Wednesday, December 25, 2013

Happy Christmas

A very warm and happy Christmas my dear friends. May Lord Jesus shower all His blessings always on you. May Christ always present in your hearts.

Tuesday, December 10, 2013

Life is struggle for joy


Vinay Bihari Singh

Paramahansa Yogananda ji has said- Life is struggle for joy. Many times, I find- it is true. I am passing through difficult phase of life. I am searching groom for my daughter who woks in IBM, Calcutta. In the search of suitable groom,I am wandered in different cities but could not find any boy. So according to my Guru Paramahansa Yogananda this can be the test and trials of Divine mother. Divine mother loves us. Thats why she put us in tests and trials to let us learn test and trials. To think like this- I am  feeling peaceful. This is a good way to pass through difficult days.

Saturday, September 7, 2013

जीवन की गति न्यारी



      मित्रों, काफी दिनों तक अपने ब्लाग से अलग रहा। लेकिन दुबारा यह अपने पास खींच ही लाया। इस बीच कई नए अनुभव  प्राप्त हुए। उनकी चर्चा फिर कभी। आज भगवत गीता पढ़ रहा था। भगवान कृष्ण ने कितनी सुंदर बातें कहीं हैं इस पवित्र पुस्तक में। भगवान ने कहा है- मेरा भक्त कभी नष्ट नहीं होता। कैसा भक्त? जो अनन्य भक्ति करता हो। यानी उसकी हर गतिविधि में भगवान का स्मरण हो। ईश्वर ही जिसके आधार हों, वह व्यक्ति कभी नष्ट नहीं होता। भगवान स्वयं उसकी रक्षा करते हैं। पढ़ कर अच्छा लगा। एक औऱ प्रसंग है- भगवान कहते हैं कि जो सुख औऱ दुख में, सर्दी और गर्मी में, मान और अपमान में सम हो वह  मेरा अत्यंत प्रिय है। जो भय, घृणा या कामना से रहित हो गया हो वह मेरा अत्यंत प्रिय है। भगवत गीता तो हमें रोज ही पढ़नी चाहिए।

Saturday, July 6, 2013

कब्ज कैसे दूर करें





कब्ज हमेशा से मनुष्य के लिए परेशानी का कारण रहा है। लेकिन इसे तोड़ने का एक उपाय पा कर मुझे बहुत खुशी हो रही है। क्या करें कि कब्ज टूटे?  या कब्ज ही न हो।
   योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया के संस्थापक और मेरे गुरुदेव परमहंस योगानंद जी का फार्मूला अत्यंत कारगर है। फलों पर या बिना चीनी के फलों के रस पर एक दिन उपवास करें। सुबह औऱ शाम एक या दो चम्मच इसबगोल की भूसी पानी में घोल कर पी लें। यह सप्ताह में सिर्फ एक ही दिन करना है। अन्यथा इसबगोल के भूसी की आदत पड़ जाएगी। सिर्फ एक दिन। इससे आदत भी नहीं पड़ेगी और पेट भी अच्छी तरह साफ हो जाएगा। अगले दिन हल्की सी खिचड़ी खाएं। तो मन प्रसन्न रहेगा। कई लोग उपवास के अगले दिन गरिष्ठ भोजन कर लेते हैं क्योंकि उन्हें काफी भूख लगी होती है।  लेकिन थोड़ा सा संयम बरत कर खिचड़ी खाने वाले दिन के अगले दिन से सामान्य भोजन शुरू करें तो काफी फायदा होता है। इसे आप आजमा कर देख सकते हैं। निश्चित फायदा होगा। हां, उपवास के दौरान पर्याप्त पानी पीने से और ज्यादा लाभ होगा।

Tuesday, July 2, 2013

संगीत का ककहरा


मित्रों, पिछले दिनों एक बहन ने अपने घर ले जाकर मुझे हारमोनियम बजाने की शिक्षा दी। अभी तो बस एक ही दिन शिक्षा ली है। लेकिन यह अचानक हुआ। उस बहन ने खुद आ कर मुझसे कहा कि चलिए मैं आपकों हारमोनियम सिखा देती हूं। ईश्वर की असीम अनुकंपा। उस बहन का नाम है- पिऊ घोष भौमिक। पहले दिन मैंने सा रे ग म प ध नी सा का अभ्यास किया। हारमोनियम के स्ट्रिंग्स पर हाथ आजमाया। मैंने पाया कि सा रे ग म  इत्यादि गाते वक्त जो संतुलन चाहिए वह मुझमें नहीं था। लेकिन सिखाने वाली बहन ने मुझे वह संतुलन सिखा दिया। तब लगा कि यह तो एक और क्षेत्र है जिसके बारे मैं बिल्कुल नहीं जानता था। एक नया संसार।  ठीक इसी तरह जीवन में भी एक सकारात्मक लय की जरूरत है। वह लय तभी आ सकती है जब ईश्वर के प्रति उत्सुकता हो। ईश्वर, ईश्वर औऱ ईश्वर।

Thursday, June 6, 2013

आपने सोचा और वो उड़ा हेलिकॉप्टर...

