विनय बिहारी सिंह
आज हम फिजिक्स या भौतिक शास्त्र में क्वांटम थियरी पढ़ते हैं। इसके प्रणेता थे- जर्मनी के मैक्स प्लैंक। उन्हें इसके लिए नोबेल पुरस्कार भी मिला। वे क्वांटम पर काम कर रहे थे। एक दिन जब वे घर में फायर प्लेस ( हम इसे अपने भारत में घर के भीतर अलाव कह सकते हैं) के पास रात का खाना खा कर बैठे थे। आग से जो प्रकाश निकल रहा था, उसकी किरणों को उन्होंने अपने अंतरमन में देखा। वे सोचने लगे- जैसे पदार्थ में ऊर्जा होती है, उसी तरह प्रकाश में भी तो ऊर्जा होती है। इस विषय पर उन्होंने काफी मंथन किया। सोचते- सोचते वे अपने अध्ययन कक्ष में गए। इस विषय पर गहरा अध्ययन किया। रात के दो बजे वे सोने चले गए। रात को उन्होंने अपने सपने में अपने दादा जी को देखा। उनके दादा जी का देहांत हो गया था। उनके दादा जी उनसे कह रहे थे- हां मैक्स, तुम ठीक सोच रहे हो। प्रकाश में ऊर्जा होती है और उसके ऊर्जा कणों की एक खास गति भी होती है। प्रकाश ऊर्जा से ध्वनि स्पंदन को गुजार कर तुम प्रयोग कर ही चुके हो। हालांकि यह विषय से हट कर था। क्वांटम थियरी पर काम आगे बढ़ाओ। तुम साइंस में इतिहास रचोगे। सुबह जब मैक्स प्लैंक की नींद खुली तो वे सीधे अपनी प्रयोगशाला में पहुंचे और थोड़ी देर तक बैठ कर रात के सपने के बारे में सोचते रहे। नित्य क्रिया से निवृत्त हो कर वे अपने काम में जुट गए। आज जिस क्वांटम थियरी के बारे में हम जानते हैं, उसके पीछे मैक्स प्लैंक का गहरा परिश्रम ही है। जो प्रकाश है वह अलग अलग ऊर्जाओं से बना हैं। प्रकाश की ऊर्जा टुकड़ों में बंटी है। प्रकाश फोटान से बने होते हैं। इन्हीं फोटानों को क्वांटा कहते हैं। क्वांटम थियरी यह भी कहती है कि आपने एक कप उठाया और गलती से वह गिर कर टुकड़े- टुकड़े हो गया तो यह घटना बहुत सारे यूनिवर्सेज में से एक में घटी है। यह एक यूनिवर्स या ब्रह्मांड की घटना है, संपूर्ण ब्रह्मांड की नहीं। कई ब्रह्मांड मिल कर एक महाब्रह्मांड बनाते हैं। मैक्स प्लैंक को साधुवाद।
1 comment:
हम तो आर्ट के छात्र रहे हैं अधिकतर बात सर के ऊपर से गुजर गई
वीनस केसरी
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