विनय बिहारी सिंह
अक्सर यह प्रश्न पूछा जाता है कि एकाग्र कैसे हों। टोटल कंसंट्रेशन कैसे आए? जब आप कोई मनपसंद चीज पढ़ते हैं तो उसमें पूरी तरह डूब जाते हैं। आपको कोई डिस्टर्ब करता है तो आपको अच्छा नहीं लगता। या कोई भी मनपसंद काम करते हैं तो उसमें लीन हो जाते हैं। यही एकाग्रता है। तब हमें सोचना है कि ईश्वर में एकाग्रता कैसे हो? कई लोग कहते हैं कि ईश्वर तो अनंत है, हम कहां ध्यान लगाएं। संतों ने कहा है और गीता में भी लिखा है कि अपनी रीढ़ की हड्डी सीधी करके बैठ जाइए। आपकी टुड्डी सीधी हो। यानी आप सीधे सामने की ओर देख रहे हों। तब आंख बंद कीजिए और दोनों भृकुटियों के बीच ध्यान कीजिए। पहले पहल आपकी आंखों की पुतली नीचे हो जाएगी क्योंकि ऊपर देखने का अभ्यास नहीं है। लेकिन धीरे- धीरे लगातार अभ्यास से आपको आदत पड़ जाएगी। अगर यह संभव न हो तो बिना सिर झुकाए, ठीक जैसे ऊपर लिखा गया है, वैसे ही बैठ कर हृदय में ध्यान लगाएं। कल्पना कीजिए कि आपके हृदय के बीच एक अत्यंत सुंदर कमल खिला हुआ है। यह कमल ईश्वरीय है। आप इसके बीचोबीच अपने इष्टदेवता या देवी की कल्पना भी कर सकते हैं। शास्त्रों में लिखा है कि थोड़ी देर भी ऐसी एकाग्रता रखने का बड़ा अच्छा फल मिलता है। मन शांत रहता है और तनाव खत्म हो जाते हैं।
लेकिन यह अभ्यास करते हुए मन में सघन भक्ति जरूरी है।
1 comment:
अच्छी पोस्ट लिखी है।
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