COURTESY-   BBC  Hindi

 


ये हेलिकॉप्टर इंसान के दिमाग से आने वाली कमांड पर चलेगा
शोधकर्ताओं ने सोच की शक्ति का ऐसा इस्तेमाल कर दिखाया है कि हेलिकॉप्टर के नियंत्रण के लिए मस्तिष्क का इस्तेमाल  रिमोट-कंट्रोल के तौर पर किया जा सकेगा.
दुनिया भर में शोधकर्ता सोच की शक्ति को इलेक्ट्रिक सिग्नल में बदलने की कोशिश में लगे हैं और इस आविष्कार के साथ उन कोशिशों में एक नया अध्याय जुड़ गया है.
काल्पनिक और वास्तविक दुनिया के बीच अब एक नायाब रिश्ता जुड़ गया है, जिसके बारे में कुछ वर्षों पहले सोचा भी नहीं जा सकता था. इस आविष्कार का मकसद है मानसिक रूप से कमज़ोर लोगों की मदद करना और साथ ही वीडियो गेम खेलने के नायाब तरीके इजाद करना.
इस शोध में दिमाग की विद्युत किरणों को कैद किया गया.
हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि ये उपकरण खुद-ब-खुद ही जान सकता है कि आपके दिमाग में क्या चल रहा है.
बल्कि इसके लिए एक  इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को तैयार किया जाता है जिसे दिमाग की विद्युत किरणों का स्वरूप पढ़ने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है.
इस उपकरण की मदद से इंसान के दिमाग में चल रही सोच को हेलिकॉप्टर के साथ जोड़ा जाता है.

दिमागी कंट्रोल

"हमारा मकसद है उन लोगों की या मरीज़ों की मदद करना जो चल-फिर नहीं पाते हैं. इस तकनीक के ज़रिए हम व्हीलचेयर को कंट्रोल करना चाहते हैं, टीवी को नियंत्रित करना चाहते हैं और साथ ही अगर हो सके तो शरीर के किसी कृत्रिम अंग का संचालन भी इस तकनीक के ज़रिए करना चाहते हैं ---- "प्रॉफेसर बिन हे, मुख्य आविष्कारक

इस प्रक्रिया के दौरान कंप्यूटर स्क्रीन पर प्रतीत होने वाला ग्राफ़ अजब ही लगता है, लेकिन ये तकनीक प्रभावशाली साबित हुई है.
इससे पहले ऐसी तकनीक का इस्तेमाल व्हीलचेयर को चलाने और ‘दिमागी ऑरकेस्ट्रा’ चलाने के लिए भी हो चुका है.
इस शोध में दिमाग की विद्युत किरणों को कैद किया गया है
तकनीक से जुड़ी कंपनियों को भी इस प्रयोग में कई संभावनाएं दिखाई देती हैं.
खबरों के मुताबिक सैमसंग भी ‘ दिमागी कंट्रोल’ तकनीक का इस्तेमाल करने वाली एक टैबलेट डिवाइस पर काम कर रहा है.
अब जब शोधकर्ता दिमाग के भीतर तक तकनीक का इस्तेमाल कर पहुंच सकते हैं, तो अब वे अपना ध्यान और ज़्यादा सूक्ष्म विषयों पर केंद्रित कर सकते हैं.
इस शोध के वरिष्ठ आविष्कारक बिन हे का कहना है कि उनकी टीम इस प्रयोग पर काफी समय से काम कर रही थी.
प्रॉफेसर बिन हे ने बीबीसी को बताया, “हमारा मकसद है उन लोगों की या मरीज़ों की मदद करना जो चल-फिर नहीं पाते हैं. इस तकनीक के ज़रिए हम व्हीलचेयर को कंट्रोल करना चाहते हैं, टीवी को नियंत्रित करना चाहते हैं और साथ ही अगर हो सके तो शरीर के किसी कृत्रिम अंग का संचालन भी इस तकनीक के ज़रिए करना चाहते हैं.”
इस प्रयोग के लिए पांच लोगों को चुना गया और उन्हें एक साधारण टोपी पहनाई गई जिसमें 64 इलेक्ट्रोड लगे थे.
इन इलेक्ट्रोड्स के ज़रिए कंप्यूटर को दिमाग में होने वाली हलचल के बारे में बताया जाता है, और फिर वाई-फाई की मदद से कंप्यूटर कमांड देता है जिससे हेलिकॉप्टर चलता है.
इंसान की दिमागी कमांड का पालन करते हुए ये हेलिकॉप्टर अपने सामने आने वाली रुकावटों को भी झांसा दे सकता है. इसके अलावा इस तकनीक का इस्तेमाल घर में रोबोट के संचालन के लिए भी हो सकता है.

Monday, May 27, 2013

भगवान पर विश्वास को लेकर सर्वे


एक बेहद अविश्वसनीय खबर पढ़ने को मिली। मुझे इस सर्वे पर शंका  हो रही है। आइए पहले खबर पढ़िए-

भारतीयों की धर्म में दिलचस्पी घट रही है. कई लोगों का भगवान में यक़ीन नहीं है और वो ख़ुद को धार्मिक नहीं मानते. हालांकि ख़ुद को पूरी तरह नास्तिक कहने वालों की तादाद में गिरावट आई है. ग्लोबल इंडेक्स ऑफ़ रिलीजियॉसिटी एंड अथीज़्म की ताज़ा रिपोर्ट से ये जानकारी सामने आई है.


