विनय बिहारी सिंह
कई लोग सामूहिक ध्यान न कर, घर पर ही ध्यान करना बेहतर मानते हैं। लेकिन नए ध्यान करने वालों के लिए यह बहुत जरूरी है। जो ध्यान में पारंगत हैं वे कभी- कभी सामूहिक ध्यान कर सकते हैं। लेकिन नया ही नया ध्यान शुरू करने वाले लोगों के लिए हमारे ऋषियों ने सामूहिक ध्यान की सलाह दी है। कैसे लाभ होता है ? जैसे एक कोयले को जला दिया जाए तो अन्य कोयले भी उसके संपर्क से जल्दी ही जलने लगते हैं। उसी तरह मान लीजिए १० या २० आदमी एक साथ ध्यान कर रहे हैं। आप उनके बीच बैठे हैं यानी आप इन्हीं २० लोगों में से एक हैं। तो जो व्यक्ति ध्यान का नेतृत्व कर रहा है, उसके ध्यान की गहराई के साथ सभी ध्यान करने वाले प्रभावित होते हैं। हां, ध्यान का नेतृत्व वही व्यक्ति करे जो सिद्ध हो, यानी जिसका ध्यान जब चाहे गहरे उतर जाता हो। इसके अलावा आपके साथ जो लोग ध्यान कर रहे हैं, उनमें भी गहरे उतरने वाले होते हैं। उनका प्रभाव भी अन्य लोगों के ध्यान पर पड़ता है। ध्यान कहां किया जाना चाहिए? रामकृष्ण परमहंस ने कहा है कि प्रसिद्ध स्थान तो हृदय है। लेकिन एक स्थान और है- भृकुटी के बीच। यानी भौंहों के बीच का वह स्थान जहां स्त्रियां बिंदी लगाती हैं या जहां हम सब टीका लगाते हैं। लेकिन ध्यान में मन चंचल नहीं होना चाहिए। बस ध्यान कर रहे हैं तो कर रहे हैं। जैसे आप जूता उतार कर घर में आते हैं, ठीक उसी तरह आप अपनी चिंताओं, परेशानियों और तनावों को बाहर फैंक आइए और निश्चिंत हो कर ध्यान करिए। हमारे बुजुर्गों ने कहा है-
चिंता से चतुराई घटे, दुख से घटे शरीर।
ध्यान हमारी सारी चिंताएं, सारा दुख सोख लेता है। इसीलिए ध्यान के बाद मन प्रसन्न हो जाता है। लेकिन हां, अगर संयोगवश आप ध्यान न करें तो पांच मिनट का जाप भी बहुत असरदार होता है। किसका जाप करें? किसी भी देवता के नाम का। चाहे- ऊं नमः शिवाय या राम राम राम या हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे या ऊं काली ऊं काली या आप अपनी सुविधा के मुताबिक किसी देवता का नाम लें। ऊपर जो उदाहरण दिए गए हैं वे ही ज्यादातर प्रचलन में हैं।
1 comment:
बहुत आभार इस जानकारी का.
Post a Comment