Saturday, July 4, 2009

अकेलेपन से डरना नहीं, उसका आनंद लेना है

विनय बिहारी सिंह

कई लोग अकेलेपन से बहुत डरते हैं। वे हमेशा किसी न किसी के साथ रहना चाहते हैं। अगर किसी कारणवश उन्हें अकेले रहना पड़ता है तो वे जल्दी से काम खत्म कर किसी न किसी से बात करना या घर है तो वहां जाना चाहते हैं। लेकिन बड़े- बड़े संतों ने कहा है- यह आपका सौभाग्य है कि दिन या रात में आपको अकेले रहने का मौका मिलता है। हालांकि आप बिल्कुल अकेले कभी नहीं होते। भगवान हमेशा आपके साथ होते हैं। लेकिन उन्हें सूक्ष्मता से महसूस करना होता है। भौतिक रूप से अगर अकेले हैं तो उस शांति का आनंद लीजिए जो माहौल में पसरा हुआ है। लेकिन उस शांति को आप तभी महसूस कर सकते हैं जब आपके भीतर भी शांति हो। अगर भीतर शांति नहीं तो बाहर चाहे कितना भी सुंदर दृश्य हो, कितनी भी शांति हो, थोड़ी देर ही आपको आनंददायक लगेगा। आप फिर भीतर की अशांति से प्रभावित हो जाएंगे। इसलिए सबसे पहले भीतर की शांति चाहिए। यह ध्यान या ईश्वर से जुड़ने से सहज ही उपलब्ध हो जाता है। संयोग से या जानबूझ कर पाए हुए अकेलेपन को सुख मानिए। उस समय आप कुछ मत सोचिए। बस उस शांति में ईश्वर की उपस्थिति महसूस करते हुए आप उसमें घुल जाइए, पिघल जाइए। आप ईश्वर की गोद में पिघलेंगे तो आपको गहरी शांति मिलेगी। तब आपको लगेगा कि अकेले होने का आनंद क्या है। यह ठीक है कि मनुष्य सामाजिक प्राणी है। लेकिन हमेशा सामाजिक धर्म निभाते हुए आप ऊब जाएंगे। इसलिए अकेलापन ढूंढिए और ईश्वर को साथ लेकर उसमें रम जाइए। तब लगेगा, यह अकेलापन आपको आशीर्वाद के रूप में मिला है। ईश्वर के साथ संपर्क के लिए अकेले होना बहुत जरूरी है। चाहे दस मिनट ही सही, ऐसा समय क्यों न निकालें जब सिर्फ और सिर्फ हम हों और ईश्वर हों। बाकी कोई नहीं। उन क्षणों का आनंद आप शब्दों में नहीं बयां कर सकते। यह तो अनुभव और आनंद की स्थिति है।

1 comment:

ओम आर्य said...

badhiya jankari di aapane...