Saturday, February 26, 2011

शरीर से पार जाना


विनय बिहारी सिंह


परमहंस योगानंद जी ने कहा है कि आप शरीर नहीं हैं। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है- जिस तरह वस्त्र पुराना होने पर मनुष्य नया वस्त्र पहनता है। ठीक उसी तरह यह शरीर पुराना हो जाने पर आत्मा इसे छोड़ देती है और नया शरीर (नया जन्म) धारण करती है। आदि शंकराचार्य ने कहा है- पुनरपि जन्मम पुनरपि मरणम, जननी जठरे पुनरपि शयनम।। बार- बार जन्म लेना और बार- बार मरना। सांसारिक प्रपंचों और दुखों में पड़ना। भगवान ने अर्जुन से कहा है- इस संसार रूपी दुख के समुद्र से बाहर निकलो। भगवान की शरण में जाओ, उन्हीं के बारे में सोचो, उन्हें ही जीवन का ध्रुवतारा बना लो। इसीलिए साधक को शरीर के पार जाना चाहिए। कैसे? यह मानना चाहिए कि वह शरीर नहीं है। आखिरकार उसे इस शरीर को इसी दुनिया में छोड़ देना पड़ेगा। परिवार के लोग इसे जला कर राख कर देंगे। हम तो आत्मा हैं। तुलसीदास ने लिखा है- ईश्वर अंश जीव अविनाशी। मनुष्य ईश्वर का ही अंश है। लेकिन अपनी भोगेच्छा के कारण इस संसार में बार- बार आता है और यहां की गंदगी में फिर कराहता है। जिस दिन उसे यह महसूस हो जाता है कि यह संसार मिथ्या है। यहां उसे प्यार करने वाला कोई नहीं। सब किसी न किसी स्वार्थ के कारण उससे जुड़े हुए हैं। वह भी किसी न किसी स्वार्थ के कारण अन्य लोगों से जुड़ा हुआ है। तब उसे भगवान की याद आती है। वह समझ जाता है कि उसके असली प्रेमी तो भगवान ही हैं। असली माता, पिता, मित्र और हितैषी तो भगवान ही हैं। तब वह भगवान की तरफ मुड़ता है। भगवान से नाता जोड़ लेने के बाद फिर उसे इस संसार के दुख नहीं व्यापते।

Wednesday, February 23, 2011

कर्ता आप नहीं हैं



विनय बिहारी सिंह


परमहंस योगानंद जी ने कहा है- यह सोचना कि आप कर्ता हैं, भ्रम है। असली कर्ता तो भगवान हैं। वे ही आपके माध्यम से काम करा रहे हैं। बांग्ला भाषा में एक भक्ति गीत है- तुमार काज तुमी करो, लोके बोले करी आमी (तुम्हारा काम तुम करती है और लोग कहते हैं कि मैं करता हूं)। यह गीत मां काली के लिए गाया जाता है। पश्चिम बंगाल में यह गीत बहुत ही लोकप्रिय है। कर्ता हम नहीं हैं। जिनका यह संसार है, वही इसके कर्ता हैं। दिन और रात वही कराते हैं। इस संसार में मनुष्य को इसलिए भेजा गया है कि वह ईश्वर में लीन हो। लेकिन हम तो माया के प्रपंच में ऐसे पड़े रहते हैं कि अपने भीतर झांकने का मौका नहीं मिलता। भीतर कितनी गंदगी या कचरा है, इसे देखना भी रोचक अनुभव है। आप ईश्वर की अराधना करते हैं तो अचानक आपके दिमाग में कोई और बात आ जाती है या कोई काम याद आने लगता है। आप हैरान रह जाते हैं कि यह क्या मैं पूजा कर रहा हूं या ध्यान कर रहा हूं और अचानक कोई अन्य बात कैसे दिमाग में आ गई। इसका अर्थ है आपका दिमाग आपके वश में नहीं है। वह आपके ऊपर हावी हो गया है। आप परतंत्र हो गए हैं। दिमाग को वश में कैसे करें? इसका एक मात्र उपाय है अभ्यास। बार- बार अभ्यास करने से आपका दिमाग उधर ही जाएगा, जिधर आप चाहेंगे। नियंत्रित मन ही ईश्वर में लीन होता है। अनियंत्रित मन तो जहां- तहां भागता रहता है। ऋषियों ने कहा है- यदि ईश्वर से नाता जोड़ा जाए तो- सर्व दुख निवृत्ति और परमानंद प्राप्ति हो जाती है। ईश्वर से संपर्क कैसे होगा? ऋषियों ने कहा है - परम भक्ति से। अपना दिल और दिमाग भगवान को समर्पित कर दीजिए। बस आपका काम हो जाएगा।

