Thursday, July 9, 2009

महिलाओं को क्यों कहा जाता है मातृ शक्ति

विनय बिहारी सिंह

इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि महिलाएं मातृ शक्ति हैं। यह पूरा ब्रह्मांड जग्न्माता ने धारण कर रखा है। वही हमें भोजन देती हैं और जरूरत की अन्य चीजें भी। यहां एक संत की बहुत अच्छी बात मुझे याद आ रही है। उन्होंने कहा था- जब भी मैं किसी सुंदर स्त्री को देखता हूं तो मन में यही ख्याल आता है कि अगर मेरी अभी मृत्यु हो गई तो हो सकता है दुबारा मैं इसी सुंदरी के गर्भ से उसका बेटा हो कर पैदा होऊं। बस यह ख्याल आते ही मेरे मन में उसके प्रति माता का भाव आता है। इस संत के विचार सुन कर मैं सुखद आश्चर्य में था। हां, सच ही तो है। हम भी किसी न किसी माता के पेट से ही तो आए हैं। इसीलिए महिलाओं को मातृ शक्ति कहा जाता है। इसी मातृ शक्ति का अनंत स्वरूप हैं मां काली या मां दुर्गा। हम उन्हीं की संतानें हैं। तब आप कहेंगे कि जब हम अनंत शक्तिशाली मां की संतानें हैं तो जीवन में इतनी परेशानी क्यों है? तो इसका उत्तर है- यह दुख जगन्माता ने नहीं दिए हैं। यह सारे तनाव और दुख हमने खुद पैदा किए हैं। जो भी काम ईश्वर को साक्षी मान कर नहीं किया जाता, ईश्वर को समर्पित करके नहीं किया जाता, उसका परिणाम सुखद नहीं होता। एक बार कोई काम करने से पहले ईश्वर के चरणों में उसे रख तो दीजिए। लेकिन सभी ऐसा नहीं कर पाते। क्योंकि उन्हें लगता है कि वे बहुत बुद्धिमान हैं, ईश्वर से क्या इजाजत लेना। मैं तो कर ही लूंगा- का अहंकार उनमें बना रहता है। बस, यही हमें बाद में डंसता रहता है। हमें परेशान करता रहता है। इन सबसे मुक्ति पाने का एकमात्र उपाय है ईश्वर की शरण में जाना। जैसे आप किसी ट्रेन या प्लेन में चढ़ते हैं तो अपना सामान आप हाथ में टांगे नहीं रहते। उस ट्रेन या प्लेन में ही रखवा देते हैं। उसी तरह जब आप ईश्वर की शरण में जाएंगे तो आपके सारे दुख, तनाव, तकलीफें और भय ईश्वर दूर कर देंगे।

1 comment:

Unknown said...

dhnya hain aapke vichaar
aapki drishti
aur aapka aalekh !
________________badhaai !