Friday, July 24, 2009

ईश्वर के बारे में सोचना भी भक्ति ही है



विनय बिहारी सिंह


आटोबायोग्राफी आफ ए योगी (हिंदी में अनुवाद- योगी कथामृत) के लेखक और महान योगी परमहंस योगानंद जी (इस लेख के साथ उन्हीं का चित्र है) ने कहा है कि ईश्वर के बारे में सोचना भी भक्ति है। उन्होंने कहा है- ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है। उनसे बातचीत करिए, ग्रंथों में लिखे उनके वचनों को सुनिए या उन्हें पढिये , उनके बारे में सोचिए, ध्यान में उनकी उपस्थिति को महसूस कीजिए। कोई आपसे प्यार से बोलता है तो उसके पीछे ईश्वर का प्यार महसूस कीजिये । सोचिये कि प्रकृति के काम कैसे अपने आप नियम से हो रहे हैं। कैसे हम बना महसूस किए ही धीरे - धीरे उम्र दराज होते जा रहे हैं। ये दुनिया हमारे जन्म के पहले भी थी और मरने के बाद भी रहेगी। सिर्फ़ हम नहीं रहेंगे। हमारा शाश्वत सम्बन्ध जिससे है, उसे हम भुलाये बैठे हैं। ईश्वर ने हमे यहाँ भेजा है , और उसे ही हम भूल जाते हैं। हमें लगातार ईश्वर का स्मरण करना चाहिए। ईश्वर के बारे में लगातार सोचना चाहिए। उनके रूप, या गुणों या उनके अद्भुत कार्यो के बारे में सोचना चाहिए। लगातार ऐसा करने से आप पाएंगे कि यह अनरियल बात नहीं है। बिल्कुल रियल यानी सच है। हां, हम जब अकेले हों तो मन ही मन सही, ईश्वर से प्रार्थना कर सकते हैं। अगर आपको किसी फूल की सुगंध मिली और आपका मन प्रसन्न हो गया तो आप महसूस कर सकते हैं कि यह ईश्वर की उपस्थिति है। धीरे- धीरे यही महसूस करना वास्तविकता में बदल जाएगा। परमहंस योगानंद जी ने आज से ५६ वर्ष पहले पश्चिमी देशों खास तौर से अमेरिका में जाकर योग का प्रचार किया था। उन्होंने सन १९५२ में अपना शरीर छोड़ा। तब तक वे निरंतर इसी बात पर जोर देते रहे कि इस दुनिया में ईश्वर ही सच है। बाकी सब नश्वर है। उन्होंने गीता पर जो भाष्य लिखा है, वह अद्भुत है। उन्होंने बताया है कि जन्म के पहले, जन्म लेने के बाद और मृत्यु के बाद हमारी क्या स्थिति होती है। कैसे हमारे संस्कार, हमारी इच्छाएं हमारी लालसाएं हमें बार- बार जन्म लेने के लिए बाध्य करती हैं। हम आनंद पाने के लिए फिर- फिर कामनाओं, वासनाओं में लिपट जाने के लिए प्रेरित होते हैं। जबकि असली आनंद तो ईश्वर में ही है। लोग भ्रमवश आनंद को गलत जगहों पर खोजते हैं। तो क्यों न इस चक्र से निकलने की कोशिश करें और असली आनंद के स्रोत को पकड़ें। हमारे सारे दुख, सारे तनाव और सारी चिंताएं खत्म हो जाएंगी। परमहंस योगानंद जी की पुस्तकें पढ़ कर उनके प्रति श्रद्धा से सिर झुक जाता है।

1 comment:

रंजना said...

इस पवित्र विचार को यहाँ प्रेषित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार.....bilkul saty कहा है swamiji ने....