विनय बिहारी सिंह
भगवत् गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है- श्रद्धवान लभते ज्ञानम....। जिस साधक में गहरी श्रद्धा है, भगवान को वही जान सकेगा। जो दिन रात संशय में रहता है, उसका मन स्थिर नहीं हो पाता। भगवान को जानने के लिए मन और शरीर की स्थिरता जरूरी है। इसीलिए पातंजलि योग सूत्र में प्रारंभ में ही कहा गया है- योग चित्त की वृत्तियों का निरोध है। यानी जब तक चित्त की वृत्तियां शांत नहीं होंगी, योग संभव नहीं है। ज्यादातर लोगों का चित्त चंचल रहता है। गीता में भगवान ने कहा है कि जब तक इंद्रियां शांत नहीं होंगी, चित्त शांत नहीं होगा। इसीलिए ऋषियों ने कहा है कि भक्त को चाहिए कि अपनी इंद्रियां, मन और बुद्धि भगवान को समर्पित कर दे। फिर उसे कोई चिंता नहीं। उसके रक्षक भगवान हो गए। भक्त जितनी देर ध्यान में बैठेगा, भगवान के बारे में ही सोचेगा। जैसे समुद्र में मिलने के बाद नदी अपना अस्तित्व खो देती है, ठीक उसी तरह भक्त जब भगवान में मिलता है तो वह ईश्वरमय हो जाता है।
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