Saturday, January 7, 2012

45 के बाद दिमागी क्षमता में कमी शुरु

(courtesy- BBC Hindi service)



ताज़ा शोध में पता चला है कि व्यक्ति का दिमाग़ 45 साल की उम्र से ही कमज़ोर होना शुरू हो सकता है.

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपे शोध के अनुसार लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज के शोधकर्ताओं को 45 से 49 साल की आयु वाले पुरुष और महिलाओं की दिमाग़ी क्षमताओं में 3.6 प्रतिशत की गिरावट देखी गई.


शोध में भाग लेने वाले 45 से 70 साल तक के 7000 महिलाओं और पुरूषों की याददाश्त, शब्दावली और समझ दस साल की समयावधि में परखी गई.

अलज़ाइमर्स सोसाइटी का कहना है कि दिमाग में बदलाव होने से भूलने की बीमारी का पता लगाने में मदद मिलेगी या नही इस पर शोध ज़रूरी था.

इससे पहले हुए शोध में पता चला था कि 60 साल की उम्र से पहले याददाश्त में कमी नही आती है.

लेकिन नए शोध में पता चला है कि यह बीमारी अधेड़ उम्र से भी शुरू हो सकती है.

डिमेंशिया शोधकर्ताओं के अनुसार- डिमेंशिया यानी भूलने की बीमारी का इलाज शुरूआती दौर में ही ज़्यादा कारगर साबित होता है.

इस शोध के नतीजों में पता चला है कि शब्दावली को छोड़कर सभी श्रेणियों में दिमागों की क्षमता में कमी आई है, बूढ़े लोगों में दिमागी क्षमता के क्षय की गति और तेज़ देखी गई.


शोध में पाया गया कि 65 से 70 साल तक के पुरूषों की तार्किक क्षमता में 9.6 फ़ीसदी की गिरावट देखी गई जबकि इसी उम्र की महिलाओं में यह आंकड़ा 7.4 फ़ीसदी का रहा.

वहीं 45 से 49 साल की आयु वाले पुरूषों और महिलाओं की तार्किक क्षमता में 3.6 फ़ीसदी की गिरावट देखी गई.

इस शोध का नेतृत्व करने वाली प्रोफ़ेसर अर्चना सिंह मेनौक्स के अनुसार शोध से पता चला है कि डिमेंशिया होने से दो-तीन दशक पूर्व से ही दिमाग की क्षमता का क्षय शुरू हो जाता है.

रोकथाम

विशेषज्ञों के अनुसार लोगों को इस बीमारी के शरीर और दिमाग पर हावी हो जाने का इंतज़ार नही करना चाहिए
प्रोफ़ेसर अर्चना सिंह मेनौक्स ने कहा, “हमें ये पता करने की ज़रूरत है कि किन लोगों के याददाश्त में आम से ज़्यादा गिरावट हुई है और इसे कैसे रोक सकते है. इसकी रोकथाम कुछ हद तक संभव होती है.”

उनहोंने कहा, “डिमेंशिया से ग्रस्त होने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी संभव है. दिमाग के काम करने का संबंध जीवन शैली से भी है. खतरे को जल्दी से जल्दी पहचानना ज़रूरी है.”

अलज़ाइमर्स सोसाइटी में रिसर्च मैनेजर डॉक्टर ऐनी कॉर्बेट ने कहा, “ताज़ा शोध अपने पीछे कुछ और सवाल छोड़ गया है. हमें और शोध करने की ज़रूरत है जिससे हम यह पता लगा पाएंगे कि दिमाग में होने वाले बदलाव किस तरह से डिमेंशिया के बारे में पता लगाने में मदद करेगा.”

शोधकर्ता और यूसीएल के आम जन स्वास्थ संकाय के प्रोफ़ेसर लिंडसे डेविस के अनुसार लोगों को इस बीमारी के शरीर और दिमाग पर हावी हो जाने का इंतज़ार नही करना चाहिए, बल्कि जैसे ही याददाश्त में कमी के संकेत मिले उसका उपचार कराना चाहिए.

1 comment:

vandana gupta said...

जानकारी परक आलेख,।