Thursday, September 22, 2011

देह बुद्धि, मन बुद्धि


विनय बिहारी सिंह


ऋषियों ने कहा है- मनुष्य इंद्रिय, मन और बुद्धि से ईश्वर को नहीं जान सकता। वे इंद्रियातीत तो हैं ही, मन और बुद्धि से परे हैं। लेकिन ईश्वर प्रेम के चुंबक से खिंच आते हैं। अनन्य और गहरा प्रेम। उनके सिवा और कुछ न दिखे, न सुनाई दे और न महसूस हो। वे सभी भूतों में हैं। ईश्वर सर्वव्यापी, सर्व ग्याता, सर्व शक्तिमान हैं। सदा चैतन्य हैं। इसीलिए तो हमारे मन में क्या है, वे अच्छी तरह जानते हैं। हम तो रात को सो जाते हैं, लेकिन वे सदा जाग्रत हैं। रामचरित मानस में भगवान शिव ने ईश्वर की इस तरह व्याख्या की है-

पग बिनु चलै, सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै बिधि नाना।।

भगवान के पैर नहीं हैं लेकिन वे सर्वत्र मौजूद रहते हैं,
उनके कान नहीं हैं, लेकिन वे सबकी सुनते हैं। उनके हाथ नहीं हैं, लेकिन सारे कार्य करते हैं।
यह अद्भुत और मनोहारी व्याख्या है। भगवान ने हमें बनाया और फिर हमें स्वतंत्र इच्छा शक्ति दे दी। विवेक दे दिया।
अब हम अपनी इच्छा से जो कर्म करते हैं, उसका फल भोगते हैं। जब हम अपने विवेक को दबा देते हैं तो बुरे कर्म करते हैं। लेकिन जब हमारा विवेक शक्तिशाली होता है तो हम अच्छे कार्य करते हैं। इन्हीं कार्यों का फल मिलता है। गीता में कहा है- भगवान के लिए काम करो। अपने लिए नहीं। जब कर्ता नहीं बनोगे तो भोक्ता भी नहीं होगे। लेकिन जब यह मानोगे कि मैंने किया तो भोक्ता भी तुम्हीं बनोगे। यानी मैं या ईगो या अहंकार का त्याग।

1 comment:

vandana gupta said...

वाह …………जिस दिन मै की बन्दिश से इंसान आज़ाद हो जायेगा खुदा को पा जायेगा।