Thursday, February 3, 2011

एक उत्सुक भक्त का प्रश्न



विनय बिहारी सिंह

एक उत्सुक भक्त ने एक सन्यासी से पूछा- ईश्वर भक्तों को लंबा इंतजार क्यों कराते हैं जबकि वे सहज ही दर्शन दे सकते हैं? इस पर सन्यासी ने कहा- तो फिर भक्त को आनंद ही क्या आएगा? वे तो भक्त की तड़प को देखना चाहते हैं। वे जब तक यह नहीं जान लेंगे कि भक्त को किसी भी भौतिक चीज से ज्यादा भगवान की चाहत है, तब तक वे क्यों दर्शन दें? आखिर वे समूचे ब्रह्मांड के स्वामी हैं। उन्हें अनंत भगवान कहा जाता है। अनंत यानी जिसकी कोई सीमा न हो। असीम। एक असीम सत्ता को आप झांसा नहीं दे सकते। वे आपके दिल के कण- कण से परिचित हैं। आपकी भावनाएं कैसे बदल रही हैं, वे यह भी जानते हैं। वे सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी ही नहीं, सर्व ग्याता भी हैं। वे हर जीव के अंतःकरण को अच्छी तरह जानते हैं। आप अपना संपूर्ण उन्हें समर्पित कीजिए तो वे उसी क्षण आपके सामने उपस्थित हो जाएंगे। भगवान एक ही हैं। लेकिन उनके रूप अलग- अलग हो सकते हैं। जो भक्त उन्हें माता के रूप में पूजता है उसके पास वे मां बन कर आते हैं। जो परमपिता के रूप में पूजते हैं, उसके पास उसी रूप में आते हैं। जो कृष्ण के रूप में पूजता है उसके पास कृष्ण के रूप मे और जो शिव जी के रूप में पूजता है, उसके पास शिव रूप में आते हैं। अनेक भक्त उन्हें मां काली के रूप में पूजते हैं तो वे उसी रूप में आ जाते हैं। जिसकी रही भावना जैसी।

No comments: