Saturday, February 12, 2011

ईश्वर में लय ही तो ध्यान है


विनय बिहारी सिंह

जैसे भोजन के शौकीन लोग स्वादिष्ट भोजन करते हुए आनंद में सराबोर हो जाते हैं और भोजन के बाद भी उसकी चर्चा करते नहीं अघाते, ठीक वैसे ही, भक्त, भगवान के बारे में सोचते हुए, बातें करते हुए और उनका ध्यान करते हुए तृप्त नहीं होता। वह सदा भगवान के प्रति लालायित रहता है। ध्यान का अर्थ है, ईश्वर में लय। चाहे एक मिनट के लिए ही सही, सबकुछ भूल कर ईश्वर की सोच में डूब जाना आनंददायक अनुभव है। इस एक मिनट या पांच मिनट के ईश्वरीय रस में डूबने पर आपका कोई काम हर्ज नहीं होगा। बल्कि अनंत शक्ति से संपर्क हो जाएगा और आपके जीवन में ज्यादातर सुखद घटनाएं घटित होने लगेंगी। संतों ने कहा है- जीवन में कभी भी ईश्वर से संपर्क नहीं टूटना चाहिए। चाहे आप कितनी भी परेशानी में हों, ईश्वर से गहरा नाता जोड़े रखिए। यह विश्वास जरूरी है कि वही इस दुनिया के मालिक हैं। वही हमारे भी मालिक हैं। उनका प्रेम पाने के लिए पहले अपना प्रेम उन्हें सौंपना पड़ता है। हमारे मन में किसी के भी प्रति जो प्रेम उमड़ता है, उसका कारण ईश्वर ही हैं। प्रेम तत्व के मालिक वही हैं। तो वही प्रेम अगर हम उन्हें दें तो हम प्रेम से सराबोर हो जाएंगे। इसका कारण यह है कि हम भगवान को जो कुछ भी देते हैं, वह अनंतगुना बन कर हमारे पास लौट आता है। प्रेम की बौछार से भगवान चुप रह ही नहीं सकते। उन्हें इसका जवाब देना ही पड़ता है। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- जिसने भगवान के प्रेम का अनुभव कर लिया, वह कुछ और चाहेगा ही नहीं। सिर्फ और सिर्फ उन्हीं में रमा रहेगा। इस आनंद की व्याख्या संभव नहीं है।

1 comment:

vandana gupta said...

सच कह रहे है इस आनन्द की व्याख्या नामुमकिन है……………जो डूबा उसी ने जाना।