Thursday, July 23, 2009

कार्ल जुंग, जब रमण महर्षि से मिले

विनय बिहारी सिंह

जाने- माने मनोवैग्यानिक कार्ल जुंग ने भारत के संत रमण महर्षि के बारे में बहुत कुछ पढ़ रखा था। उनकी मां मानसिक रूप से बीमार थीं। इसीलिए उन्होंने मनोविग्यान का गहरा अध्ययन और शोध किया। जब उनकी ख्याति फैल गई तो उनके मन में रमण महर्षि से मिलने की उत्सुकता पैदा हुई। आखिर यह संत है कौन जो बहुत कम बोलता है और चुप रह कर भी पूरी दुनिया में जाना जाता है? वे भारत आए और रमण महर्षि से मिले। देखा कि महर्षि नंगे बदन सिर्फ एक कौपीन पहने आनंद में बैठे हैं। उन्होंने पूछा- मनुष्य क्या चाहता है? रमण महर्षि ने कहा- आनंद। कार्ल जुंग ने पूछा- आनंद कैसे मिलेगा? रमण महर्षि ने कहा- ईश्वर से संपर्क करके। कार्ल जुंग ने पूछा- ईश्वर से संपर्क कैसे होगा? रमण महर्षि ने कहा- जब मनुष्य खुद से प्रश्न करेगा- मैं कौन हूं? हू एम आई? । रमण महर्षि के पास दिन रात रहने वाले विद्वानों ने उनसे कहा- प्रश्नोत्तर इस तरह शुरु होगा- क्या मैं शरीर हूं? नहीं। क्या मैं मन हूं? नहीं। क्या मैं बुद्धि हूं? नहीं। इस तरह करते- करते आप समझ जाएंगे कि मैं ईश्वर का अंश हूं। फिर द्वैत नहीं रह जाएगा। सिर्फ ईश्वर ही रह जाएंगे। ईश्वर ने तो कहा ही है- एको अहम, बहूस्याम। मैं एक हूं, लेकिन अनेक में रूपांतरित होता हूं। समूचे ब्रह्मांड में ईश्वर हैं। कण- कण में भगवान। रमण महर्षि के पास बैठे एक आदमी ने पूछा- हमारा मन इतना चंचल क्यों है? हम जब ध्यान करने बैठते हैं तो वह एक चिंतन पर टिकता नहीं। मन बंदर की तरह एक बात से दूसरी बातों पर कूदता रहता है। इसे कैसे कंट्रोल में लाएं। रमण महर्षि ने कहा- सोचो कि किसका दिमाग इतना चंचल है? उस आदमी ने कहा- मेरा। रमण महर्षि ने पूछा- तुम कौन हो? अब वह आदमी समझ गया। उसने कहा- सचमुच मैं तो चिन्मय आत्मा हूं। मेरी अपनी तो कोई चिंता नहीं रही। जब मैं पूरा ब्रह्मांड ही हूं तो ईश्वर की मर्जी वह जैसा करे। मैं तो ईश्वर में डूबा रहूंगा और संसार के कर्तव्य निभाता रहूंगा।

3 comments:

Unknown said...

saadhu saadhu
bahut umda aalekh

Ashoke Mehta said...

Ati Sunder, Bahut Sunder.

संगीता पुरी said...

बढिया लगा !!