Wednesday, February 20, 2013

संत कबीर दास (पुनरावलोकन)


संत कबीरदास को जितनी बार पढ़ा जाए, हर बार नया अनुभव और नया अर्थ मिलता है। अब आप इसी दोहे को लें-


कबीर एक न जन्या , तो बहु जन्या क्या होई ।

एक तै सब होत है , सब तै एक न होई ।।

उनका कहना है कि ईश्वर एक है। संसार की सारी वस्तुएं, सारे विचार, ईश्वर से पैदा हुए हैं। एक ईश्वर से ही सब है, सारी वस्तुओं से एक का निर्माण नहीं हुआ है। सबसे पहले ईश्वर ही हैं और सबसे अंत में भी ईश्वर ही हैं। फिर मध्य में भी वही हैं। यह बात गीता के नौवें और दसवें अध्याय में स्पष्ट रूप से कही गई है। कबीरदास को इसीलिए बार- बार पढ़ने की इच्छा होती है। संत कबीर इसीलिए तो कहते हैं कि उस एक को ही जानने से सबकुछ ज्ञात हो जाता है। लेकिन अगर ईश्वर को ही नहीं जाना तो सारे संसार को जान कर क्या होगा? ईश्वर को जाने बिना संसार को जानने की कोशिश व्यर्थ है। संसार को आप जान ही नहीं सकते, यदि ईश्वर आपके लिए अनजान हैं तो।

1 comment:

vandana gupta said...

अति उत्तम वा्णी