विनय बिहारी सिंह
भगवान ने वामन अवतार लेकर बलि से तीन पग जमीन मांगी। बालि ने सोचा कि यह बौना आदमी तीन पग चलेगा तो कितनी जमीन होगी। दे देते हैं। तभी बालि के गुरु शुक्राचार्य ने उसे चेताया- सावधान. जिसे तुम बौना आदमी समझ रहे हो, वे स्वयं भगवान कृष्ण हैं। उन्हें तीन पग जमीन मत दो। लेकिन बालि तो भगवान का अनन्य भक्त था। वह हमेशा- नारायण, नारायण कहता रहता था। इसलिए उसने वामन भगवान को तीन पग जमनीन दे दी।
भगवान ने एक पग में पाताल लोक, दूसरे पग से पृथ्वी लोक और तीसरे पग से आकाश लोक नाप लिया। यानी संपूर्ण ब्रह्मांड ही नाप लिया। अब बालि क्या करे। उसने भगवान की शरण ली। भगवान ने बालि को पाशों से बांध दिया। यह देख कर बालि के सैनिक भगवान को मारने दौड़े। बालि ने अपने सैनिकों को रोका। कहा- बेवकूफी मत करो। ये भगवान हैं। इन्हें कोई नहीं मार सकता। ये सबके स्वामी हैं। तब सैनिक जहां के तहां रुक गए। भगवान ने बालि का उद्धार कर दिया। यह कथा योगदा सत्संग के ब्रह्मचारी गोकुलानंद जी ने सुनाई। भगवान की कथा कितनी मधुर होती है। जिसने भगवान के सामने समर्पण कर दिया- हे भगवान, यह लीजिए मेरा सुख और मेरा दुख। तब भगवान भक्त के वश में हो जाते हैं। वे सदा भक्त की फिक्र करते रहते हैं। और भक्त बेफिक्र हो जाता है।
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