आपने खबर पढ़ी। जहां तक मुझे पता है भारत में धर्म में दिलचस्पी बढ़ी है। लोग योग और आध्यात्मिक गतिविधियों मे ज्यादा रुचि ले रहे हैं। आप पूछेंगे कि इसका प्रमाण क्या है? आप पिछले साल की तुलना में भारत के तमाम प्रसिद्ध मंदिरों में जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या का पता लगा लीजिए। आपको पता चल जाएगा कि भारत में लोगों की धर्म में दिलचस्पी घट रही है या बढ़ रही है। मुझे पक्का यकीन है कि ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है। अध्यात्म के प्रति, ध्यान (मेडिटेशन) के प्रति लोगों में उत्सुकता बढ़ रही है। आप सभी ध्यान केंद्रों, संस्थानों में जा कर पता लगाइए।
  भारत गांवों का देश है। आप गांवों में जाइए। वहां सर्वे कीजिए। मुझे नहीं पता ग्लोबल इंडेक्स ऑफ़ रिलीजियॉसिटी एंड अथीज़्म के लोग भारत के गांवों में गए थे या नहीं। लेकिन मुझे इस पर कतई विश्वास नहीं हो रहा है कि भारत के लोगों की भगवान में दिलचस्पी घट रही है। भाई, इस तरह का सर्वे आपने क्यों कराया? क्या आप नास्तिकता का झंडा गाड़ना चाहते हैं? आपको कैसे लगा कि भारत में भगवान को मानने वाले कम हो रहे हैं?  अब हम किसी भी सर्वे को आंख मूंद कर स्वीकार नहीं करेंगे। एक बार खबर आती है कि चाकलेट खाने वालों का स्वास्थ्य उत्तम रहता है। तो कुछ दिनों बाद खबर आती है कि चाकलेट में अमुक तत्व यह रोग बढ़ाता है। कभी खबर आती है कि काफी पीने से यह फायदा होता है तो कभी खबर आती है कि काफी पीने से यह नुकसान होता है। मुझे तो लगता है कि सर्वे कराने वाले खुद कनफ्यूज हैं। समग्र भारत के विचार अचानक किसी सर्वे में पता चल जाए, यह मुझे संभव नहीं लगता। बहरहाल मुझे अपने विचार रखने की पूरी आजादी है। और मैं किसी हालत मे इस सर्वे को मान नहीं सकता। पूरे भारत का  सर्वे इतना आसान नहीं है भाई।

Tuesday, May 21, 2013

30 सेकेंड में होगा मोबाइल चार्ज'

Courtesy- बीबीसी हिन्दी 
 अमरीका में रहने वाली भारतीय छात्रा ईशा खरे ने छोटे से आकार का एक ऐसा उपकरण बनाया है जो  मोबाइल फोन की बैटरी के अंदर फिट हो सकता है.
ईशा का दावा है कि इससे मोबाइल फोन 20-30 सेकेंड में पूरा चार्ज हो जाएगा और इसे कार की  बैटरी के लिए भी उपयोग में लाया जा सकेगा.
इसके लिए 18 वर्षीय ईशा खरे को 'इंटेल फाउंडेशन यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड' से नवाज़ा गया है और 50,000 डॉलर की स्कॉलरशिप भी दी गई है.
दुनिया की जानी-मानी कम्प्यूटर उपकरण बनाने वाली कंपनी, ‘इन्टेल’, हर साल विश्व के अलग-अलग स्कूलों से क़रीब 70 लाख बच्चों की प्रतियोगिता आयोजित करवाता है.
इनाम की घोषणा के बाद ईशा ने पत्रकारों से कहा, “मैंने तो इस उपकरण पर काम करना इसलिए शुरू किया क्योंकि मेरे मोबाइल फोन की बैटरी बहुत जल्दी ख़त्म हो जाती थी, लेकिन अब इस जीत पर यकीन करना भी मुश्किल हो रहा है.”
विजेताओं को अरिज़ोना के फीनिक्स शहर में एक कार्यक्रम में सम्मानित किया गया.

अब हारवर्ड की ओर

इन्टेल की प्रतियोगिता में बच्चे विज्ञान, तकनीक और गणित की दुनिया में शोध कर नए उपकरण इजाद करते हैं.
इस साल के प्रतियोगियों ने क्वांटम थ्योरी और पर्यावरण संरक्षण के तरीकों से लेकर बीमारियों के इलाज और तकनीकी उपकरण बनाने तक के प्रोजेक्ट्स पेश किए.
अपने प्रयोग में ईशा ने इस उपकरण से एक ‘एलईडी’ यानि ‘लाइट एमिटिंग डायोड’ चलाकर दिखाया. ईशा ने बताया कि उन्होंने नैनोटेकनॉलॉजी की मदद से बहुत सारी ऊर्जा अपने इस उपकरण में केन्द्रित करने की तकनीक विकसित की है जिससे चार्जिंग जैसा काम भी सेकेंड्स में हो सकता है.
फिलहाल कैलिफोर्निया के एक स्कूल में पढ़ रहीं ईशा इसी वर्ष हारवर्ड विश्वविद्यालय में नैनोकेमिस्ट्री की पढ़ाई करने जाएंगी.
लाखों छात्रों में से छांटे गए 1600 छात्रों में से चुने जाते हैं तीन विजेता जो 75,000 (पहला इनाम) और 50-50,000 डॉलर (दूसरा और तीसरा इनाम) में ले जाते हैं.
ईशा को दूसरा इनाम मिला तो पहला इनाम गया रोमानिया के 19 वर्षीय आयोनेट बुडिस्टीनो को, जिन्होंने एक सस्ती स्वचालित कार का मॉडल बनाया.

