Tuesday, January 10, 2012

आनंद से उत्पत्ति

विनय बिहारी सिंह




योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया के सिद्ध सन्यासी स्वामी शुद्धानंद जी ने पिछले रविवार को जो प्रार्थना कराई वह थी- हे प्रभु, मैं आनंद से आया हूं। आनंद में रहता हूं और अंत में आनंद में विलीन हो जाऊंगा।
यह प्रार्थना बहुत अच्छी लगी। हालांकि हमारे जीवन में तनाव और परेशानियां आती और जाती रहती हैं। लेकिन सच तो यही है कि ईश्वर ने हमें आनंद के समुद्र से पृथ्वी पर भेजा था। फिर हमारी कामनाएं, वासनाएं जागीं और हम इस मीठे जहर को पीते रहे। समझते रहे कि यही अमृत है और पी पीकर मरते रहे। कष्ट भोगते रहे। फिर जन्म लेकर फिर कोई कामना पाल ली और उसकी पूर्ति के लिए फिर जन्म लेना पड़ा। बार- बार जन्म लेकर बार- बार मरना। यही क्रम चलता रहा। आज तक चल रहा है। लेकिन हमारा मूल स्रोत आनंद है। हमें उसकी तरफ लौटने के लिए भगवान की शरण में जाना ही पड़ेगा। ईश्वर को दृढ़ता से पकड़े रहने से ही हमारा उद्धार होगा। इसके सिवा और कोई उपाय नहीं है।

No comments: