Thursday, October 22, 2009

इस तरह हम भूल जाते हैं अपनी स्थाई पूंजी

विनय बिहारी सिंह

रमन नाम का एक किसान था। उसे पटवारी ने पांच साल के लगान भुगतान की रसीद दी और कहा कि इसे ठीक से रख देना, कभी भी काम आएगी। रमन ने उसे एक जगह रख दिया। उसके बाद कई कागजात आते रहे, वह उन्हें जहां तहां रखता गया। दो साल बाद उसे उन्हीं पांच सालों के लगान की नोटिस मिली जिसका भुगतान वह कर चुका था और जिसकी रसीद उसके पास थी। रमन ने कहा कि यह वसूली की नोटिस तो गलत है। मैं इसका भुगतान कर चुका हूं। तब संबंधित अधिकारी ने कहा कि उसकी रसीद लाओ, हम अपनी गलती सुधार लेंगे। रमन घर आया और रसीद ढूंढ़ी। लेकिन उसे कहीं रसीद नहीं मिली। अधिकारियों ने उसे एक महीने का समय दिया। रमन ने सारा घर छान मारा। कहीं वह रसीद नहीं मिली। हार कर उसे दुबारा लगान देना पड़ा। इसके १० दिन बाद उसे पुरानी वाली रसीद मिल गई। वह दौड़ा- दौड़ा संबंधित अधिकारी के पास आया और पुरानी रसीद दिखाई। फिर लिखा- पढ़ी शुरू हुई। उसे वह पैसा दुबारा मिला कि नहीं मालूम नहीं हो सका। लेकिन इतना मालूम हुआ कि अपनी ओर से लिखा- पढ़ी करने में कई बार रसीद और आवेदन पत्रों की जिराक्स कापी करानी पड़ी। अगर रमन रसीद न भूलता तो यह झमेला होता ही नहीं। कबीरदास ने लिखा है कि भगवान कहते हैं-
मोको कहां ढूंढे रे बंदे। मैं तो तेरे पास में।
यानी ईश्वर हमारे पास ही है। लेकिन हम उन्हें महसूस नहीं कर पाते हैं क्योंकि हमारा दिमाग इतना चंचल है कि क्षण भर एक जगह नहीं ठहरता। इसे एक जगह रोकने से ही हमारा सारा काम बन जाएगा। रामकृष्ण परमहंस ने कहा है- जिसका हृदय निर्मल नहीं है, उसे विश्वास हो ही नहीं सकता कि ईश्वर है। सब जानते हैं कि यह सृष्टि, दिन और रातें, ऋतुएं और मनुष्य ही नहीं सभी जीवों का जीवन जिस तरह उदय और अस्त यानी जन्म और मरण के बीच चल रहा है, वह निश्चय ही कोई चला रहा है। अपने आप कुछ नही हो सकता। बिना किसी शक्ति और इंटेलिजेंस के कुछ भी संभव नहीं है। फिर भी लोग कह देते हैं- कभी कभी लगता है कि भगवान हैं, लेकिन कभी कभी लगता है भगवान नहीं हैं। संत कबीर ने कहा है-
काहे रे नलिनी तू कुम्हलानी।जल में जन्म, जल में वास।जल में नलिनी तोर निवास।।
यानी ईश्वर हम ईश्वर में ही तो हैं। फिर क्यों दुखी रहते हैं? क्योंकि मन स्थिर नहीं कर पाते। इतने चंचल मन से ईश्वर को पकड़ना कैसे संभव है? जब ईश्वर को महसूस करेंग तभी तो शांति और आनंद को जानेंगे। वरना हम अपनी थाती भूले रहेंगे। हमारे हृदय में भगवान है, इसे हम भूल चुके हैं। याद तो तभी आएगी जब मन शांत होगा। मन तब शांत होगा जब लगेगा कि यह जो मन है, वह अनेक अनावश्यक बातों में उलझा रहता है। जरा एक दिन मन की चौकीदारी करके देखिए तो सही। कहां कहां जाता है यह?

2 comments:

Anonymous said...

मन की चौकीदारी करना अपने बस मे तो नही।

शरद कोकास said...

अरे ये गलती से बटन दब गय .. ऊपर वाले हमी है देखो अब कैसे करे मन की चौकीदारी ?