Saturday, October 10, 2009

उम्र यूं ही तमाम होती है

विनय बिहारी सिंह

किसी ने कहा है-

रोज सुबह से शाम होती है,

उम्र यूं ही तमाम होती है।।


क्या हम लोग सुबह उठने से लेकर रात सोने तक कभी सोचते हैं कि हमारी जिंदगी का मकसद क्या है? क्यों हमने जन्म लिया? क्या यूं ही जिंदगी गुजार देने के लिए? या कि इच्छाओं की पूर्ति करते हुए मर जाने के लिए? नहीं। हममें से ज्यादातर लोग यह नहीं सोचते। वे मशीन की तरह सुबह उठ कर चाय पीते हैं, अखबार पढ़ते हैं, टीवी देखते हैं, गप्पबाजी करते हैं। फिर खाना खाते हैं और कामकाज पर निकल जाते हैं या अगर खाली हैं तो दिन में भी सो जाते हैं। वे कहते हैं कि मन नहीं लग रहा है। बोर हो रहे हैं। जी हां। अगर जीवन में कोई मकसद न हो तो बोरियत होगी ही। लेकिन जो ईश्वर को पाने के लिए जीते हैं और जीवन यापन के लिए कोई रोजगार, व्यवसाय या नौकरी करते हैं वे कभी बोर नहीं होते। उनका दिन और उनकी रातें आनंद में कट जाती हैं। वे ईश्वर के लिए ही जीते हैं। उनके जीवन के केंद्र में ईश्वर ही होते हैं। परमहंस योगानंद ने लिखा है- तू ध्रुवतारा मम जीवन का। यानी ईश्वर ही जीवन के ध्रुवतारा हैं। केंद्रीय लक्ष्य। ऐसा व्यक्ति जो कुछ भी करता है- ईश्वर के लिए ही करता है। वह जानता है कि इस पृथ्वी पर वह कुछ वर्षों के लिए ही आया है। उसे फिर यहां से चले जाना है। अगर इच्छाएं अतृप्त रहीं तो दुबारा इस पृथ्वी पर आना पड़ेगा। किसी और घर में जन्म लेकर। किसी और चेहरे और परिचय के साथ। पुनरपि जन्मम, पुनरपि मरणम। जननी जठरे, पुनरपि शयनम ( आदि शंकराचार्य)। कई लोग कहते हैं कि ईश्वर को कैसे केंद्रीय आकर्षण का तत्व बनाएं। कोई सिनेमा हो, कोई खाने की वस्तु हो, कोई मजे वाली चीज हो तो केंद्रीय तत्व बना सकते हैं। ईश्वर को कैसे केंद्रीय तत्व बनाएं? उन्हें कैसे बताएं कि इस समूची सृष्टि के मालिक ईश्वर ही हैं। जो कुछ भी हो रहा है, उन्हीं के इशारे पर। तब कुछ लोग कहते हैं कि ईश्वर के बारे में बातें करना पिछड़ापन लगता है। हां, सिनेमा वगैरह के बारे में बातें करना उन्हें आधुनिक लगता है। क्या विचित्र स्थिति है। ईश्वर के बारे में बात करना पिछड़ापन है? तो फिर अपने बारे में बातें करना भी पिछड़ापन ही है। क्यों तब कहते हैं कि मैंने ये किया, मैंने वो किया। आप भी ईश्वर से ही हैं। यह पूरा ब्रह्मांड उन्हीं के इशारे पर चल रहा है। कुछ लोग यह कहते नहीं थकते- किस्मत में होगा तो काम हो जाएगा। यानी किस्मत की बात करना आधुनिकता है और ईश्वर की बात करना पिछड़ापन। ईश्वर के खिलाफ बोलना प्रगतिशीलता है और ईश्वर की स्तुति पिछड़ापन। तो ऐसी बुद्धि की बलिहारी है। ऐसे लोग उस परम सुख के बारे में क्या जानेंगे जो ईश्वर के संपर्क में मिलता है। जिसने वह मीठा फल खाया ही नहीं वह स्वाद क्या जानेगा। वह दुनिया भर का प्रपंच जानेगा, लेकिन दिव्य आनंद के बारे में उसे कुछ नहीं मालूम। क्योंकि इस आनंद को पाने के लिए गहरी शांति में जाना जरूरी है। तर्क, मन की चंचलता को विराम देना होता है, तब ईश्वर की तरफ की यात्रा शुरू होती है।

2 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत आभार इस आलेख के लिए.

kulu said...

ISwere ka praapat kaisa kiya ja sakta hai.