Friday, May 17, 2013

जैसे भक्त को भगवान मिल गए हों


मित्रों,  पिछले सोमवार को मैंने हुगली नदी में आए ज्वार को देखा। ज्वार उन्हीं नदियों में आता है जो  समुद्र के करीब हो और लगभग जु़ड़ी हुई हो।   हुगली समुद्र से जुड़ी हुई है। इसे ही उत्तर भारत में गंगा नदी कहते हैं। हुगली के किनारे लोग पूजा- पाठ, मुंडन और कथा आदि के अलावा पितरों को तर्पण आदि करते हैं। मैं  कोलकाता के पास बैरकपुर के धोबी घाट पर इंजन वाली नाव का इंतजार कर रहा था ताकि मैं उस पार श्रीरामपुर में अपने परमगुरु स्वामी श्री युक्तेश्वर जी (मेरे गुरु  परमहंस  योगानंद जी के गुरु) द्वारा स्थापित आश्रम में प्रणाम करने जा सकूं। आप जानते ही हैं कि परमहंस योगानंद जी की पुस्तक- आटोबायोग्राफी आफ अ योगी- विश्व की ३३ भाषाओं में अनूदित है और आज भी सर्वाधिक रोचक पुस्तकों में से एक है। हिंदी में इसका अनुवाद- योगी कथामृत- के नाम से हुआ है।
 जब मैं बैरकपुर के धोबीघाट पहुंचा तो मुझे बताया गया कि ज्वार आ रहा है, इसलिए इंजन वाली नाव का आना- जाना फिलहाल बंद कर दिया गया है। मुझे भी ज्वार देखने की उत्सुकता थी। लगभग २० मिनट बाद ज्वार आया। जीवन में पहली बार मैंने किसी नदी में ज्वार देखा। वैसे रामकृष्ण परमहंस पर लिखी उनके शिष्य श्री म की पुस्तक रामकृष्ण वचनामृत में बान (बांग्ला में ज्वार को बान कहते हैं) का जिक्र है। इसका हिंदी में अनुवाद किया है- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने।
तो ज्वार आया। भारी लहरों के साथ। लहरें छपाक से किनारे से टकरातीं। मानों नदी
के किनारे को मथ दिया। जैसे भक्त का मन भगवान के लिए मथ जाता है। जिसे गुरुदेव परमहंस योगानंद ने- चर्निंग द इथर कहा है। करीब पांच- सात मिनट के बाद ही ज्वार शांत हो गया। इंजन वाली नाव किनारे आ कर खड़ी हो गई। हम लोग पांच- सात मिनट में ही उस पार पहुंच गए और उस पवित्र स्थल और परमगुरुओं को प्रणाम किया जिसका वर्णन- आटोबायोग्राफी आफ अ योगी में भी है। लौटे तो हुगली नदी शांत थी। जैसे भक्त को भगवान मिल गए हों। वह पूर्ण तृप्त हो गया हो।

Friday, May 3, 2013

ईश्वर सर्वत्र व्याप्त हैं


मित्रों, हमारे जीवन में यूं तो अक्सर कोई न कोई घटना होती रहती है। अच्छी  भी और सामान्य भी। एक दिन असाधारण ढंग से भयानक बिजली कड़की। लगा कहीं बिजली गिरी। और मेरा कंप्यूटर इंटरनेट से डिसकनेक्ट हो गया। मैंने तकनीशियन को बुलाया। उसने बताया कि मेरा लैन कार्ड जल गया है। चूंकि कंप्यूटर एक आदत में शामिल हो गया है, इसलिए मैं लैन कार्ड तुरंत खरीद लाया और उसे लगाया। इंटरनेट फिर से कनेक्ट हो गया। जब मैं लैन कार्ड खरीद रहा था तो दुकानदार ने बताया कि जब भी बिजली कड़के तो आप इंटरनेट का तार सीपीयू से निकाल दिया कीजिए। मैंने पूछा कि क्या बिजली का प्लग निकाल देने से काम नहीं चलेगा? उसने कहा- नहीं सर। आसमान में कड़कती बिजली, तब भी आपके सीपीयू में घुस जाएगी और आपका मदर बोर्ड तक जला डालेगी। इसलिए आप इंटरनेट का ही प्लग निकाल दीजिए। झंझट खत्म हो जाएगा। मैं सोचने लगा कि क्या गजब है। आसमान में चमकती बिजली से हम किस तरह करीब से जुड़े हैं। उधर बिजली चमकी नहीं कि इंटरनेट से हमारा कनेक्शन खत्म। क्योंकि बिजली हमारे सीपीयू में घुस गई। ऋषियों ने कहा ही है-   यत पिंडे, तत ब्रह्मांडे।।  ईश्वर आखिर सर्वत्र व्याप्त हैं। वही कंप्यूटर हैं और वही हमारा दिमाग भी हैं। वही इस ब्रह्मांड के रचयिता भी हैं और वही हमारी आत्मा भी हैं।     

Monday, April 22, 2013

योगी कथामृत

परमहंस योगानंद जी की पुस्तक - आटोबायोग्राफी आफ अ योगी (हिंदी में अनूदित पुस्तक का नाम- योगी कथामृत ) सचमुच एक अद्भुत पुस्तक है। अपनी आत्मकथा के बहाने परमहंस जी ने विश्व के विशिष्ट साधु संतों के बारे में विस्तार से लिखा है। यह पुस्तक पढ़ते हुए आप उसमें इस तरह खो जाएंगे कि खाने- पीने और सोने की सुधि भी नहीं रहेगी। इसी पुस्तक में क्रिया योग के बारे में बताया गया है। जो लोग क्रिया योग के बारे में जानना चाहते हैं, उन्हें योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया का लेसन मेंबर बनना होता है। योगी कथामृत में परमहंस योगानंद ने इसके बारे में जितना बताया जा सकता है, बताया है। योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया की स्थापना स्वयं परमहंस योगानंद जी ने सन १९१७ में की थी। तब से इस आध्यात्मिक संगठन ने लाखों लोगों को क्रिया दीक्षा दी है। क्रिया योग के बारे में विस्तार से नहीं लिखा जा सकता न ही बताया जा सकता है। इसे दीक्षा के माध्यम से प्राप्त किया जाता है और गोपनीयता की शपथ दिलाई जाती है क्योंकि  प्राचीन काल से ही यह धार्मिक  निषेध चला आ रहा है जिसका पालन आवश्यक है। क्यों? इसका जवाब आपको तभी मिल जाएगा, जब आप दीक्षा लेंगे।

Friday, April 12, 2013

हम विकास कर रहे हैं या हमारे दिल छोटे हो रहे हैं?


 विनय बिहारी सिंह

 क्या रेलवे स्टेशन पर मर रहे किसी आदमी को बचाने वाला कोई नहीं है। हम किस समाज में रहते हैं? किस व्यवस्था के अंग हैं? यह कैसा लोकतंत्र है? कैसी संवेदनहीनता है? क्या इक्कीसवीं शताब्दी का यही प्राप्य है? ये कई सवाल मेरे जेहन में तब उभरे जब मैं एक आदमी को मरते हुए देख कर आया। हम विकास कर रहे हैं या हमारा विनाश हो रहा है? वहां रेलवे सुरक्षा बल के दो जवान खड़े थे। वे चुपचाप उस आदमी को मरते देख रहे थे। निर्विकार भाव से। रेल का भाड़ा बढ़ गया है। लेकिन सुविधाओं में क्या फर्क पड़ा? कहां हैं टेलीविजन पर बहस करने वाले देश की चिंता में कथित रूप से मरे जा रहे राजनीतिक नेता?

