विनय बिहारी सिंह
आज पता नहीं क्यों शून्यवाद की याद आ रही है। बौद्ध धर्म में भी इससे मिलती- जुलती तत्व व्याख्या मिलती है। आइए सबसे पहले प्रत्यक्ष उदाहरण से समझें। आपकी मेज पर एक गिलास रखा है। वह खाली है। लेकिन वह क्या सचमुच खाली है? मान्यता है कि कभी कोई चीज खाली रह ही नहीं सकती। पानी या दूध या कोई द्रव अगर गिलास में होगा तो दिखेगा। लेकिन हवा तो नहीं दिखेगी? गिलास खाली नहीं है। उसमें हवा है। जब आप उसमें पानी डालेंगे तो वह हवा की जगह ले लेगा। यानी गिलास कभी खाली नहीं है। कुछ नहीं है तो उसमें हवा है। शून्यवाद कहता है कि जब आपके दिलोदिमाग में एक कीमती सूक्ष्म चीज हो तो वह शून्य की स्थिति है। वह एक चीज क्या हो सकती है जो कीमती भी हो, सूक्ष्म भी हो और स्थाई टिक सके? वह है- ईश्वर। भगवान। शून्य का अर्थ यहां कुछ नहीं बिल्कुल नहीं है। शून्य यानी कुछ सार्थक। यह शून्यवाद। तो ईश्वर से कैसे नाता जोड़ें? मेरे पास एक ई मेल आया है। उसमें प्रश्न है- लाख कोशिश करने पर भी मन नहीं लगता। ईश्वर पर मन टिके तो कैसे? इसका उत्तर है- मन वहीं टिकता है जहां आनंद मिलता है। सुख मिलता है या अच्छा लगता है। ईश्वर को अगर आप दूर की चीज मानेंगे तो ऐसे ही होगा। एक अपरिचय वाली सत्ता में ध्यान लग ही नहीं सकता। अपरिचय क्यों? क्योंकि कई लोग समझते हैं कि ईश्वर आसमान में है। या पता नहीं कहां है। वह हमारी सुनता भी है कि नहीं। चलो लोग पूजा कर रहे हैं, हम भी पूजा कर लेते हैं। क्या पता कल्याण हो जाए। लेकिन वहां भी शंका ही रहती है। प्रसाद, फूल और अगरबत्ती आदि प्रस्तुत कर रहे हैं, लेकिन मन में चल रहा है कि पता नहीं क्या होगा। ऐसी पूजा किसी काम की नहीं। इससे अच्छा है कि आप मंदिर जाएं ही नहीं। पूजा करें ही नहीं। अस्थिर दिमाग से किया गया कोई भी काम व्यर्थ होता है। उसका कोई फल नहीं होता। पहले तो आपको विश्वास होना चाहिए कि ईश्वर है। तब आपको कोई लाभ होगा। और यही बात वैग्यानिकों ने भी कही है। उन्होंने कहा है कि अगर आपको डाक्टर में विश्वास नहीं है तो फिर वह सही दवा भी देगा तो आपको उतना फायदा नहीं होगा, जितना होना चाहिए। जो भी सार्थक काम कीजिए पूरे मन से कीजिए। पूरी लगन से कीजिए। वरना छोड़ दीजिए। गीता में कहा है- संशयात्मा विनश्यति। संशय हो तो छोड़ दीजिए। ईश्वर को मत मानिए। प्रपंच में फंसे रहिए। लेकिन अगर आपका ईश्वर में विश्वास है तो पूरे मन, पूरी आत्मा के साथ उसे प्रेम कीजिए। ईश्वर हमारी सांसों में है। इससे ज्यादा प्रमाण क्या चाहिए। क्या आप जीवन में जब तक चाहे सांस ले सकते हैं। नहीं। जिस दिन मृत्यु को आना होगा आकर आपकी सांस बंद कर देगी। यह आपके हाथ में नहीं है। तो ईश्वर आपकी सांस में है। उसे जबसे प्यार करने लगेंगे, आपको सुख मिलने लगेगा। ईश्वर तो इंतजार कर रहा है।
4 comments:
ईश्वर हर जगह है, वो जिसे शून्य कहते हैं वहां भी।
संशय्वाद हर बात के लिये खराब है या तो हाँ या तो नाँ ।
अति सुन्दर विश्लेषण शून्यवाद का सरल और सुबोध
इश्वर, भगवान, आत्मा, परमात्मा गॉड, अल्लाह – या आप जो कुछ भी कहे या विश्वास करें ! इस तरह का कोई भी सर्वोच्च सत्ता वास्तव में नहीं. पूरा संसार दुःखमय है, तो इस संसार से परे कोई परमानन्दं सर्वशक्तिमान सत्ता केसे हो सकता है ?
Post a Comment