Tuesday, September 27, 2011

भगवान बड़े या समस्या



विनय बिहारी सिंह



आमतौर पर जो लोग ध्यान करते हैं उनकी शिकायत रहती है कि ज्योंही वे आंख बंद कर ध्यान करने लगते हैं, दिमाग में तमाम तरह की अपनी समस्याएं आने लगती हैं। यह काम बाकी है तो वह काम बाकी है। बस पूरे समय यही सब चलता रहता है। जब बहुत देर हो जाती है तो आंखें खोलते हैं। तब पता चलता है कि पूरे समय तो उन्होंने समस्या पर ध्यान किया। भगवान तो एक क्षण भी याद नहीं आए। तब वे अफसोस करते हैं कि यह तो बड़ा गड़बड़ हो रहा है। क्या करें? संतों ने इसका बहुत अच्छा उपाय बताया है। उन्होंने कहा है- इस सृष्टि के मालिक भगवान हैं। हर काम का अपना समय होता है। जब आप खाना पका रहे होते हैं तो सिर्फ उसी पर ध्यान केंद्रित कीजिए। जब आप कोई कविता लिख रहे हैं तो पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित कीजिए। तो जब इस सृष्टि के मालिक भगवान हैं तो सबसे बड़े और शक्तिशाली वही हुए। तो जाहिर है उन्हीं के बारे में सोचना चाहिए। तब आप समस्या के बारे में कैसे सोचते हैं? आखिर जिस समस्या के बारे में आप सोच रहे हैं, उसे भगवान ही दूर कर सकते हैं। और आप बैठे हैं भगवान का ध्यान करने। तो उन्हीं के बारे में सोचिए। उन्हीं को श्रद्धा और भक्ति से याद कीजिए। उन्हीं से प्रार्थना कीजिए। समस्या पर बैठ कर जलेबी बनाने से तो कोई लाभ नहीं । हां, जब ध्यान खत्म हो जाए तब समस्या का समाधान करने के लिए कोई कदम उठाइए। लेकिन ध्यान में तो सिर्फ ध्यान ही करना चाहिए। खाना पकाते समय भोजन तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। लेकिन आप खाना पकाते हुए ध्यान विचलित करेंगे तो निश्चय ही भोजन उतना स्वादिष्ट नहीं बनेगा जितना बनना चाहिए। ध्यान का अर्थ है भगवान में पूरी तरह से लय। यह तभी होगा जब आपके दिमाग में भगवान व्याप्त हो जाएंगे। यह गहन भक्ति से ही संभव है।

No comments: