Tuesday, September 13, 2011

उन्हें पाप पूर्ण विचार छू नहीं सकते


विनय बिहारी सिंह



रामचरितमानस में तुलसीदास ने लिखा है- राम राम कहि जे जमुहांहीं, तिनहिं न पाप पुंज समुहाहीं।।
यानी जो राम राम कहते हैं, उन्हें पाप पूर्ण विचार छू नहीं सकते। तो कैसे राम राम कहने पर ऐसा होता है? जब आपका हृदय राम राम पुकारे। भगवत गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है- मेरी शरण में आओ, सारी समस्याएं हल हो जाएंगी। तुम्हें पूर्ण शांति मिलेगी। पूर्ण सुख मिलेगा। रामचरितमानस में तुलसीदास का तात्पर्य यह है कि राम की शरण में जाने के बाद पूर्ण आनंद मिलेगा। फिर सदा के लिए सुख। सांसारिक सुखों की एक सीमा है। उसके आगे कोई भी सुख उबाऊ हो जाता है। मनपसंद भोजन एक हद तक ही अच्छा लगेगा। उसके बाद उससे विरक्ति हो जाएगी। मन भर गया। फिर वह स्वादिष्ट व्यंजन उपेक्षित हो गया। कोई मनपसंद ड्रेस एक दिन, दो दिन पहनेंगे, लेकिन फिर उससे मन ऊब जाएगा। लेकिन भगवान का आनंद ऐसा है कि उससे कभी मन नहीं ऊबेगा। नित्य नवीन आनंद। हर क्षण नया आनंद और वह आनंद कभी खत्म नहीं होगा। निरंतर चिर काल तक चलता रहेगा।
बनवास के समय भगवान राम जहां जहां जाते थे, उन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी। क्यों? उनका सौंदर्य मनुष्य का सीमित सौंदर्य नहीं था। वह सौंदर्य अलौकिक था। आप भगवान की तरफ जितनी देर तक देखेंगे, उनके सौंदर्य में नयापन दिखता रहेगा। आपकी आंखें उनके रूप माधुर्य से हटने का नाम नहीं लेंगी। इसीलिए उनका एक नाम- मनमोहन भी है। जो मन को मोह लेता है। भगवान हैं ही ऐसे। एक बार जिसने उनसे अपना हृदय जोड़ दिया बस, उसे वे छोड़ते नहीं हैं। आनंद से सराबोर करते रहते हैं। दिल जोड़ने के लिए करना क्या होगा? भक्ति का चुंबक प्रयोग में लाना होगा। अपने हृदय को भक्ति के प्रभाव से चुंबक बना दीजिए। भगवान अपने आप खिंचे आएंगे।

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