Thursday, July 2, 2009

नहीं भाई भगवान बुद्ध को ऐसा मत कहो

विनय बिहारी सिंह

एक भाई ने भड़ास पर सवाल किया है कि भगवान बुद्ध भगोड़े थे। क्या वे निर्वाण पा कर मृत्यु को जीत पाए? आखिर सन्यासी बन कर उन्होंने क्या कर लिया? मित्र, भगवान बुद्ध मृत्यु पर विजय प्राप्त करने नहीं गए थे। वे गए थे इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ने कि आखिर मनुष्य है क्या? क्या वह शरीर है? क्या वह मन है? या कि आत्मा? जब वे राजकुमार थे। उनका नाम था सिद्धार्थ गौतम। एक दिन उन्होंने कोचवान से नगर भ्रमण के करने की इच्छा व्यक्त की। कोचवान रथ पर उन्हें बैठा कर नगर की सैर करा रहा था। तभी उन्होंने एक बूढ़े व्यक्ति को देखा। उसकी कमर झुकी हुई थी। उन्होंने पूछा- इस आदमी को क्या हुआ है? कोचवान ने बताया- यह आदमी बूढ़ा हो गया है। सभी एक दिन बूढ़े होते हैं। यह राजकुमार के लिए झटके की तरह था। फिर उन्होंने क्रमशः बीमार, विकलांग और साधु को देखा और उनके दिमाग में मनुष्य की नश्वरता को लेकर तरह- तरह के प्रश्न उठने लगे। उनके दिमाग में पहला सवाल उठा- मनुष्य जन्म क्यों लेता है? आगे बढ़ने से पहले हम यह जान लें कि कपिलवस्तु के पास लुंबिनी में वे पैदा हुए थे। उन्होंने लंबे समय तक तपस्या की। वे शाक्य गणराज्य के अगले राजा थे। उनकी पत्नी यशोधरा अत्यंत सुंदरी थी। आप कल्पना करें- अकूत संपत्ति, अप्सरा सी सुंदर पत्नी, विशाल साम्राज्य, चरम भोग के सारे साधन और राजा का पद। यह सारी चीजें सिद्धार्थ गौतम को कूड़ा- करकट लगीं ( आज तो बड़े- बड़े संयमी लोग थोड़ा सा भी धन देख कर पूंछ हिलाने लगते हैं और अपनी तथाकथित नैतिकता की मिट्टी पलीद कर देते हैं।) गौतम बु्द्ध भगोड़े नहीं महान त्यागी थे मित्र। आज तो एक घर या कुर्सी छोड़ने की बात आते ही लोग क्या क्या नाटक नहीं करते। गौतम बुद्ध ने ५०० ईस्वी पूर्व पूरा राजपाट, भोग- विलास और सम्मान छोड़ दिया। आप कल्पना कीजिए एक सुंदर स्त्री और प्यारे से बेटे को छोड़ कर उन्होंने किस मनःस्थित में राजमहल छोड़ा होगा। उनके त्याग के पीछे उनका तीव्र वैराग्य था। उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। वे मनुष्य जीवन के रहस्य जानना चाहते थे। उन्होंने कठोर तप किया। आखिर बोध गया में पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें ग्यान (तकनीकी कारणों से ग्यान मैं ऐसे ही लिख पा रहा हूं) प्राप्त हुआ। तब तक उनका शरीर सूख कर कांटा हो गया था। इस तप को भगोड़ा कहना बुद्ध के साथ नाइंसाफी है। जरा कोई घर छोड़ कर इस वैराग्य की हद तक जा कर तो दिखाए। तब पता चलेगा कि गौतम बुद्ध क्या थे। बैठे- बिठाए उन्हें भगोड़ा कह देना ठीक नहीं है।
बुद्ध के उपदेशों का सार इस प्रकार है -
सम्यक ज्ञान बुद्ध के अनुसार धम्म यह है:
जीवन की पवित्रता बनाए रखना। जीवन में पूर्णता प्राप्त करना। निर्वाण प्राप्त करना। तृष्णा का त्याग। यह मानना कि सभी संस्कार अनित्य हैं। कर्म को मानव के नैतिक संस्थान का आधार मानना। बुद्ध के अनुसार सद्धम्म क्या है-- 1. जो धम्म प्रज्ञा की वृद्धि करे। जो धम्म सबके लिए ज्ञान के द्वार खोल दे। जो धम्म यह बताए कि केवल विद्वान होना पर्याप्त नहीं है। जो धम्म यह बताए कि आवश्यकता प्रज्ञा प्राप्त करने की है । जो धम्म मैत्री की वृद्धि करे। जो धम्म यह बताए कि प्रज्ञा भी पर्याप्त नहीं है, इसके साथ शील भी अनिवार्य है। जो धम्म यह बताए कि प्रज्ञा और शील के साथ-साथ करुणा का होना भी अनिवार्य है। जो धम्म यह बताए कि करुणा से भी अधिक मैत्री की आवश्यकता है। वह सभी प्रकार के सामाजिक भेदभावों को मिटा दे। वह आदमी और आदमी के बीच की सभी दीवारों को गिरा दे। वह बताए कि आदमी का मूल्यांकन जन्म से नहीं कर्म से किया जाए जब वह आदमी-आदमी के बीच समानता के भाव की वृद्धि करे । बुद्ध को भगवान यूं ही नहीं कहते। मेरा आग्रह है कि जिन मित्र ने भगवान बुद्ध को भगोड़ा कहा है, वे भगवान बुद्ध पर केंद्रित प्रामाणिक ग्रंथों को बार- बार पढ़ें। ये ग्रंथ एक या दो बार पढ़ने से समझ में नहीं आते। इन्हें किसी बौद्ध विद्वान से समझना पड़ेगा। ।

2 comments:

रंजना said...

जिन्होंने इतना महान विचार रखा गौतम बुद्ध के बारे में वे बुद्ध से भी महान और वन्दनीय हैं....उनकी वंदना पुष्प पत्र अर्घ्य से करें.....उनके महत विचारों का न तो विरोध करें और न ही आक्षेप लगायें.....

और यदि मन इतना ही उद्वेलित हो जाये उनके विचार सुनकर तो बस जोर से ......हा हा हा हा ...कर दें....और उन्हें जैसा सोचना है सोचने दें उनके. विचार. या. उदगार .में रुकावट कदापि न डालें....,

(आपको इस तरह स्पष्टीकरण देने की कोई आवश्यकता नहीं...बिंदास रहें )

निर्मला कपिला said...

मैं रंजना जी की बात से बिल्कुल सहमत हूँ फिर दुनिआ ने तो राम को भी नहीMं बख्शा था इन नकारात्मक बातों की ओर अधिक ध्यान नहीं देना चाहिये जो पूज्य हैं वो पूज्य ही रहेंगे शुभकामनायें