Monday, September 26, 2011

क्रिया योग के पुनरुद्धार की १५०वीं वर्षगांठ


विनय बिहारी सिंह

the great Gurus

इस वर्ष श्री श्री परमहंस योगानंद द्वारा स्थापित संस्था योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया क्रिया योग के पुनरुद्धार की १५०वीं वर्षगांठ मना रही है। परमहंस जी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक- योगी कथामृत- में लिखा है- पौराणिक कथा में जिस प्रकार गंगा ने स्वर्ग से पृथ्वी पर उतर कर अपने तृषातुर भक्त भगीरथ को अपने दिव्य जल से संतुष्ट किया, उसी प्रकार १८६१ में क्रिया योग रूपी दिव्य सरिता हिमालय की गुह्य गुफाओं से मनुष्यों की कोलाहलभरी बस्तियों की ओर बह चली।
सन १८६१ में बनारस के महान योगी, श्यामाचरण लाहिड़ी (लाहिड़ी महाशय के नाम से प्रसिद्ध) को हिमालय में उनके अमर गुरु महावतार बाबाजी ने क्रिया योग की दीक्षा दी और उन्होंने इसके अभ्यास के द्वारा ईश्वर का पूर्ण बोध प्राप्त किया। इस विग्यान के प्रसार का दिव्य उत्तरदायित्व लाहिड़ी महाशय को प्राप्त हुआ। लाहिड़ी महाशय से स्वामी श्री युक्तेश्वर और आगे परमहंस योगानंद तक क्रिया योग का प्रसार अटूट रूप से चलता रहा है। क्रिया योग सच्चे जिग्यासुओं को दैवीय सांत्वना और एकात्मता देता है। लाहिड़ी महाशय १८६१ में हिमालय की तलहटी में एक सैन्य अड्डे पर एकाउंटेंट के रूप में सेवा दे रहे थे। वहीं पर एक दिन वे घूमते हुए पहाड़ों में रास्ता भूल गए। उसी समय लाहिड़ी महाशय को एक दिव्य गुफा के बाहर उनके गुरु महावतार बाबाजी मिले। दिव्य आभा से युक्त। उन्होंने ही बताया कि उनका हिमालय में स्थानांतरण दैवी कारण से हुआ है। ताकि उन्हें वे क्रिया दीक्षा दे सकें। लाहिड़ी महाशय विवाहित थे। महावतार बाबाजी ने उन्हें इसलिए दीक्षा दी ताकि संसार में यह संदेश जाए कि पारिवारिक व्यक्ति भी योगी हो सकता है। इसके लिए उसे घर परिवार छोड़ कर जंगल में जाने की जरूरत नहीं है। लाहिड़ी महाशय अपने गुरु, महावतार बाबाजी से मिले और ध्यान के सर्वोच्च प्राचीन विग्यान में उनसे दीक्षा ली। अंधेरे युग में शताब्दियों तक लुप्त होने के बाद बाबाजी ने फिर से इसकी खोज की और इसे क्रिया योग का नाम दिया। उन्होंने श्री लाहिड़ी महाशय से कहा था कि यह वही विग्यान था जिसे सदियों पहले कृष्ण ने अर्जुन को दिया था।
एक संक्षिप्त परिचय-
महावतार बाबाजी- क्रिया योग के लुप्त विग्यान के प्रवर्तक।
लाहिड़ी महाशय- क्रिया योग के पुनर्जागरण में प्रमुख (क्रिया योग का पुनर्जागरण उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में शुरू हुआ था और आज तक जारी है।)
स्वामी श्रीयुक्तेश्वर- लाहिड़ी महाशय के अति उन्नत शिष्य तथा परमहंस योगानंदजी के गुरु, इन्होंने एक ग्यानावतार (ग्यान के अवतार) की आध्यात्मिक अवस्था प्राप्त की।
परमहंस योगानंद- योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया (वाइएसएस) व (विदेशों में) सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप (एसआरएफ) गुरुओं की परंपरा में अंतिम गुरु औऱ इन दोनों संस्थाओं के संस्थापक।
परमहंस योगानंद जी ने १९१७ में योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया की स्थापना की थी।

1 comment:

Sawai Singh Rajpurohit said...

ज्ञानवर्धक और सार्थक पोस्ट

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