विनय बिहारी सिंह
मान लीजिए हमारे घर का कोई व्यक्ति बाहर गया है। रात हो रही है। हम उसका इंतजार कर रहे हैं। मन में तरह तरह की खराब बातें आ रही हैं। कहीं कुछ हो तो नहीं गया? ऐसा क्यों? कोई अच्छी बात भी तो हो सकती है। लेकिन क्यों बुरे ख्याल ही आते हैं? क्योंकि हम हमेशा एक डर में जी रहे हैं। लेकिन संतों ने कहा है कि डर डर कर जीना अपना नुकसान करना है। एक बार एक बस में एक अंधे व्यक्ति ने इतनी सुरीली आवाज में राम राम गाया था कि वह भूलता नहीं है। एक दिन एक ईश्वर भक्त से मुलाकात हुई। वे एक महीने के लिए पत्नी व बच्चों को छोड़ कर दूर जा रहे थे। मैंने कहा- आपके पास तो मोबाइल भी नहीं है। आपके घर में फोन नहीं है। क्या बाहर बेफिक्र होकर रह सकेंगे। वे आनंद में हंसने लगे और कहा- मैं कौन होता हूं रक्षा करने वाला। असली रक्षक तो भगवान है। उसकी कृपा रही तो मेरे परिवार को कुछ नहीं होगा। और मेरे पास अगर दस मोबाइल हों और भगवान की कृपा नहीं है तो मैं और मेरा परिवार परेशान ही रहेंगे। उनका उत्तर बहुत अच्छा लगा। सच है। ईश्वर रक्षा कर रहे हों तो फिर चिंता किस बात की? गीता में है कि अभय वही रहता है जो ईश्वर की शरण में हो। जो ईश्वर की शरण में है उसे और कोई चिंता नहीं। बस वह अपना काम करता जाता है और रक्षा करना प्रभु कहता रहता है। चाहे जैसे भी हो, ईश्वर को याद करना शुभ है। कई लोग जम्हाई लेते हुए राम राम कहते हैं। यह राम राम सुनने में इतना मीठा लगता है कि आप मुग्ध हो जाएं। दमदम रेलवे स्टेशन के पास एक बूढ़ा इतने लय में हरे राम, हरे राम राम राम हरे हरे गा रहा था कि मैं थोड़ी देर के लिए ठिठक गया। कहां से पाया है इस आदमी ने इतना मीठा गला? मुग्ध भाव से उसे सुनता रहा। हालांकि अगले दिन उसके मुंह से यह मीठा शब्द नहीं सुन सका। आज भी उसे देखा। पर वह अब राम राम नहीं कहता। सिर्फ ललाट पर टीका लगाए रहता है। तो हमें अपने दिमाग में खराब चिंतन आने नहीं देना चाहिए। ईश्वर पर भरोसा करना चाहिए और सावधानी बरतते रहना चाहिए।
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