Thursday, July 16, 2009

ईश्वर हमारी चेतना में कैसे समाए

विनय बिहारी सिंह

एक कथा है। एक युवक ईश्वर साक्षात्कार के लिए बेचैन हो गया। उसकी बेचैनी इतनी बढ़ गई कि वह एक घने जंगल में गया और पेड़ों को ही संबोधित कर चिल्लाने लगा- मुझे ईश्वर के दर्शन चाहिए। हे ईश्वर तुम कहां हो? इस तरह कई दिन बीत गए। लेकिन युवक हतोत्साहित नहीं हुआ। वह चिल्लाने लगा- हे ईश्वर, मैं जानता हूं कि तुम- कण कण में हो, लेकिन मुझे अनुभव नहीं हो रहा है। मुझे अपना अनुभव कराओ, मुझे दर्शन दो, वरना मैं यूं ही चिल्लाता रहूंगा। युवक थकता भी नहीं था क्योंकि उसके भीतर ईश्वर को पाने की दीवानगी थी। तभी उधर से एक संत गुजरे। उन्होंने युवक से पूछा- बेटा तुम चाहते क्या हो? युवक ने कहा- मैं ईश्वर को जानना चाहता हूं। उनके दर्शन करना चाहता हूं। आप यह कृपा कर सकते हैं? संत ने कहा- तुम उत्तर की ओर वाली निकटतम बस्ती में जाओ, वहां एक बढ़ई तुम्हें इसका जवाब दे देगा। युवक तो बेचैन था ही। तुरंत पहुंच गया गांव में। उसने देखा कि उस गांव का एक मात्र बढ़ई सितार बना रहा है। उसे इसका ईश्वर से कोई संबंध नहीं दिखा। युवक आगे बढ़ा- देखा बढ़ई का बेटा उसी सितार पर चढ़ाने के लिए टीन को आकार दे रहा है। थोड़ा औऱ आगे बढ़ा तो देखा- बढ़ई का दूसरा बेटा सितार के तार माप कर काट रहा है। इन बातों से भी उसे ईश्वर का कोई संबंध नहीं दिखा। तभी पास के घर से उसे सितार पर बजाई गई एक मधुर धुन सुनाई पड़ी और वह धुन उसके भीतर उतर गई। वह मुग्ध था। वह उस घर में गया जहां से यह धुन सुनाई पड़ रही थी। अंदर जाकर देखा- एक बुजुर्ग स्त्री यह सितार बजा रही है। स्त्री ने सितार बजाना बंद कर दिया और युवक से पूछा- उसे क्या चाहिए। युवक ने जंगल में संत से मिलने की बात कही। अपनी बेचैनी के बारे में बताया। स्त्री ने कहा- जब तुम यह मानते हो कि ईश्वर हर जगह है तो फिर तुम्हारा हृदय भी तो वह जगह हो सकती है। तुम अपने दिल को ईश्वर भक्ति में क्यों नहीं पिघला देते। जब ऐसा कर दोगे तो ईश्वर से तुम्हारा साक्षात्कार अवश्य होगा। जब ईश्वर में लय होगा तो फिर तुम नहीं रहोगे। सिर्फ ईश्वर रहेंगे। तुम्ही ईश्वर के रूप हो जाओगे- प्रेम गली अति सांकरी, जामे दो न समाय।।

3 comments:

रंजना said...

Waah .........kya baat kahi.....bahut bahut sundar....

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

बहुत ख़ूब!!

RAJENDRA said...

Mujhe bahut achha laga hai ji dhanyavad