Thursday, October 8, 2009

पिछले मंगलवार को हुआ एक चमत्कार



विनय बिहारी सिंह


खबर दो दिन पुरानी है। लेकिन यह याद दिलाती है कि ईश्वर किस तरह मनुष्य को बचा लेता है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पिछले मंगलवार को फिर एक चमत्कार हुआ। रात ग्यारह बजे की घटना है। गमरिया रेलवे स्टेशन जब आने को था तो अट्ठाइस साल की गर्भवती महिला को शौच महसूस हुआ। वह शौचालय गई। इसी दौरान शौचालय में ही उसने एक बच्चे को जन्म दिया। लेकिन बच्चा शौचालय के पैन में गिर गया और ट्रेन से बाहर रेल पटरियों के बीच चला गया। मां तड़प कर तेज रफ्तार से चल रही अप टाटा- छपरा एक्सप्रेस के एस-२ कोच से कूद पड़ी। औरत को कूदते देख लोग चिल्लाए। उन्हें लगा कि औरत आत्महत्या कर रही है। लोगों ने ट्रेन की जंजीर खींच दी। एक किलोमीटर आगे जाकर ट्रेन रुकी। औरत को खोजने ट्रेन के सैकड़ो लोग पीछे की तरफ दौड़े। खोजबीन कर रहे लोगों ने देखा कि मां जिसका नाम रिंकूदेवी राय है, अपने बच्चे को गोद में लेकर सिकुड़ी हुई बैठी है। कुछ लोगों ने ट्रेन को रोके रखा था। मां- बच्चे को खरोच तक नहीं आई है। मां तो अपने बच्चे को पाकर आनंद में है। अपनी अधिकतम रफ्तार में चल रही ट्रेन से तुरंत जन्मा एक बच्चा गिर पड़ा। सभी जानते हैं कि तुरंत जन्मे बच्चे के अंग- प्रत्यंग कितने कोमल होते हैं। बच्चा रेल पटरी पर पत्थर के टुकड़ों पर गिरा। उसका अंग भंग हो सकता था। उसके मोह में बच्चे की मां कूदी। ट्रेन अधिकतम रफ्तार में थी। उसे भी कुछ नहीं हुआ। ट्रेन ज्योंही पुरुलिया स्टेशन पर रुकी, रेलवे अस्पताल के डाक्टरों की टीम वहां मौजूद थी। पुरुलिया के स्टेशन मैनेजर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा है- डाक्टरों ने मां- बच्चे की अच्छी तरह जांच की। उन्हें कुछ नहीं हुआ है। है न यह चमत्कार?

5 comments:

Vinashaay sharma said...

बाकई में चमत्कार ।

Vinashaay sharma said...

बाकई में चमत्कार ।

Dr. Shreesh K. Pathak said...

माँ की ममता के आगे होनी भी विवश होती है.....

चौपटस्वामी said...

आशा से भरा बेहद आनन्दपूर्ण समाचार है . पर इसे चमत्कार मत बनाइए . खबर के मुताबिक कुछ तकनीकी वजहों से ट्रेन मुश्किल से १५-२० किलोमीटर की रफ़्तार से चल रही थी . तब भी मां का नवजात शिशु के लिये चलती ट्रेन से कूदना प्रेम और साहस की पराकाष्ठा तो है ही .

कुछ वर्ष पहले चीन में ऐसी ही घटना हुई थी . ट्रेन लगभग दो-ढाई किलोमीटर आगे जाकर रुकी . सुबह तीन-चार बजे ट्रेन के गार्ड व कुछ रेलकर्मियों के साथ कुछ लोग वापस वहां गये बच्चा मामूली खराशों के बावजूद एकदम ठीक-ठाक था .

जीवन ऐसा ही है जीने लायक पर दुर्घटनाओं से भरा और उसके बीच आशा के ऐसे उजले उदाहरण भी हैं . प्रेरक पोस्ट .

शरद कोकास said...

यह चमत्कार नही है यह सन्योग है कि वह बच्चा और उसकी माँ रेल की धीमी गति की वज़ह से बच गये । हमारे यहाँ की सड़कों की हालत के बारे मे कहा जाता है कि यह इतनी खराब है कि इन पर किसी स्त्री को यात्रा के दौरान वैसे ही प्रसव हो जाये ।