Monday, February 21, 2011

संत वामा खेपा




विनय बिहारी सिंह


पश्चिम बंगाल में संत वामा खेपा का नाम घर- घर में जाना जाता है। वे तारापीठ के सिद्ध संत थे। लेकिन शुरू में मंदिर के पुजारी उनका महत्व नहीं जानते थे। वे मां तारा (मां काली का ही एक रूप) के अनन्य भक्त थे। एक बार वे उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में जाना चाहते थे। लेकिन मां तारा ने उन्हें अनुमति नहीं दी। उन्होंने मां तारा की मूर्ति के सामने खड़े हो कर कहा- मां, मैं वाराणसी जा रहा हूं। मां तारा का मौन उत्तर नहीं आया। तब भी उन्होंने कहा- मां, एक बार जा रहा हूं वाराणसी। मां की ओर से कोई उत्तर न मिलने के बावजूद वे वाराणसी चले गए। वहां उन्हें भोजन नहीं मिला। मंदिरों में दर्शन के बाद वे तारापीठ वापस चले आए। वहां मंदिर में भोग की सामग्री रखी थी। मां तारा को भोग लगने वाला था। तभी वाराणसी से लौट कर संत वामा खेपा वहां गए। देखा कि स्वादिष्ट भोग व मिठाइयां रखी हुई हैं। वे वहां बैठ गए और बोले- मां, तुम्हारी बात नहीं मानी, शायद इसीलिए मुझे वाराणसी में भोजन नहीं मिला। अब मैं वहां नहीं जाऊंगा। मुझे भूख लगी है। ये भोग मैं खाता हूं मां। वे भोग खाने लगे। तभी पुजारी आए और उन्हें मारा- पीटा। वे वहां से हट गए और कहा- मां, मैंने तुम्हारी बात नहीं मानी, इसीलिए तुमने मुझे इन लोगों के माध्यम से पीट दिया। अब गलती नहीं करूंगा मां। लेकिन धीरे- धीरे इस संत की ख्याति बढ़ने लगी। सभी जान गए कि वे उच्चकोटि के संत हैं। वे दिन- रात मां तारा की शरण में पड़े रहते थे। एक स्थिति यह आ गई कि संत वामा खेपा का जूठन खाने के लिए लोग तरसने लगे। मां तारा को चढ़ाई गई उच्चकोटि की मिठाइयां उन्हें खाने को दी जातीं। वे कुछ खाते तो कुछ छोड़ देते थे। छोड़ी हुई चीज लोगों के लिए प्रसाद बन जाती थी। उसे पाने की होड़ लग जाती थी। लेकिन ऐसा मौका बहुत कम आता था। आमतौर पर वामाखेपा लोगों से दूर रहते थे। वे कभी- कभी ही लोगों को उपलब्ध होते थे। देश के विभिन्न हिस्सों से जो संत उनसे मिलने आते थे, उनका कहना था कि वामाखेपा दिन- रात निर्विकल्प समाधि में रहते हैं।

Saturday, February 19, 2011

सोच नकारात्मक तो दवा का असर नहीं

वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क उस हिस्से की जानकारी भी हासिल की जो इस असर को नियंत्रित करता है.

