Wednesday, January 18, 2012

छंद में रहना चाहिए वरना द्वंद्व में रहना पडे़गा

विनय बिहारी सिंह



आज एक साधु ने कहा- ईश्वर छंद हैं, बाकी सब कुछ द्वंद्व है। सुन कर बहुत अच्छा लगा। साधु का कहना था- छंद का अर्थ है ईश्वर के प्रेम में पड़ जाना। उन्हीं के लिए जीना। उनका ही चिंतन करना। संसार का काम करिए लेकिन भगवान को दिल में रखिए। रामकृष्ण परमहंस ने कहा है- जैसे कोई स्त्री अपने प्रेमी के लिए तड़पती रहती है, जैसे मां किसी कारण से दूर गए अपने बच्चे को देखने के लिए तड़पती रहती है, उसी तरह ईश्वर के लिए तड़पना चाहिए। यही है- छंद। जैसे कोई नौकरानी किसी के घर काम करती है और घर के मालिक के बच्चे को दुलारती है और कहती है- यह मेरा सोना है... मेरा लाडला है। लेकिन मन में वह जानती है कि उसका अपना बेटा तो घर पर है। उसका दिल और दिमाग अपने बेटे में रहता है। ठीक उसी तरह संसार का काम करना चाहिए और दिल व दिमाग भगवान में लगाए रहना चाहिए। यही छंद से भरा जीवन है। यदि जीवन में छंद का अभाव हो गया तो जीवन द्वंद्व बन जाएगा। ये दो शब्द- छंद और द्वंद्व सचमुच कितने महत्वपूर्ण जान पड़ते हैं। या तो छंद में रहिए या द्वंद्व में। दुनिया में कोई भी द्वंद्व में नहीं रहना चाहता। तनाव में नहीं रहना चाहता। सभी प्रेम और शांति से रहना चाहते हैं। साधु ने कहा- ईश्वर से मिलन कीजिए। वहीं है अनंत प्रेम और अनंत शांति।

1 comment:

Anavrit said...

इस्वरीय आस्था के प्रति यह अनुप्रयोग सुन्दर लगा । धन्यवाद ।