विनय बिहारी सिंह
ऋषि वाल्मीकि को आदि कवि कहा जाता है। अनेक विद्वानों का मत है कि उन्होंने संस्कृत में रामायण लिखने के अलावा योग वशिष्ठ भी लिखा। भगवान राम की कथा को उन्होंने इतने मनोहारी ढंग से लिखा है कि संस्कृत काव्य के विद्वान पढ़ कर बार बार दंग रह जाते हैं। एक तो उनकी भाषा इतनी संगीतमय है और शैली बेजोड़ कि आप उसमें खो जाते हैं। राम के चरित्र में आप रम जाते हैं। बहरहाल, गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि अतिशय दुराचारी भी अगर अपने कुकर्मो को छोड़ कर मेरा अनन्य भक्त हो जाए तो उसको मुक्ति मिल जाती है। वाल्मीकि का बचपन का नाम रत्नाकर था। एक बार वे जंगल में गए और वहां खो गए। एक शिकारी को उन पर दया आई और वह उन्हें अपने घर ले गया। फिर बेटे की तरह रखा। रत्नाकर जब बड़े हुए तो एक सुंदर कन्या से उनकी शादी हुई। परिवार का भरण पोषण करने के लिए वे डकैत बन गए। जंगल में जो मुख्य रास्ते से गुजरता, वे उसका सारा सामान लूट लेते। एक बार नारद मुनि उस रास्ते से गुजर रहे थे। रत्नाकर ने उनको लूटना चाहा। लेकिन उनके पास कुछ था ही नहीं। नारद मुनि वीणा बजा कर मधुर धुन में राम नाम गाने लगे। डकैत रत्नाकर पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने उससे पूछा कि तुम यह जो पाप कर रहे हो, इसमें तुम्हारे परिवार के लोग क्या भागीदार होंगे? रत्नाकर को लगा कि हां, प्रश्न तो ठीक ही है। उसने अपने परिजनों से पूछा- क्या तुम लोग मेरे पाप में भागीदार हो? पत्नी बोली- बिल्कुल नहीं। तुम्हारा काम है, परिवार का भरण पोषण करना। करो। कैसे करते हो, यह तुम जानो। जो करोगे, वही भरोगे। हम उसमें भागीदार क्यों हों? बच्चों ने भी यही जवाब दिया। अब रत्नाकर की आंखें खुलीं। वह दौड़ा नारद मुनि के पास गया और उनके पैरों पर गिर पड़ा। नारद मुनि ने रत्नाकर को मंत्र दीक्षा दी। कहा कि तुम- राम राम कहते रहो। रत्नाकर के मुंह से राम जैसा शब्द भी नहीं निकल पा रहा था। तब नारद मुनि ने कहा- तो ठीक है तुम मरा मरा ही कहो। रत्नाकर तुरंत मरा मरा कहने लगा। नारद मुनि ने कहा- जब तक मरा मरा कहो, भगवान राम का ध्यान करो। वही सबके मालिक हैं। रत्नाकर मरा, मरा कहता रहा। मरा, मरा कहने से मुंह से राम, राम का उच्चारण होने लगा। यही रत्नाकर बाद में ऋषि वाल्मीकि बने। आदि कवि और रामायण के सुप्रसिद्ध रचनाकार। जो ठीक से राम राम नहीं कह सकते थे, वे संस्कृत के विद्वान हो गए। यह ईश्वर की कृपा नहीं तो और क्या है? इसी कथा को तरह तरह से कहा जाता है। कोई कहता है कि नारद मुनि नहीं कोई और साधु थे। उन्हें रत्नाकर ने पेड़ से बांध दिया। फिर घर आकर पूछा। तब जाकर साधु के पैर पर गिरा। कथा जैसे भी कही जाए। इसका मूल उद्देश्य यही है कि ईश्वर की कृपा से मूर्ख औऱ क्रूर व्यक्ति भी परम विद्वान औऱ ईश्वर का जानकार बन सकता है।
जापर कृपा राम के होई।तापर कृपा सबहिं के होई।।
4 comments:
जापर कृपा राम के होई।तापर कृपा सबहिं के होई।।
यही सार है
दीपावली की शुभकामनाये
ता कहु कछु प्रभु अगम नहीं जा पर तुम अनुकूल
दीपोत्सव का यह पावन पर्व आपके जीवन को धन-धान्य-सुख-समृद्धि से परिपूर्ण करे!
दीपावली की शुभ कामनाओ के साथ आप के "लेखन" को साधुवाद
आभार जानकारी का.
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल ’समीर’
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