वैज्ञानिकों के एक नए अध्ययन के मुताबिक मरीज़ अगर यह मान लें कि दवा असर नहीं करेगी तो दर्द निवारक दवाओं का असर वाकई कम हो जाता है.

'साइंस ट्रांज़िशनल मेडिसिन' में छपे इस अध्ययन के मुताबिक वैज्ञानिकों ने इसके लिए ज़िम्मेदार मस्तिष्क के एक खास हिस्से की पहचान भी की है.

वैज्ञानिकों के दल का मानना है कि यह अध्ययन उन प्रयोगों को बेमानी साबित करता है जो पूरी तरह प्रयोगशाला पर आधारित होते हैं और इंसान के मनोविज्ञान को ध्यान में नहीं रखते.

वैज्ञानिकों के मुताबिक इस अध्ययन का असर मरीज़ों की चिकित्सीय देखरेख और नई दवाओं की खोज पर पड़ सकता है.

अध्ययन के तहत लंबे समय से दर्द से पीड़ित मरीज़ों को बताकर और उनकी जानकारी के बिना दर्द निवारक दवाएं दी गईं. कई मरीज़ों ने अपने मनोवैज्ञानिक अनुभव के आधार पर दवाएं न दिए जाने की स्थिति में भी दर्द कम होने और दवाएं दिए जाने की स्थिति में भी दर्द की शिकायत की.

वैज्ञानिकों के अनुसार यह दिखाता है कि जिन लोगों पर बहुत समय से दवाएं बेअसर रही हैं उनके नकारात्मक अनुभव दवाओं के प्रभाव पर असर डालते हैं.

मस्तिष्क की स्कैन के ज़रिए वैज्ञानिकों ने उस हिस्से की जानकारी भी हासिल की जो इस असर को नियंत्रित करता है.

अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों के दल का मानना है कि यह अध्ययन उन प्रयोगों को बेमानी साबित करता है जो पूरी तरह प्रयोगशाला पर आधारित होते हैं और इंसान के मनोविज्ञान को ध्यान में नहीं रखते.

(Courtesy- BBC Hindi service.)

Friday, February 18, 2011

जप कैसे करें- भाग २


विनय बिहारी सिंह


विद्वानों का कहना है कि जप करते समय एक- एक मनका को यह समझ कर फेरना चाहिए कि मैं अपने इष्ट के और करीब पहुंच रहा हूं। उनकी कृपा और ज्यादा बरस रही है। उनके प्रकाश में मैं सराबोर हो रहा हूं। इसके अलावा हृदय में गहरी पुकार होनी चाहिए। जैसे- मान लीजिए कि आप राम, राम का जप कर रहे हैं। तो हर बार राम कहते हुए आप कल्पना में खुद को राम के चरणों में बैठा महसूस करें। भगवान राम के स्पर्श का काल्पनिक अनुभव करें। धीरे- धीरे आप उनमें डूब जाएंगे। मैंने मां दुर्गा के एक भक्त को देखा है। वे जप करते हैं- जय मां, जय मां, जय मां। जप करते हुए एक समय ऐसा आता है कि वे रोने लगते हैं। जप बंद हो जाता है। बस मां दुर्गा की मूर्ति की तरफ देख रहे हैं और रो रहे हैं। फिर थोड़ी देर बाद उनकी आंखें बंद हो जाती हैं। रोना भी बंद हो जाता है। वे अचल बैठ जाते हैं। मानो उनका शरीर काठ हो गया हो। वे जैसे समाधि में चले जाते हैं। बहुत देर बाद आंखें खोलते हैं तो जैसे वे नशे में डूबे हों उस तरह दिखते हैं। यह नशा होता है दिव्य आनंद का। जगन्माता के प्रेम का।
कई भक्त माला का जप नहीं करते। वे लोग मन ही मन जप करते हैं। मन हृदय स्थान पर रहता है। ऐसे भी अनेक लोग हैं जो दिन में पांच- छह बार पांच- पांच मिनट का ही सही ध्यान या जप नहीं करते तो उनको चैन नहीं मिलता। जैसे- जप या ध्यान उन्हें खींच रहा हो। वे ठीक समय पर पांच मिनट के लिए ही सही, बैठ जाते हैं। जो ध्यान नहीं करते, वे आंखें बंद कर मन ही मन जप करते हैं। ऐसे लोग एकांत खोजते रहते हैं ताकि जप में कोई बाधा न पहुंचे। या कोई इस पर अनावश्यक टीका- टिप्पणी न करे। और ऐसा होना भी चाहिए। रामकृष्ण परमहंस कहते थे कि भगवान के प्रति अपनी भक्ति को सबके सामने प्रकट न करो। गुप्त रूप से मन ही मन उनकी अराधना करते रहो। वे तो सर्वव्यापी हैं। तुम्हारे हृदय में ही मौजूद हैं। वे जानते हैं कि तुम्हारे मन में क्या है।

