विनय बिहारी सिहं
निश्चय ही दीपावली अपने भीतर प्रकाश को और गहरे उतारने का त्यौहार है और प्रकट रूप से घर और आसपास दीप या विद्युत प्रकाश से जगमगा देने का त्यौहार भी है। दीपावली के दिन लक्ष्मी जी की पूजा तो होती ही है, व्यवसायी अपने बही- खातों को नया करते हैं। हालांकि अब बही- खातों का जमाना खत्म होता जा रहा है। अब तो कंप्यूटर ही बही- खाता हैं। लेकिन तब भी प्रतीकात्मक ढंग से हम दीपावली के दिन पुरानी चीजों को बदल कर नया करते हैं और लक्ष्मी जी से प्रार्थना करते हैं कि वे कृपालु बनी रहें। आध्यात्मिक लोग मां लक्ष्मी से प्रार्थना करते हैं कि उनकी आध्यात्मिक पूंजी लगातार बढ़ती रहे और जल्दी ही वह दिन आए जब ईश्वर और वे एक हो कर अनंत आध्यात्मिक साम्राज्य का आनंद उठाएं। लेकिन जहां तक कोलकाता की बात है, यहां दीपों या प्रकाश का यह त्यौहार शांति और आनंद के बजाय पटाखों और आर्केस्ट्रा पार्टियों के के भारी शोर के बीच बीता। अगले दिन रविवार था, उस दिन भी यही हाल था। मैंने हर रविवार की तरह उस दिन भी अपना समय मठ में बिताया। वहां शांति और आनंद का माहौल था। आखिर क्यों बदल गया है दीपावली का त्यौहार इस तरह? क्यों तेज और बम की तरह के पटाखों ने इस त्यौहार को प्रदूषण से भर दिया है? मेरे एक परिचित ने कहा- लक्ष्मी का स्वागत करने के बजाय पटाखे पर फिजूलखर्ची करना अगर आनंद मनाना है तो फिर दीपावली को पटाखावली क्यों न कहें? देश के अन्य शहरों से भी पटाखों के शोर की खबरें मिल रही हैं। त्यौहारों पर शोर की परंपरा के बजाय, शांति और माधुर्य की परंपरा की ओर लौटना अब भी संभव है, अगर आत्मा की सुनें तो। आप सब लोगों की शुभकामनाओ का ही असर है - मेरी दीपावली बहुत सुखद और प्रेम से पूर्ण बीती।
3 comments:
बिल्कुल सही कहा है आपने। शोर के साथ सम्साधनों की बर्बादी भी खूब हो रही है। पशु-पक्षियों को कितना कष्त होता है, किसी को कोई परवाह ही नहीं है।
आप के विचार से मैं सहमत हूँ ।
दीपावली प्रकाश का उत्सव है, ज्योति जो निरंतर ऊपर उठने का संदेश देती है । इसे शोर के बजाय शांति से और बाहर की ज्योति से अंदर की ज्योति की ओर ले जाने वाले उत्सव के रूप में मनाया जाना चाहिए । भीतर के प्रकाश से जो रोशन है वही बाहर शांति ला सकता है ।
सहमत हूं आपसे .. दीपावली पर इतना शोर नहीं होना चाहिए !!
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