विनय बिहारी सिंह
नवरात्रि के बारे में इस ब्लाग पर पिछले साल विस्तार से चर्चा हो चुकी है। आइए इस बार इसका एक और पक्ष लें। नवरात्रि के नौ दिन- तीन भागों में विभक्त होते हैं। पहले तीन दिन देवी दुर्गा, फिर तीन दिन देवी लक्ष्मी और आखिरी तीन दिन देवी सरस्वती की पूजा होती है। सभी जानते हैं कि मां दुर्गा, महिषासुर मर्दिनी हैं। उन्होंने विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली राक्षस को खत्म किया था। वे मनुष्य के भीतर बैठे महिषासुर का भी वध करती हैं। अगले तीन दिन मां लक्ष्मी की पूजा होती है। लक्ष्मी यानी धन। मनुष्य धन का बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय में लगे। अपने हित में भी लगे तो कुछ कल्याणकारी काम में भी लगे। पहले लोग धर्मशालाएं, तालाब, अस्पताल और अन्य अनेक लोकहित के काम करते थे। अब एक तबका ऐसी सेवा बेकार मानने लगा है। वह सिर्फ अपना हित साधना ही धर्म मान बैठा है। नतीजा यह है कि वह तमाम तरह के तनावों से गुजर रहा है। लेकिन फिर भी लोकहित में एक रुपया लगाने की उसकी इच्छा नहीं है। सारा धन खा कर बैठ जाओ। यह ईश्वर की कृपा का अनादर है। यदि अपनी कमाई का सिर्फ एक रुपया भी उचित जगह पर दान किया जाए तो अच्छा है। अल्प दान देने से भी धन बढ़ता है। हमारे यहां दान को भी धर्म कहा गया है।
अंतिम तीन दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। मां सरस्वती, ग्यान की देवी हैं। ग्यान के बिना सबकुछ अधूरा है। ग्यान निरंतर बढ़ता रहता है। हमारे अनुभव और जो कुछ भी हम देखते- सुनते हैं वह हमारे ग्यान में शामिल होता जाता है। इस तरह नौ दिनों की नवरात्रि को मां रूपी ईश्वर या मां दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के रूप में मनाते हैं।
लेकिन यह पूजा सिर्फ मूर्ति पूजा नहीं है। मां दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के प्रतीकों को गहरे समझ कर ईश्वरोन्मुखी होना ही इसका उद्देश्य है। दुर्गापूजा का त्यौहार हमें और ज्यादा ईश्वर के करीब लाता है। उत्तर भारत में रावण का पुतला जलाया जाता है। इस दिन को विजयादशमी के रूप में मना कर लोग अपने भीतर के रावण को राम की कृपा से मार डालते हैं। यहां भी अच्छाई की बुराई पर जीत को ही रेखांकित किया जाता है।
2 comments:
bahut badiya prastuti..
NAVRATRI kee haardik shubhkamnayen!
बहुत सुन्दर चर्चा।
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