Thursday, February 17, 2011

जप करने का तरीका



विनय बिहारी सिंह

विद्वानों ने कहा है कि जप करने का सही तरीका जानना बहुत आवश्यक है। हालांकि भगवान का नाम आप चाहे जैसे जपें, वे प्रसन्न होते हैं। भोजन आप खड़े होकर करें तो भी पेट ही में जाएगा और बैठ कर आराम से खाएं तो भी पेट ही में जाएगा। लेकिन बैठ कर भोजन का आनंद ही कुछ और है। ठीक इसी तरह मंत्र का एक खास तरीका अच्छा माना जाता है। इसी तरह मालाएं भी कैसी हों, यह जानकारी हो तो अच्छा है। जानकार बताते हैं कि भगवान शिव के नाम जप के लिए रुद्राक्ष की माला उत्कृष्ट मानी जाती है। भगवान विष्णु (राम, कृष्ण) के नाम जप के लिए तुलसी की माला से जप उत्तम माना जाता है। एक आदमी दिन भर में २१, ६०० बार श्वांस लेता है। यदि इसमें से आधी श्वांस यानी १०, ८०० श्वांस सांसारिक कामों में खर्च हो जाती है तो कम से कम आधी श्वांस यानी बाकी १०, ८०० श्वांस को ईश्वर के नाम जप में खर्च करनी चाहिए। इसका अर्थ यह है कि १०८ मनकों वाली माला से १०० बार नाम जप किया जाए तो अपने साथ न्याय होगा। आधी श्वांस मात्रा संसार के लिए और आधी श्वांस मात्रा भगवान के लिए। आखिर भगवान ने ही तो हमें जीने का मौका दिया है। भगवान ने यह भी मौका दिया है कि हम उनसे जप, ध्यान और पूजा- पाठ के माध्यम से संपर्क कर सकें और इस संपर्क से उपजे आनंद में सराबोर हो सकें।

