विनय बिहारी सिंह
विद्वानों का कहना है कि जप करते समय एक- एक मनका को यह समझ कर फेरना चाहिए कि मैं अपने इष्ट के और करीब पहुंच रहा हूं। उनकी कृपा और ज्यादा बरस रही है। उनके प्रकाश में मैं सराबोर हो रहा हूं। इसके अलावा हृदय में गहरी पुकार होनी चाहिए। जैसे- मान लीजिए कि आप राम, राम का जप कर रहे हैं। तो हर बार राम कहते हुए आप कल्पना में खुद को राम के चरणों में बैठा महसूस करें। भगवान राम के स्पर्श का काल्पनिक अनुभव करें। धीरे- धीरे आप उनमें डूब जाएंगे। मैंने मां दुर्गा के एक भक्त को देखा है। वे जप करते हैं- जय मां, जय मां, जय मां। जप करते हुए एक समय ऐसा आता है कि वे रोने लगते हैं। जप बंद हो जाता है। बस मां दुर्गा की मूर्ति की तरफ देख रहे हैं और रो रहे हैं। फिर थोड़ी देर बाद उनकी आंखें बंद हो जाती हैं। रोना भी बंद हो जाता है। वे अचल बैठ जाते हैं। मानो उनका शरीर काठ हो गया हो। वे जैसे समाधि में चले जाते हैं। बहुत देर बाद आंखें खोलते हैं तो जैसे वे नशे में डूबे हों उस तरह दिखते हैं। यह नशा होता है दिव्य आनंद का। जगन्माता के प्रेम का।
कई भक्त माला का जप नहीं करते। वे लोग मन ही मन जप करते हैं। मन हृदय स्थान पर रहता है। ऐसे भी अनेक लोग हैं जो दिन में पांच- छह बार पांच- पांच मिनट का ही सही ध्यान या जप नहीं करते तो उनको चैन नहीं मिलता। जैसे- जप या ध्यान उन्हें खींच रहा हो। वे ठीक समय पर पांच मिनट के लिए ही सही, बैठ जाते हैं। जो ध्यान नहीं करते, वे आंखें बंद कर मन ही मन जप करते हैं। ऐसे लोग एकांत खोजते रहते हैं ताकि जप में कोई बाधा न पहुंचे। या कोई इस पर अनावश्यक टीका- टिप्पणी न करे। और ऐसा होना भी चाहिए। रामकृष्ण परमहंस कहते थे कि भगवान के प्रति अपनी भक्ति को सबके सामने प्रकट न करो। गुप्त रूप से मन ही मन उनकी अराधना करते रहो। वे तो सर्वव्यापी हैं। तुम्हारे हृदय में ही मौजूद हैं। वे जानते हैं कि तुम्हारे मन में क्या है।
2 comments:
लेकिन कोई व्यक्ित छुप छुप कर जप करता हुआ यह सोचे की वह तो परमात्मा की गुप्त साधना कर रहा है पर जब दुकान पर बैठे अहंकार दिखाये, गरीब को देखे दुत्कार भगाये, र्निबल को देखे तो सताये तो ऐसे व्यक्ित का जप तप एक बीमारीसे ज्यादा कुछ नहीं होता। तो इन जप तप जैसी चीजों से अच्छा है कि आदमी समझदार बने, किसी बात को समझे। ना कि किसी ने कहा है, किताबों में लिखा है इसलिये करने लगे। अपने स्वयं के तथ्यात्मक अनुभव को जाने। आदरणीय क्या ऐसा उचित नहीं रहेगा?
भाई राजे जी
शीर्षक से ही स्पष्ट है कि ये विचार सिर्फ जप के बारे में हैं।
मनुष्य की संपूर्णता तभी है जब वह हर जगह और हर स्थिति में
ईश्वरीय निर्देशों का पालन करता हो। हमारा आचार- व्यवहार, हमारे विचार
और ईश्वर में पूर्ण विश्वास ही हमें मनुष्य बनाते हैं।
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