विनय बिहारी सिंह
आज बस से यात्रा करते हुए देखा कि सामने मां काली का चेहरा एक फ्रेम में लगाया गया है। सिर पर सुनहरा मुकुट है। पश्चिम बंगाल में मां काली घर- घर में पूजी जाती हैं। लेकिन घरों में मां की मूर्ति नहीं फोटो है। मूर्ति स्थापना और उसमें प्राण प्रतिष्ठा कर नियमित और विधिवत पूजा में अनेक सावधानियां होती हैं। नियम होते हैं। इसलिए मूर्ति के बजाय गृहस्त मां काली के फोटो की ही पूजा करते हैं। कोलकाता में हर थोड़ी दूर पर मां काली का मंदिर आपको मिल जाएगा। लंबे समय मां की मूर्ति देखते- देखते उससे प्रेम होना स्वाभाविक है। अब ऐसी स्थिति हो गई है कि मां काली की मूर्ति दिखाई पड़ी और मन उनके चरणों में चला गया। ध्यानमग्न लेटे शिव जी की छाती पर मां काली का पैर पड़ा औऱ वे जीभ निकाल कर अपनी गलती का अहसास कर रही हैं। उनके चार हाथ हैं। दो दाएं और दो बाएं। दाएं हाथों में एक हाथ वरदान दे रहा है तो दूसरा अभय दान दे रहा है। (इसीलिए उन्हें मां अभया भी कहा जाता है)। बाएं हाथों में एक हाथ में तलवार है (बुरी शक्तियों के संहार का प्रतीक) तो दूसरे में मुंडमाल (माइंड समर्पित किए बिना मां के दर्शन नहीं होते)। मां काली मुंडमाला पहने हुए हैं (मन और बुद्धि जो दे चुके हैं, वे मां के हृदय में रहते हैं)। यही है मां काली की मूर्ति।
मैं उन्हें अभया मां के रूप में देखता और महसूस करता हूं। इसीलिए मां काली मुझे अच्छी लगती हैं। वे भक्तों को अभय प्रदान करती हैं। मां काली अपने भक्तों का जिम्मा खुद ले लेती हैं।
कुछ लोग कहते हैं कि मां काली को देख कर डर लगता है। मां को देख कर डर क्यों? वे जगन्माता हैं। सबकी माता। माता तो पुत्र या पुत्री का नुकसान नहीं कर सकती। हां, रामकृष्ण परमहंस ने कहा है कि उग्र काली की मूर्ति गृहस्थों को अपने घर में नहीं रखना चाहिए। क्योंकि मां काली की विधिवत पूजा होनी चाहिए। गृहस्थ ऐसा कर नहीं पाते। लेकिन मंदिर में जाकर पूजा करना तो शुभ है। घर में पूजा न कर अनेक लोग आस- पास के मंदिरों में पूजा करते हैं।
1 comment:
बहुत बढिया बताया।
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