Tuesday, September 6, 2011

घृणा करना नुकसानदेह

विनय बिहारी सिंह



रामकृष्ण परमहंस ने कहा है- लज्जा, भय और घृणा के नष्ट हुए बिना भगवान नहीं मिलते। आइए घृणा पर उनकी एक बात का स्मरण करें। एक महिला थी जो ज्यादातर लोगों से घृणा करती थी। उसे कोई भी व्यक्ति पसंद नहीं था। वह किसी में कोई तो किसी में कोई दुर्गुण देखती थी। ऐसा बहुत दिनों तक चला। अचानक ऐसा हुआ कि उस महिला को एक कठिन रोग हो गया। अब स्थिति उल्टी हो गई। सारे लोग उस महिला से घृणा करने लगे। कोई उसके आसपास नहीं रहना चाहता था। उसके कमरे को तो छोड़ दीजिए, उसके घर के आसपास तक लोग जाना नहीं चाहते थे। रामकृष्ण परमहंस ने कहा- इसीलिए किसी से घृणा नहीं करनी चाहिए। हर व्यक्ति में भगवान मौजूद हैं। वे कहते थे- सिर्फ प्रेम करो। मनुष्य, पशु, पक्षी, कीट- पतंग सबसे प्रेम करने का अभ्यास करना चाहिए। हर जगह ईश्वर हैं। इस प्रसंग को पुस्तक में पढ़ कर एक व्यक्ति ने कहा- मेरे लिए सबसे प्रेम करना संभव नहीं है। वहीं एक साधु खड़े थे। उन्होंने इसका उत्तर दिया- ठीक है। आप प्रेम न करें। लेकिन कृपया घृणा न करें। किसी से भी नहीं। घृणा, घृणा को जन्म देती है। मनुष्य चाहे वह किसी भी जाति और धर्म का क्यों न हो, कभी भी घृणा नहीं करनी

1 comment:

Pallavi saxena said...

सटीक अभिवक्ती एक दम सही संदेश देती हुई आपकी पोस्ट हर मनुष्य में भगवान बसता है,इसलिए एक इंसान को दुसर इसान से कभी भी ग्र्हणा नहीं करनी चाहिए।