Tuesday, February 15, 2011

भगवान की सर्वत्रता


विनय बिहारी सिंह

एक भक्त ने सन्यासी से पूछा- भगवान की सर्वत्रता कैसे महसूस की जा सकती है? सन्यासी ने उत्तर दिया- जैसे आकाश सर्वत्र है, हवा सर्वत्र है, उसी तरह ईश्वर सर्वत्र हैं। भक्त ने कहा- इसे महसूस कैसे करें? सन्यासी ने कहा- जब भी आप सांस लें, महसूस करें कि यह भगवान ही हैं जो मेरे फेफड़ों में जा रहे हैं और हमारा प्राण बचा रहे हैं। लेकिन एक स्थिति होती है जब आप श्वांस नहीं लेते, फिर भी जीवित रहते हैं। ऐसा योगी करते हैं। उनकी प्राण रक्षा भी भगवान ही करते हैं। यानी श्वांस में भी तुम्हीं हो और बिना श्वांस के भी तुम्हीं हो। तुम बिन और न कोई। सिर्फ एक भगवान से ही समूची सृष्टि पैदा हुई है और उन्हीं में लय होती है। मनुष्य तो कुछ नहीं है। भगवान जब तक इच्छा होती है, मनुष्य के फेफड़ों में श्वांस रखते हैं और जब समय पूरा हो जाता है तो उसे वापस बुला लेते हैं। जिसने जन्म लिया है, उसका मरना तय है। लेकिन कई लोग समझते हैं कि यह जीवन उन्हें सदा के लिए मिल गया है। वे तमाम तरह के तनाव लेकर जीते हैं। सिर धुनते रहते हैं। अंत में अपनी देह छोड़ कर चले जाते हैं, फिर दूसरा जन्म लेने। दूसरे शरीर, नाम, कुल आदि धारण करने। फिर नई समस्याएं, नए तनाव। संतों ने कहा है- आप ईश्वर की शरण में रहिए। तब आप शांति और सुख का अनुभव करेंगे। हरि शरणम, हरि शरणम। वही सत्य हैं। वही हमारे अपने हैं। लेकिन हम भगवान को छोड़ कर न जाने किस- किस चीज के पीछे भागते हैं। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है- हे अर्जुन, इस संसार रूपी दुख के समुद्र से निकलो। यानी संसार दुखों की खान है। जो लोग संसार में सुख ढूंढ़ते हैं, उन्हें इसलिए निराशा होती है कि यहां तो सुख है ही नहीं तो मिलेगा कहां से? सुख तो भगवान में है।

Monday, February 14, 2011

रामकृष्ण परमहंस की दिल को छूने वाली बातें



विनय बिहारी सिंह

रामकृष्ण परमहंस एक कथा कहते थे। कथा है- एक आदमी कहीं नौकरी करता था। घर से दूर वह शहर में अकेले रहता था। उसके घर से चिट्ठी आई। जब तक वह चिट्ठी खोल कर पढ़ता, वह चिट्ठी कहीं गुम हो गई। बहुत खोजी गई। अंत में वह मिली। उसमें लिखा था- तीन धोती, दो किलो संदेश और मां और बच्चों के लिए कपड़े भेज दीजिए। चिट्ठी की बात जान लेने के बाद उसने चिट्ठी एक ओर रख दी। अब चिट्ठी का क्या काम। उसने सामान खरीदा और घर भेज दिया। रामकृष्ण परमहंस यह कथा सुना कर कहते थे- यही हाल भक्त का होता है। वेद- शास्त्रों की तभी तक जरूरत है जब तक कि भगवान के होने का अनुभव नहीं होता, भगवान का दर्शन नहीं होता। एक बार यह हो गया तो वेद- शास्त्रों को पढ़ने की जरूरत नहीं पड़ती। उनके कहने का अर्थ यह था कि भक्त सिर्फ वेद- शास्त्रों के अध्ययन में ही न व्यस्त रहे। साधना भी करे। ध्यान भी करे। भगवान से नाता जोड़ने वाले सारे उपाय करे। चाहे वह जप हो, पूजा हो, प्रार्थना हो, ध्यान हो या कीर्तन हो, भगवान का गहराई से स्मरण हो। जो कुछ भी हो.... बस भगवान के लिए हो। तब आपको प्रत्यक्ष भगवान का अनुभव होगा। रामकृष्ण परमहंस ने कभी वेदों का अध्ययन नहीं किया। वे अपने गुरु से वेदों का सार सुन लेते थे। बस उसी के अनुसार साधना में जुट जाते थे। वे कहते थे- गीता क्या है? दस बार गीता, गीता कहो तो लगेगा त्यागी, त्यागी कह रहे हो। गीता का सार ही है संसारी वस्तुओं का त्याग। ये संत वेद- शास्त्रों का महत्व जानते थे। लेकिन वे चाहते थे कि भक्त सिर्फ उन्हें पढ़ कर ही संतुष्ट न हो जाए। वह साधना भी करे।