मैं १२ अप्रैल को दिन के एक बजे एक रिश्तेदार को कोलकाता स्थित सियालदह स्टेशन तक पहुंचाने गया था। जब उनकी ट्रेन १.२५ बजे रवाना हो गई तो मैं घर लौटने लगा। तभी देखा कि एक आदमी वही ट्रेन (सियालदह- बलिया एक्सप्रेस) पकड़ने आया था और अचानक उसकी तबियत खराब हो गई थी। वह बेहोश हो कर गिर पड़ा था। उसका कंबल, अन्य सामान वहीं पड़ा हुआ था। मुंह खुला था। किसी को ट्रेन पर चढ़ाने आए एक व्यक्ति ने अपने बोतल से मर रहे व्यक्ति के मुंह में पानी डाला। पानी अंदर चला गया लेकिन वह बेहोश ही रहा। उसकी आंखें अधखुली थीं। किसी ने एक व्यक्ति को भेजा- जाओ, स्टेशन मास्टर को यह खबर दे दो। वह आदमी स्टेशन मास्टर के पास गया। वहां से कोई नहीं आया। पास ही खड़े रेलवे सुरक्षा बल के दो जवान सिर्फ लोगों से कह रहे थे- गर्मी के कारण इस आदमी का यह हाल हुआ है। मर रहा आदमी मुंह को और ज्यादा खोल कर सांस लेना चाहता था लेकिन सांस नहीं ले पा रहा था। पता नहीं उसे क्या तकलीफ थी। पास ही नीलरतन मेडिकल कालेज व अस्पताल है, जो सरकारी है। स्टेशन से वहां ले जाने में मुश्किल से दस मिनट लगता। लेकिन किसी ने कोई पहल नहीं की। रेलवे स्टेशन पर मर रहे किसी व्यक्ति को बचाने के लिए रेलवे के पास कोई इंतजाम नहीं है। कोई रुचि नहीं है। कोई मर रहा है तो मरे। यह है हमारी व्यवस्था। हमारा तंत्र। इसे विकासशील देश कहते हैं। हमारे देश में अरबपतियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। विकास का खूब ढिंढोरा पीटा जाता है। लेकिन आम आदमी जानवर की तरह सबके सामने मर जाता है। उसे कोई नहीं पूछता।


Friday, March 15, 2013

एक बहुत बढ़िया कथन


मैंने एक बहुत अच्छा कथन पढ़ा। किसी महापुरुष ने कहा है(नाम नहीं दिया गया है)कि यदि कोई ईश्वर पर विश्वास करता है उससे ईश्वर के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं है। और जो ईश्वर पर विश्वास नहीं करता, उससे भी आपको कुछ कहने की जरूरत नहीं है क्योंकि आप उसे लाख समझाएंगे कि ईश्वर है, हम ईश्वर की ही संतानें हैं तो वह नहीं मानेगा। अपना तर्क देता रहेगा। इसलिए जो ईश्वर में विश्वास करता है, उससे और जो विश्वास नहीं करता, उससे कोई तर्क करना ही नहीं चाहिए।

उसे कुछ समझाना ही नहीं चाहिए।

Monday, March 11, 2013

क्यों कम हो चले हैं परहित की सोचने वाले?



मित्रों, आज कोलकाता के धर्मतल्ला इलाके में डेकर्स लेन स्थित एक प्रसिद्ध चाय की दुकान पर गया। वहां चाय पी तो पाया कि कप छोटे साइज के हो गए हैं। चाय का जायका भी थोड़ा मद्धिम हो गया है। यानी महंगाई खाने- पीने की चीजों का स्तर लगातार गिरा रही है। आप कहेंगे,यह कोई नई बात नहीं है। हां। लेकिन इस पर गौर करना जरूरी है। यह कोई निराशावाद नहीं है। स्थिति का मूल्यांकन है। जो स्वादिष्ट और बड़े साइज की मिठाइयां हम अपेक्षाकृत कम कीमत पर खा चुके हैं,वे आज दुर्लभ लग रही हैं। हर जगह स्तर में गिरावट आई है। तो हम विकास कर रहे हैं या पीछे जा रहे हैं? भारत समेत सारी दुनिया में तो अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन साथ ही अपराध और धोखाधड़ी, भरोसे पर चोट भी बढ़ रही है। परहित या परसेवा करने वाले लोग और संस्थाएं तो हैं लेकिन आज कितने लोग आम आदमी के लिए तालाब खुदवाते हैं, स्कूल या कालेज खुलवाते हैं। स्कूल, कालेज और यहां तक कि विश्वविद्यालय भी प्राइवेट खुलने लगे हैं। अस्पताल तो अब प्राइवेट ही खुल रहे हैं। आम आदमी के हित की बात सोचने वाले कहां गए? हां, कुछ साधु- संत और उनकी संस्थाएं आज भी आम आदमी के लिए ईमानदारी से लगातार काम कर रही हैं। ऐसी संस्थाओं में एक है योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया? और भी संस्थाएं हैं। भारत सेवाश्रम संघ और रामकृष्ण मिशन भी है। और भी संस्थाएं हैं। लेकिन योगदा सत्संग (संस्थापक- परमहंस योगानंद) ने क्रिया योग इच्छुक साधकों को दे कर जो जनकल्याण कर रहा है, वह प्रणम्य है। यह संस्था जन सेवा भी लगातार कर रही है। 

