Tuesday, July 28, 2009

गुरु कैसे शक्तिपात करता है शिष्य के भीतर

विनय बिहारी सिंह

शक्तिपात है क्या? गुरु अपनी दिव्य आध्यात्मिक शक्तियां शिष्य के भीतर स्थापित कर देता है ताकि शिष्य सूक्ष्म महाप्राण ऊर्जा या कास्मिक इनर्जी की धारा को लगातार और अनंत मात्रा में ग्रहण कर सके। शिष्य की ग्रहण करने की क्षमता सीमित ही होती है। गुरु उसकी ग्रहणशीलता को कई गुना बढ़ा देता है। कई बार शिष्य को समाधि का अनुभव नहीं होता या उसका चित्त एकाग्र नहीं होता तो गुरु शक्तिपात के जरिए उसके भीतर गहराई पैदा करता है और उसे मजबूत करता है। अक्सर हम पढ़ते हैं कि अमुक गुरु ने अपने शिष्य पर शक्तिपात किया। लेकिन गुरु यह तभी करता है जब उसे लगता है कि शिष्य साधना के प्रति अत्यंत गंभीर है और उसे मदद की जरूरत है। तो शक्तिपात है क्या? हम जानते तो हैं कि ईश्वर है, लेकिन उसे महसूस नहीं कर पाते क्योंकि हमारा रिसीवर टूटा- फूटा है। अयोग्य है। गुरु हमें पहले तो अपना रिसीवर ठीक करने को कहता है। वह इसकी विधि बताता है। शिष्य भक्ति के साथ उसका पालन करता है। जब बार- बार अभ्यास के बाद उसका रिसीवर ठीक हो जाता है तो गुरु पूछता है- तुम्हें कुछ ईश्वरीय अनुभव हो रहे हैं। तब भी अगर शिष्य कहता है- नहीं गुरुदेव। मुझे तो दिव्य प्रकाश तक नहीं दिखाई देता। गुरु फिर- फिर उसे तरीके बताता है। फिर भी शिष्य ईश्वर का दिव्य प्रेम अनुभव नहीं कर पाता तो गुरु उस पर शक्तिपात की कृपा करता है। यह होता कैसे है? सच्चा गुरु समुद्र होता है और शिष्य कप की तरह है। कप में समुद्र का कोई हिस्सा भी कैसे आएगा? गुरु अपनी शक्ति से शिष्य की ग्रहणशीलता को विस्तारित कर देता है। यह काम वह शिष्य के जाने बिना ही करता रहता है। जब उसे लगता है कि शिष्य की ग्रहणशीलता व्यापक हो गई तो अपने समुद्र का एक हिस्सा उसे दे देता है। तब शिष्य विभोर जैसी अवस्था में चला जाता है। कई शिष्य तो शक्तिपात ग्रहण कर हफ्तों ध्यान में मस्त रहते हैं। गुरु उसे उस अवस्था से खींच कर वापस लाता है ताकि आगे बढ़ने का क्रम जारी रह सके। यह विभोर होने वाली अवस्था तो एक पड़ाव भर है। शिष्य को और भी गहरे उतरना है। लेकिन आजकल गुरु खोजना सबसे मुश्किल काम है। बल्कि बहुत मुश्किल काम है। सच्चा गुरु कैसा होता है, इसकी पहचान परमहंस योगानंद जी ने एक पुस्तक में लिखा है। उस पुस्तक का नाम याद नहीं है। उनकी एक प्रसिद्ध पुस्तक- आटोबायोग्राफी आफ अ योगी है जो दुनिया की सभी भाषाओं में अनूदित हो चुकी है। हिंदी अनुवाद का नाम है- योगी कथामृत। यह सच है कि आज भी सक्षम गुरु मौजूद हैं, लेकिन उन्हें कम लोग जानते हैं। वे अपना प्रचार नहीं करते। लेकिन खोजने वाले उन तक पहुंच जाते हैं। यह संक्षिप्त लेख लिखते हुए मुझे लगा शक्तिपात की तुलना रिजोनेंस सिद्धांत से भी तो की जा सकती है।

6 comments:

Vinay said...

बहुत अच्छा लेख
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1. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
2. चाँद, बादल और शाम
3. तकनीक दृष्टा

RAJNISH PARIHAR said...

इस बारे में कुछ और विस्तार से लिखियेगा....!उत्सुकता जगाता है आपका लेख...

Aditya Gupta said...

बेहद सार्थक पोस्ट ..........गुरु ही जीवन मे आगे बढ़ने की कला सिखलता है.....

सच्चे गुरु की तलाश मे ................

आपका एक नियमित पाठक.....

Dr.Adhura said...

andh visvas se bhra lekh hai yh hume dharm ke nam par andh kup me dal rha hai samadi kya hoti hai yh jano tab lagao jo aap bta rhe ho vh to kuchh nahi hai.

sagar rane said...

yaih bahoot achha lekh hai. anuradhaji aap doc.hai jo chij dikhati nahi woh chij haihi nahi aisa kehana galat hai.main aapaka niyamit vachak hoon.kripaya mujhe is bare mein aur bataiyeaur sacche guru to abhi bhi hain lekin unhe kaisen dhudhe main pichhale 4 sal se is bat ko lekar bahot wyatith hoon kripaya madad karein.

sagar rane said...

aapaka lekh padh kar bahot prabhavit hua.kya aap meri madad karenge main bahot salon se is ke bare main padh rahan hoo. ab is ka anubhav lena chahata hoon kripaya aap is barien main meri madad kareinge.