विनय बिहारी सिंह
एक बार स्वामी विवेकानंद दक्षिण भारत की यात्रा पर गए और एक जिग्यासु राजा के अतिथि बने। राजा ने जानबूझ कर स्वामी जी के सम्मान का बहाना करते हुए एक नर्तकी बुलाई और उनके सामने उसे नृत्य पेश करने को कहा। स्वामी विवेकानंद मुस्कराते हुए वहां बैठे रहे। जब नृत्य कार्यक्रम खत्म हुआ तो राजा ने उनसे पूछा- कैसा लगा नृत्य? नर्तकी सुंदरी थी न? स्वामी विवेकानंद बोले- हां, अगर जगन्माता की शक्ति नहीं होती, नर्तकी नाचती ही कैसे? और सुंदरी दिखती ही कैसे? इसीलिए इस नर्तकी में मुझे जगन्माता की झलक दिखाई पड़ी। इसीलिए तो मैं लगातार इसके पैर देख रहा था। मानों जगन्माता के ही पैर हों। नर्तकी तो उनके पैरों पर ही गिर पड़ी। राजा भी स्तब्ध हो गए। फिर राजा ने कहा- लोग जो देवी- देवताओं के फोटो की पूजा करते हैं, .यह मुझे एकदम बकवास लगता है। फोटो की पूजा क्या करना है? सामने ही एक राजा की तस्वीर लगी थी। स्वामी विवेकानंद ने राजा से पूछा- यह किसकी तस्वीर है? राजा बोले- मेरे पिता जी की। विवेकानंद बोले- तो इसे अगर कोई जूते मारे तो आपको कैसा लगेगा? राजा का मुंह गुस्से से लाल हो गया। वह बोला- मैं उसकी हत्या कर दूंगा। विवेकानंद बोले- क्यों। ये तो आपके पिता जी नहीं हैं। यह तो सिर्फ फोटो है। इसकी इतनी इज्जत क्यों करते हैं? अब राजा की समझ में आया कि यह तो उसके प्रश्न का उत्तर है। स्वामी विवेकानंद ने कहा- जैसे आप अपने पिता जी के फोटो के प्रति इतने संवेदनशील हैं वैसे ही भक्त अपने देवी- देवता के प्रति संवेदनशील होता है। और फोटो की पूजा करने में बुराई क्या है? क्या भगवान नहीं जानते कि फोटो के रूप में उन्हीं की पूजा हो रही है? वे तो सर्वग्याता हैं। अब राजा की समझ में आया कि देवी- देवताओं के फोटो की पूजा का मतलब क्या है। फिर राजा ने प्रश्न किया- अच्छा लोग तीर्थ क्यों करने जाते हैं? मंदिरों में पूजा क्यों करते हैं? भगवान तो सभी जगहों पर हैं। घर में भी तो पूजा कर सकते हैं। या मन ही में क्यों नहीं पूजा करते? तब स्वामी विवेकानंद ने कहा- आपके घर में पंखा क्यों झला जा रहा है? हवा तो सब जगह है। उसी से काम चलाइए न। जिस तरह आराम के लिए हवा का पंखा चलाया जाता है, उसी तरह भगवान का आशीर्वाद पाने के लिए हर उपाय जरूरी है। तीर्थ भी, मंदिर में पूजा भी। लेकिन हां, अगर मन में अटल भक्ति, श्रद्धा और विश्वास नहीं है तो कोई भी तीर्थ, मंदिर में पूजा या पाठ या मंत्र जाप व्यर्थ हो जाएगा।
1 comment:
स्वामी विवेकानंद ने कहा है-----
"पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता और एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान।' ध्यान के द्वारा ही हम इंद्रियों पर संयम रख सकते हैं। शम, दम और तितिक्षा अर्थात मन को रोकना, इन्द्रियों को रोकने का बल, कष्ट सहने की शक्ति और चित्त की शुद्धि तथा एकाग्रता को बनाए रखने में ध्यान बहुत सहायक होता है।"
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