मैं निराश नहीं हूं। सेवा करने वाले साधु और संस्थाएं ही युवा पीढ़ी में प्रेरणा भरने के लिए काफी है। काश राजनीतिक पार्टियों में भी देश के आम आदमी को खुशहाल करने की धुन सवार हो पाती।  युवा पीढ़ी में सुगबुगाहट है। आज की युवा पीढ़ी ही तस्वीर बदलेगी। क्या पता कल को कुछ चमत्कार हो और राजनीतिक पार्टियां-    परहित सरिस धर्म नहिं भाई    का मर्म समझने लगें।

Friday, March 1, 2013

अब आई कमाल की लचीली बैटरी



जैसन पॉलमर
 विज्ञान एवं तकनीकी मामलों के संवाददाता

courtesy- BBC Hindi

इस बैटरी को तीन गुना तक खींच सकते हैं. आजकल बैटरी के इस्तेमाल के बिना तो जैसे आप ज़िदगी की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. आसपास की न जाने कितनी चीज़ों में हम क्लिक करें बैटरी का इस्तेमाल करते हैं. मसलन, घड़ी, मोबाइल फ़ोन, इनवर्टर, कार, इत्यादि चीज़ें तो झटके से ध्यान में आती हैं. महानगरों में कई लोग ऐसे स्वास्थ्य उपकरणों को भी साथ रखते हैं जो बैटरी से ही चलते हैं. संबंधित समाचार15 साल चलने वाली मोबाइल बैटरीअधिक बैट्री खाते हैं मुफ़्त के ऐप्सई-शर्ट के विकास की संभावना बढ़ीक्लिक करें बैटरी के बिना जब हमारा आपका काम नहीं चल सकता तो उसके साथ वैज्ञानिक समुदाय प्रयोग भी ख़ूब कर रहा है.

अब वैज्ञानिकों ने ऐसी बैटरी बना ली है जिसे आप खींचकर बड़ा कर सकते हैं, वो भी तीन गुना तक. वायरलेस चार्ज होगी बैटरी"बैटरी को स्ट्रैचबल बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण काम था क्योंकि ऐसा करने से बैटरी की क्षमता पर असर पड़ता है. लेकिन हमने कई तरीकों का इस्तेमाल किया." - जॉन रोजर्स, प्रोफेसर और शोधकर्ता, इल्यानोइस यूनिवर्सिटी पिछले कुछ दिनों में ऐसे इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों का उत्पादन बढ़ा है जिन्हें खींचकर बढ़ाया जा सकता है. ऐसे ही उत्पादों के लिए लचीली बैटरी को तैयार किया गया है. 'आइडिया इन नेचर कम्यूनिकेशन' में 'स्ट्रेचेबल पॉलीमर' के इस्तेमाल से ऐसी बैटरियों को बनाया गया है. इल्यानोइस यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर और वरिष्ठ लेखक जॉन रोजर्स ने बीबीसी से कहा, “बैटरी को स्ट्रेचेबल बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण काम था क्योंकि ऐसा करने से बैटरी की क्षमता पर असर पड़ता है. लेकिन हमने कई तरीकों का इस्तेमाल किया.”

जॉन रोजर्स हाल के वर्षों तक नार्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी में लचीले इलेक्ट्रानिक उत्पादों को विकसित करने की विधि पर काम करते रहे थे. इस दौरान वे किसी भी सर्किट को बनाकर लचीले पॉलीमर में तैयार करते थे और उसे वैसी तार से कनेक्ट करते थे, जिसे खींचने पर ख़ास असर नहीं पड़े. लेकिन बैटरी पर इस तरह के प्रयोग काम नहीं कर पा रहे थे. क्योंकि परंपरागत तौर पर बैटरी किसी इलेक्ट्रिक सर्किट के मुक़ाबले काफ़ी बड़ी होती है. बैटरी को छोटा बनाने में इस बात की आशंका रहती है कि उसकी पावर भी कम हो जाएगी.

इस्तेमाल बढ़ने की उम्मीद

लचीली बैटरियों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ने की उम्मीद ऐसे में जॉन रोजर्स ने चक्करदार बनावट का उपयोग किया, जिसमें स्ट्रेचेबल पॉलीमर के इस्तेमाल से अंग्रेज़ी के 'S' अक्षर का आकार दिया गया. इस लचीली बैटरी को उसके सामान्य आकार से तीन गुना तक खींचा जा सकता है. इन शोधकर्ताओं का दावा है कि बैटरी को थोड़ी दूरी के अंतराल से क्लिक करें वायरलेस से भी चार्ज किया जा सकता है. जॉन रोजर्स को भरोसा है कि उनके इस उत्पाद का इस्तेमाल तेज़ी से बढ़ेगा.
वे कहते हैं, “इसका सबसे ज़्यादा उपयोग उन उत्पादों में होगा जो स्वास्थ्य उपकरण हैं और शरीर की त्वचा से जुड़े होते हैं.”



Wednesday, February 20, 2013

संत कबीर दास (पुनरावलोकन)


संत कबीरदास को जितनी बार पढ़ा जाए, हर बार नया अनुभव और नया अर्थ मिलता है। अब आप इसी दोहे को लें-


कबीर एक न जन्या , तो बहु जन्या क्या होई ।

एक तै सब होत है , सब तै एक न होई ।।

उनका कहना है कि ईश्वर एक है। संसार की सारी वस्तुएं, सारे विचार, ईश्वर से पैदा हुए हैं। एक ईश्वर से ही सब है, सारी वस्तुओं से एक का निर्माण नहीं हुआ है। सबसे पहले ईश्वर ही हैं और सबसे अंत में भी ईश्वर ही हैं। फिर मध्य में भी वही हैं। यह बात गीता के नौवें और दसवें अध्याय में स्पष्ट रूप से कही गई है। कबीरदास को इसीलिए बार- बार पढ़ने की इच्छा होती है। संत कबीर इसीलिए तो कहते हैं कि उस एक को ही जानने से सबकुछ ज्ञात हो जाता है। लेकिन अगर ईश्वर को ही नहीं जाना तो सारे संसार को जान कर क्या होगा? ईश्वर को जाने बिना संसार को जानने की कोशिश व्यर्थ है। संसार को आप जान ही नहीं सकते, यदि ईश्वर आपके लिए अनजान हैं तो।

