहा है- ईश्वर के प्रति पूर्ण शरणागति होनी चाहिए। यानी हे ईश्वर तुम्हीं सब कुछ हो, मैं कुछ नहीं। मेरी औकात ही क्या है। मैं तो तुम्हारे ऊपर आश्रित हूं। कृपा कीजिए भगवन। बस, इसी भाव से बढ़ते रहिए। आपको ईश्वरीय आनंद मिलता जाएगा।

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