विनय बिहारी सिंह
संतों ने कहा है कि भगवान शिव श्मशान में रहते हैं, लेकिन उनका श्मशान स्थूल नहीं है। स्थूल श्मशान में शव का अंतिम संस्कार होता है। ठीक इसी तरह सूक्ष्म स्तर पर यही काम ध्यान में होता है। तो फिर किस श्मशान में रहते हैं शिव जी? व्याख्या है कि जब ध्यान गहरा होता है तो व्यक्ति अपने शरीर और इंद्रियों को पूरी तरह भूल जाता है। जैसे आप जब सोते हैं तो आपको अपनी इंद्रियों का पता नहीं रहता। आप पूरी तरह सब कांशस स्टेट में होते हैं। आपको तो यह भी पता नहीं होता कि आप स्त्री हैं या पुरुष। आप तो अत्यंत गहरी नींद में होते हैं। लेकिन ध्यान और नींद में थोड़ा फर्क है। ध्यान में आपका ईश्वर में लय होता है। तब जाकर आप इंद्रियों से ऊपर उठ जाते हैं। जब शरीर का होश नहीं रहता तो आपका शरीर शव हो जाता है। आप अपने शव को अपने भीतर के श्मशान में ले जाते हैं और वहीं आपकी मुलाकात शिव से होती है। यानी भगवान शिव आपके भीतर बनाए हुए वैराग्य रूपी श्मशान में रहते हैं। संतों की यह व्यख्या पढ़ कर बहुत आनंद आया। सचमुच अगर हमारे भीतर शिव आ सकते हैं तो इससे बड़ी खुशी की बात और क्या हो सकती है। यह तो तभी संभव है जब हमारे भीतर विचारों का जो तूफान चलता रहता है, वह शांत हो। इसके बाद हम निर्विचार हो कर यह महसूस करें कि हम ईश्वर में हैं। जब देर तक यह महसूस हो कि हम ईश्वर में हैं तो अगला कदम है कि हम महसूस करें कि हमारा ईश्वर में लय हो रहा है। इसके बाद भगवान शिव से साक्षात्कार। यानी परम आनंद। इस आनंद की तुलना में संसार का कोई भी आनंद फीका है। संसार का सबसे बड़ा आनंद भी ईश्वरीय आनंद के सामने तुच्छ है, फीका है। तो क्यों न उस ईश्वरीय आनंद के लिए ही दीवाना हुआ जाए जो मिलने के बाद कोई भी हमसे छीन नहीं सकता, चुरा नहीं सकता। ईश्वरीय आनंद दिनोंदिन बढ़ता जाता है और उसकी कोई सीमा नहीं है। वह आनंद अनंत है। उसकी मात्रा आप माप नहीं सकते। वह समयहीन है यानी सदा के लिए है।
2 comments:
ati uttam lekh
आपका लेख पढ़ा तो कुछ प्रश्न मन में उभरे | आपने लिखा हैं शिव का श्मशान वह नहीं जिसे हम आम तौर पर समझते हैं, यानी की वह श्मशान जहाँ शवो का दाह संस्कार होता हैं | लेकिन ग्रंथो में तो शिव को औघड़ बताया गया जो कपाल (नर-मुंड का भाग) धारण किये रहते हैं | उसी तरह तंत्र शास्त्र में भी उन्हें महाकाल, भैरव की संज्ञा दी गयी हैं और श्मशान को शिव का क्रीड़ा-स्थल बताया हैं | श्मशान वह जगह हैं जहाँ आत्मा का उसके निर्जीव शरीर (माया) से बंधन टूट जाता हैं | एक तरह से श्रृष्टि के छोटे से भाग का संहार हो जाता हैं | शिव की विनाश-लीला, जो की एक सकारात्मक प्राकृतिक नियम हैं, नवीन सृजन का मार्ग प्रशस्त करता हैं, यह सब उन लोगों को स्मरण दिलाने के लिए हैं जो शव के साथ श्मशान आते हैं | इसीलिए अघोरी भी श्मशान में रह कर अपनी साधना करते हैं | उसी प्रकार , मणिकर्णिका घाट, जिसे महाश्मशान माना जाता हैं, वह भी विश्वनाथ की नगरी काशी (वाराणसी) में स्थित हैं | अगर शिव का शमशान स्थूल शमशान नहीं हैं, तो काशी एवं अन्य श्मशानो को शिव का निवास स्थान क्यों माना जाता हैं | भूत पिशाच, चुड़ैल, राक्षस इत्यादि उनके गण माने जाते हैं |
उपरोक्त का यह मतलब कतई नहीं हैं हैं की आपकी शिव के श्मशान की व्याख्या अनुचित हैं | तात्पर्य केवल यह हैं की जिस तरह की व्याख्या आपने की हैं उस तरह शिव का श्मशान से सम्बन्ध की व्याख्या ग्रंथो में कहाँ हैं?
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