मित्रों, पिछले सोमवार को मैंने हुगली नदी में आए ज्वार को देखा। ज्वार उन्हीं नदियों में आता है जो समुद्र के करीब हो और लगभग जु़ड़ी हुई हो। हुगली समुद्र से जुड़ी हुई है। इसे ही उत्तर भारत में गंगा नदी कहते हैं। हुगली के किनारे लोग पूजा- पाठ, मुंडन और कथा आदि के अलावा पितरों को तर्पण आदि करते हैं। मैं कोलकाता के पास बैरकपुर के धोबी घाट पर इंजन वाली नाव का इंतजार कर रहा था ताकि मैं उस पार श्रीरामपुर में अपने परमगुरु स्वामी श्री युक्तेश्वर जी (मेरे गुरु परमहंस योगानंद जी के गुरु) द्वारा स्थापित आश्रम में प्रणाम करने जा सकूं। आप जानते ही हैं कि परमहंस योगानंद जी की पुस्तक- आटोबायोग्राफी आफ अ योगी- विश्व की ३३ भाषाओं में अनूदित है और आज भी सर्वाधिक रोचक पुस्तकों में से एक है। हिंदी में इसका अनुवाद- योगी कथामृत- के नाम से हुआ है।
जब मैं बैरकपुर के धोबीघाट पहुंचा तो मुझे बताया गया कि ज्वार आ रहा है, इसलिए इंजन वाली नाव का आना- जाना फिलहाल बंद कर दिया गया है। मुझे भी ज्वार देखने की उत्सुकता थी। लगभग २० मिनट बाद ज्वार आया। जीवन में पहली बार मैंने किसी नदी में ज्वार देखा। वैसे रामकृष्ण परमहंस पर लिखी उनके शिष्य श्री म की पुस्तक रामकृष्ण वचनामृत में बान (बांग्ला में ज्वार को बान कहते हैं) का जिक्र है। इसका हिंदी में अनुवाद किया है- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने।
तो ज्वार आया। भारी लहरों के साथ। लहरें छपाक से किनारे से टकरातीं। मानों नदी के किनारे को मथ दिया। जैसे भक्त का मन भगवान के लिए मथ जाता है। जिसे गुरुदेव परमहंस योगानंद ने- चर्निंग द इथर कहा है। करीब पांच- सात मिनट के बाद ही ज्वार शांत हो गया। इंजन वाली नाव किनारे आ कर खड़ी हो गई। हम लोग पांच- सात मिनट में ही उस पार पहुंच गए और उस पवित्र स्थल और परमगुरुओं को प्रणाम किया जिसका वर्णन- आटोबायोग्राफी आफ अ योगी में भी है। लौटे तो हुगली नदी शांत थी। जैसे भक्त को भगवान मिल गए हों। वह पूर्ण तृप्त हो गया हो।
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