Wednesday, January 11, 2012
करुणा की मिसाल
विनय बिहारी सिंह
आज दिल को छू लेने वाली एक कथा पढ़ी। एक वेश्या, जीसस क्राइस्ट से मिलना चाहती थी। लोग उससे दूर रहते थे। लेकिन उसके दिल में जीसस के प्रति अपार श्रद्धा थी। एक दिन वह किसी की भी परवाह न करते हुए जीसस के पास आई। सारे लोग उससे दूर हट गए। लेकिन जीसस क्राइस्ट ने उसका स्वागत किया। वेश्या, जीसस के पैर पकड़ कर रोती रही। उसके आंसुओं से उनका पैर भींग गया। वेश्या ने जीसस के पांव अपने बालों से पोंछ दिया। इसके बाद उसने जीसस के पांव में मरहम लगाया। जीसस चुपचाप उसे आशीर्वाद देते रहे। वह जीसस क्राइस्ट चरम श्रद्धा और भक्ति में इतनी डूब गई कि उसे बैकुंठ मिला।
मुझे यह कथा पढ़ कर एक अन्य कथा याद आ गई। भगवान शिव का एक भक्त उनके दर्शन के लिए दिन रात बेचैन रहता था। एक दिन उससे रहा नहीं गया। वह शिव जी के मंदिर में गया और दिल उड़ेल कर संपूर्ण भक्ति भावना से पूजा की। इसके बाद वह जप करने बैठ गया। उसने तय कर लिया था कि जब तक भगवान दर्शन नहीं देंगे, वह वहां से उठेगा नहीं। जप करते- करते रात हो गई। न जाने क्या हुआ कि भक्त को अचानक गहरी नींद आ गई। बैठे बैठे ही। फिर स्वप्न देखा- भगवान शिव प्रकाश के रूप में उसके सामने हैं। वे उससे कह रहे हैं- जिद क्यों करते हो। मैं तो सदा तुम्हारे साथ हूं। फिर उसकी नींद टूट गई। वह फिर जप करने लगा। लेकिन तभी उसे लगा- भगवान कितने कृपालु हैं। देखो, मेरी मनोकामना पूरी कर दी। मुझे दर्शन दे दिया। तब तक मंदिर का पुजारी आया और उससे घर जाने को कहा क्योंकि मंदिर को बंद करने का समय हो गया था। शिवजी का वह भक्त प्रेम और प्रसन्नता से वहां से उठा और घर की तरफ जाने लगा। तभी पुजारी ने उसे रोका और कहा- मंदिर में आज विशेष प्रसाद बना है। खाकर जाइए। एक खूब सुंदर थाली में उसे प्रसाद मिला। ऐसा स्वादिष्ट प्रसाद तो उसने अपनी जिंदगी में नहीं खाया था। प्रसाद देने वाला एक लंबे जटा जूट वाला साधु था। बाद में उसने इस साधु को कभी नहीं देखा। आश्चर्य, यह प्रसाद सिर्फ उसे ही मिला। वह तब से आश्चर्य करता है- क्या प्रसाद देने वाले स्वयं भगवान शिव ही थे?
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