Friday, September 9, 2011

ध्यान यानी ईश्वर से प्रगाढ़ संपर्क

विनय बिहारी सिंह




परमहंस योगानंद जी ने कहा है कि ध्यान का अर्थ है ईश्वर से गहरा संपर्क। ईश्वर के संपर्क के बिना जीवन व्यर्थ है। परमहंस जी की बातें दिल को छू लेती हैं। हम अपनी सीमित दुनिया में ही परेशान रहते हैं। जबकि ईश्वर असीम प्रेम हैं और उनसे संपर्क न कर अगर हम सिर्फ और सिर्फ सांसारिक प्रपंचों में उलझे रहेंगे तो परेशान होना या तनाव में होना स्वाभाविक ही है। जहां गहरी शांति है, अगर हम वहां नहीं जाकर उस जगह जाएं जहां भारी शोर- गुल है तो शांति कहां से मिलेगी। यह संसार दिन रात शोर गुल, दौड़- भाग और बेचैनियों से भरा हुआ है। और हमें रहना यहीं है। हम कई सारी परिस्थितियां बदल नहीं सकते। तब क्या करना चाहिए? तनाव से बचने का क्या उपाय है? उत्तर है- भगवान की शरण में जाना। भगवान ही हमें किसी भी परिस्थिति से उबार सकते हैं। चाहे वह परिस्थिति कितनी भी कठिन या अटल क्यों न दिखती हो, भगवान हमें उससे क्षण भर में बचा सकते हैं। लेकिन मुश्किल है कि हम भगवान की शऱण में नहीं जाते। उन पर पूर्ण विश्वास करके अगर हम उनकी शऱण में जाएं तो निश्चय ही हमें परम शांति मिलेगी। लेकिन शर्त यह है कि हमें थोड़ी देर के लिए ठहरना पड़ेगा। यानी? शांत और स्थिर चित्त हो कर ईश्वर की शरण में जाना पड़ेगा। मन औऱ शरीर शांत करना पड़ेगा। गहरी शांति में उतर कर ईश्वर को पुकारना पड़ेगा। ईश्वर तो हमारी प्रतीक्षा कर ही रहे हैं। बस शांत और स्थिर हो कर पुकारने भर की देर है।

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