Thursday, January 14, 2010

तमाम तरह के सोच का बंडल है दिमाग

विनय बिहारी सिहं

रमण महर्षि कहते थे- माइंड इज बंडल आफ थाट्स। सारी परेशानी की जड़ यह दिमाग ही है। जब आप सो जाते हैं तो सब कुछ भूल जाते हैं। आपको यह भी याद नहीं रहता कि आप कहां हैं। क्या कपड़ा पहना है। नींद आपको बिल्कुल शरीर से अलग कर देती है। लेकिन यह सब कांशस स्टेट है। ध्यान इससे भी बेहतर स्थिति है। इसमें आप जाग्रत रहते हुए चिंतन रहित अवस्था में जाते हैं। इसीलिए जिनका ध्यान गहरा लगता है, उन्हें नींद की जरूरत नहीं पड़ती। ध्यान का अर्थ है दिमाग की सारी चिंताएं, समस्याएं खत्म कर दीजिए और एकमात्र ईश्वर में समा जाइए। अत्यत आनंद का अनुभव होगा। शांति और आनंद का अनुभव। ऋषियों को इसकी चिंता नहीं रहती थी कि भोजन और वस्त्र कहां से आएगा। वे केवल ईश्वर के लिए व्याकुल रहते थे। नतीजा यह होता था कि भोजन और वस्त्र का इंतजाम ईश्वर ही कर देते थे। कैसे? जो परम ईश्वर भक्त थे और धन संपत्ति से भरपूर थे वे इन ऋषियों की सेवा के लिए एक पैर पर खड़े रहते थे। वे प्रतीक्षा करते रहते थे कि ऋषि की किस जरूरत को पूरा करने का मौका मिले। रामकृष्ण परमहंस की सेवा के लिए न जाने कितने लोग तैयार रहते थे। रानी रासमणि जब तक जीवित रहीं, उनकी सेवा की। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद भी रामकृष्ण परमहंस की सेवा के लिए अनेक लोग लालायित रहते थे। रामकृष्ण परमहंस का एक क्षण भी ईश्वर के बिना नहीं बीतता था। वे बहुत कम सोते और खाते थे। दिन में एक छोटी सी प्लेट में प्रसाद खा लिया और रात में थीड़ी सी सूजी की खीर। बस यही उनका भोजन था। वे मुश्किल से दो घंटे और कई बार तो एक घंटा ही सोते थे। बाकी समय ध्यान, समाधि और भजन- कीर्तन व भक्तों से ईश्वर संबंधी बातचीत में बिताते थे। उनके यहां जो भी जाता था वह ईश्वरीय सुख से सराबोर लौटता था। एक बार जो उनके पास चला गया वह दुबारा कब मौका मिले कि जाएं, यही सोचता रहता था। आध्यात्मिक जगत में उन्हें लेकर एक कहावत थी- रामकृष्ण परमहंस आध्यात्मिक अफीम खिला देते हैं। यानी वे ईश्वर के प्रति आसक्ति पैदा कर देते हैं। जो भी उनसे मिला उनका दीवाना हो गया। वे हमेशा ईश्वर के प्रसंगों पर बातचीत करते रहते थे। बातचीत के बीच में ही उन्हें समाधि लग जाती थी। यह समाधिक कभी कभी घंटों चलती थी। तब कोई उन्हें डिस्टर्ब नहीं करता था।

2 comments:

Arshad Ali said...

आपने बिलकुल सही कहा
सारी परेशानी की जड़ यह दिमाग ही है
और इस दिमाग पर नियंत्रण पाने के लिए अध्यातम के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं.
इश्वर में लीन होना दिमागी कसरत में फिजूल कसरतों को समाप्त करना है.
शेष सभी बिचार दिमाग पर नियंत्रण रखने के हमारे दिमाग के ओछे उत्पादन हें.

अमिताभ श्रीवास्तव said...

sach yah he ki, hamaare paas sirf ek hi chij he jise jitanaa kharch karte jaaye vo utana badati jaati he. aour vo dimaag he/
ise me pareshaniyo ki jad nahi maanta...ise me ishvar ka anmol upahaar maantaa hu jiska sadupyog ham kar sakate he..aour raamkrashna paramhans jesi ne vo kiyaa bhi...