Monday, January 28, 2013

हर पल महत्वपूर्ण है



कल रविवार को सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप के सन्यासी स्वामी विश्वानंद जी ने कहा- हर पल महत्वपूर्ण होता है। किस पल, किस मोमेंट में आप ईश्वर का अनुभव कर लें, कहा नहीं जा सकता। बशर्ते आप कोशिश करते रहें। ईश्वर आम्नी प्रेजेंट हैं। यानी सर्वव्यापी हैं। उन्हें किसी भी क्षण अनुभव किया जा सकता है। एक बार यदि आप ईश्वर से एट्यूंड हो जाएं। ईश्वर से एकरस हो जाएं तो बस काम बन गया। ईश्वर तक ले जाने वाला तत्व है- अनन्य विश्वास और भक्ति। स्वामी विश्वानंद का प्रवचन सुन कर मुझे लगा कि गुरुदेव परमहंस योगानंद जी ने हमें क्रिया योग की  टेक्निक या प्रविधि देकर हमारा बहुत उपकार किया है। हमारे ऊपर अत्यंत कृपा की है।  इससे हमें भक्ति पथ पर चलने का रास्ता मिल गया।

Wednesday, January 23, 2013

ग्राफ़ीन के पेटेंट को लेकर है मारामारी


Courtesy- BBC Hindi


डेविड शुकमन
विज्ञान संपादक


ग्राफीन एक ऐसा पदार्थ है जिससे कागज से भी पतली स्क्रीन तैयार की जा सकती है.
इस वक्त दुनिया में एक नए और आश्चर्यजनक पदार्थ से पैसे बनाने की होड़ मची है. ब्रिटेन में पहचाना गया ग्राफीन अब तक का सबसे पतला पदार्थ है और इसमें जबरदस्त मज़बूती और ललीचापन है.
माना जाता है कि ये इलेक्ट्रोनिक्स से लेकर सौर पैनल और चिकित्सा उपकरणों तक, हर क्षेत्र में क्रांति कर सकता है. लेकिन इसके इस्तेमाल के अधिकार या पेटेंट की संख्या को देखे तो पता चलता है कि ब्रिटेन इस मामले में अपने प्रतिद्वंद्वियों से पिछड़ रहा है.
उत्तरी इंग्लैंड में मैनचेस्टर विश्विविद्यालय में एक शोधकर्ता कुछ टेपों को हटा कर वो छोटा सा पदार्थ दिखाते हैं जिसमें क्रांतिकारी संभावनाएं हैं और ये पदार्थ है ग्राफीन.
अणुओं की एक परत से बना ग्राफीन हीरे से भी ज्यादा कड़ा है, तांबे से भी ज्यादा सुचालक है और रबड़ से भी ज्यादा लचीला है. इसलिए इससे ऐसी स्क्रीन बनाई जा सकती है जिसे आप मोड़ कर रख पाएंगे और ऐसी बैटरी भी जो अभी के मुकाबले कहीं ज्यादा चलेगी.
दो रूसी वैज्ञानिकों ने मैनचेस्टर में इस पर अग्रणी काम किया और इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार के साथ साथ नाइटहुड से भी सम्मानित किया गया है.
इन्हीं में से एक हैं आंद्रे गाइम.
आंद्रे गाइम कहते हैं, ये अणुओं की खोज किए जाने के शुरुआती दिनों की तरह है, जब आप अपनी पूरी ऊर्जा और समय किसी विषय पर लगाते हैं और उसकी संभावनाओं को परखते रहते हैं, परखते रहते हैं और हर तार्किक अपेक्षा से परे जाकर भी कुछ और खोज निकालना चाहते हैं.
ग्राफीन के शोध को प्राथमिकता"ये वाकई बहुत प्रतिस्पर्धा वाला क्षेत्र है. न सिर्फ विज्ञान के नजरिए से बल्कि कारोबार के नजरिए से भी. एशिया और खास तौर से सिंगापुर ने इस क्षेत्र में जल्दी काम शुरू कर दिया है. हमें देखना है कि आगे क्या होता है. बहुत सारी चीजें हो रही हैं. तो ये पता चलने में कुछ वक्त लगेगा कि इस दौड़ को कौन जीतेगा."
प्रोफेसर एंतोनियो कास्त्रो नीतो-- असल में ये आश्यचर्यजनक रूप से बहुत ही समृद्ध है. ऐसा इसलिए है क्योंकि हमें ऐसा पदार्थ मिला है जिसके बारे में हम पहले नहीं जानते थे.
ब्रितानी सरकार ने ग्राफीन को अपनी शोध प्राथमिकता बनाया है और उसने इसके लिए 10 करोड़ डॉलर की राशि की भी पेशकश की है.
प्रोफेसर गाइम मानते हैं कि कुछ कंपनियों का रवैया इस बारे में खासा सुस्त है. ब्रिटेन की दिग्गज तेल कंपनी बीपी मैनचेस्टर में ग्राफीन शोध संस्थान बना रही है क्योंकि इस नए और अनोखे पदार्थ के जरिए अरबों के वारे न्यारे किए जा सकते हैं. दुनिया और हिस्सों में भी ऐसे केंद्र स्थापित हो रहे हैं. उदाहरण के लिए सिंगापुर में नेशनल यूनिवर्सिटी ने एक विशाल ग्राफीन प्रयोगशाला बनाई है और इसे चलाते हैं प्रोफेसर एंतोनियो कास्त्रो नीतो.
नीतो कहते हैं, "ये वाकई बहुत प्रतिस्पर्धा वाला क्षेत्र है. न सिर्फ विज्ञान के नजरिए से बल्कि कारोबार के नजरिए से भी. एशिया और खास तौर से सिंगापुर ने इस क्षेत्र में जल्दी काम शुरू कर दिया है. हमें देखना है कि आगे क्या होता है. बहुत सारी चीजें हो रही हैं. तो ये पता चलने में कुछ वक्त लगेगा कि इस दौड़ को कौन जीतेगा."
दक्षिण कोरिया की नामी इलेक्ट्रिनिक्स कंपनी सैमसंग ने ग्राफीन को प्रोत्हासन देने के लिए एक वीडियो तैयार किया है जिसमें कागज के जैसी एक काल्पनिक स्क्रीन दिखाई गई है. ग्राफीन का व्यावसायिक इस्तेमाल करने के लिए पहला जरूरी कदम है इसका पेटेंट हासिल करना और सैमसंग अब तक इस तरह के 400 पेटेंट हासिल कर चुकी है. लेकिन ग्राफीन के सबसे ज्यादा पेटेंट चीन के पास हैं, दो हजार से भी ज्यादा.ये आंकड़े कैंब्रिज आईपी नाम की संस्था की ओर से मुहैया कराए गए हैं. ग्राफीन की पूरी तरह पहचान लगभग नौ साल पहले हुई, और बड़ी तेजी से ये परिदृश्य पर छा गया. बेशक इसमें निवेश करना किसी जुए के जैसा ही है क्योंकि ग्राफीन के पहले व्यावसायिक इस्तेमाल में अभी कई सालों का इंतजार करना पड़ सकता है. लेकिन मैनचेस्टर में अब जिस प्रायोगिक विज्ञान की शुरुआत हुई है, वो इस वैश्विक दौड़ का केंद्र है.

Saturday, January 12, 2013

स्वामी विवेकानंद



रामकृष्ण परमहंस
आज स्वामी विवेकानंद की १५०वां जन्मदिन है। स्वामी जी का जन्म कोलकाता के ३,गौड़ मोहन मुखर्जी स्ट्रीट स्थित घर में १२ जनवरी १८६३ को हुआ था। उनका पूरा नाम नरेंद्रनाथ दत्त। उन्होंने ४ जुलाई १९०२ को अपने पार्थिव का त्याग कर दिया। स्वामी जी के गुरु थे रामकृष्ण परमहंस। जब स्वामी विवेकानंद अपने होने वाले गुरु से मिले तो उन्होंने उनसे पूछा- क्या आपने ईश्वर को देखा है? रामकृष्ण परमहंस ने कहा- हां ठीक उसी तरह देखा है जैसे तुमको देख रहा हूं और ईश्वर से उसी तरह बातें की हैं जैसे तुमसे कर रहा हूं। यह स्वामी जी की ईश्वर के बारे में पहली प्रत्यक्ष जानकारी थी। उन्हें पहली बार लगा कि ईश्वर का साक्षात्कार किया जा सकता है। स्वामी जी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपने गुरु के बारे में कहा- मैंने उनके जैसा विलक्षण व्यक्ति पूरे संसार में नहीं देखा। रामकृष्ण परमहंस लाल किनारे वाली धोती पहनते थे। उनके व्यक्तित्व में जादुई आकर्षण था। वे अपने ड्रेस के प्रति बहुत सतर्क नहीं रहते थे। साधारण धोती और कुर्ता। दाढ़ी बढ़ी हुई। शरीर दुबला- पतला। लेकिन उनके शरीर और चेहरे में जो तेज और गहरा आकर्षण था, वह अनोखा था। वे अवतार पुरुष थे।

स्वामी विवेकानंद ने कहा है- हम ईश्वर के जितने समीप आते जाते हैं, उतने ही अधिक स्पष्ट रूप से देखते हैं कि सब कुछ उसी में है। जब जीवात्मा इस परम प्रेमानंद को आत्मसात करने में सफल हो जाता है, तब वह ईश्वर को सर्वभूतों में देखने लगता है। इस प्रकार हमारा हृदय प्रेम का एक अनंत स्रोत बन जाता है। ईश्वर प्रेम से अलौकिक शक्ति मिलती है। प्रेम से भक्ति उत्पन्न होती है। प्रेम ही ज्ञान देता और प्रेम ही मुक्ति की ओर ले जाता है।

Thursday, January 3, 2013

नए साल में नई उम्मीदें




मित्रों, नए साल की ढेर सारी शुभकामनाएं। नए साल में आपकी सभी शुभ इच्छाएं पूर्ण हों।
नए साल में आप की तरह ही मैं भी काफी उत्साहित हूं। नए और शुभ अवसरों की तलाश करते हुए। लगता है कि यह साल और ज्यादा सुख और शांति लेकर आया है। नए शुभ अनुभवों को लेकर आया है। गुरुदेव परमहंस योगानंद जी ने कहा है कि नए साल में यदि कोई बुरी आदत रही हो तो उसे छोड़ने का संकल्प लें। जैसे सिगरेट या तंबाकू आदि की लत। या क्रोध की लत या भयभीत रहने की आदत आदि।

ईश्वर की कृपा से मैं इनमें से किसी आदत से पीड़ित नहीं हूं। लेकिन मैं चाय ज्यादा पीता हूं। दिन भर में छह कप के करीब। खान पान शाकाहारी है। नए साल में कोई अच्छी आदत या अभ्यास शुरू करना है। इसे बिना बताए शुरू करना है। जब यह अच्छी आदत दृढ़ हो जाए आनंद आएगा। बताना इसलिए जरूरी नहीं होता कि लगता है आप प्रचार कर रहे हैं। एक बार मन में कोई अच्छी बात निश्चित करके उस पर अमल करते रहिए। आनंद ही आनंद है।