Saturday, February 12, 2011

ईश्वर में लय ही तो ध्यान है


विनय बिहारी सिंह

जैसे भोजन के शौकीन लोग स्वादिष्ट भोजन करते हुए आनंद में सराबोर हो जाते हैं और भोजन के बाद भी उसकी चर्चा करते नहीं अघाते, ठीक वैसे ही, भक्त, भगवान के बारे में सोचते हुए, बातें करते हुए और उनका ध्यान करते हुए तृप्त नहीं होता। वह सदा भगवान के प्रति लालायित रहता है। ध्यान का अर्थ है, ईश्वर में लय। चाहे एक मिनट के लिए ही सही, सबकुछ भूल कर ईश्वर की सोच में डूब जाना आनंददायक अनुभव है। इस एक मिनट या पांच मिनट के ईश्वरीय रस में डूबने पर आपका कोई काम हर्ज नहीं होगा। बल्कि अनंत शक्ति से संपर्क हो जाएगा और आपके जीवन में ज्यादातर सुखद घटनाएं घटित होने लगेंगी। संतों ने कहा है- जीवन में कभी भी ईश्वर से संपर्क नहीं टूटना चाहिए। चाहे आप कितनी भी परेशानी में हों, ईश्वर से गहरा नाता जोड़े रखिए। यह विश्वास जरूरी है कि वही इस दुनिया के मालिक हैं। वही हमारे भी मालिक हैं। उनका प्रेम पाने के लिए पहले अपना प्रेम उन्हें सौंपना पड़ता है। हमारे मन में किसी के भी प्रति जो प्रेम उमड़ता है, उसका कारण ईश्वर ही हैं। प्रेम तत्व के मालिक वही हैं। तो वही प्रेम अगर हम उन्हें दें तो हम प्रेम से सराबोर हो जाएंगे। इसका कारण यह है कि हम भगवान को जो कुछ भी देते हैं, वह अनंतगुना बन कर हमारे पास लौट आता है। प्रेम की बौछार से भगवान चुप रह ही नहीं सकते। उन्हें इसका जवाब देना ही पड़ता है। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- जिसने भगवान के प्रेम का अनुभव कर लिया, वह कुछ और चाहेगा ही नहीं। सिर्फ और सिर्फ उन्हीं में रमा रहेगा। इस आनंद की व्याख्या संभव नहीं है।

Thursday, February 10, 2011

हम कौन हैं कहने वाले कि भगवान क्या करें?



विनय बिहारी सिंह


कई बार हम भगवान को मन ही मन सुझाव देने लगते हैं कि वे ऐसा करें, वैसा करें। यह मनुष्य का बचपना है। भगवान तो सर्वशक्तिमान और सर्व ग्याता और सर्वव्यापी हैं। उन्हें यह बताने की क्या जरूरत है कि वे क्या करें? वे चाहे जो करेंगे, होगा तो हमारा ही फायदा। वे माता- पिता हैं। सखा हैं। उनसे बढ़ कर हमारा है ही कौन? भगवान क्या करेंगे, यह हमारे हाथ में नहीं है। हमारी क्षमता भी नहीं है कि हम उन्हें सुझाव दे सकें। हमारे हाथ में सिर्फ प्रार्थना है, जप है, ध्यान या धारणा है। बाकी सब उनके हाथ में है। हम सिर्फ भक्ति कर सकते हैं। हम अगर भक्त की सही भूमिका निभाएंगे तो भगवान अपनी भूमिका स्वतः निभाएंगे। उन्हें कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है। वे तो पूरे ब्रह्मांड के मालिक हैं। वे एक-एक जीव के अंतःकरण से अच्छी तरह परिचित हैं। इसलिए हमें भगवान को राय देनी बंद करनी चाहिए। हमें यह नहीं कहना चाहिए कि हे भगवान हमारा यह काम अटका पड़ा है, इसे इस तरीके से कीजिए। वे आपका काम करेंगे, लेकिन अपने तरीके से। आप कौन होते हैं उन्हें तरीका बताने वाले? वे सब जानते हैं। आपका भला जिसमें होगा, वे वही करेंगे। इसलिए सिर्फ भक्ति करना ही हमारे हाथ में है। बाकी सब भगवान के हाथ में है। वे जैसा चाहे करें। हर हाल में वे हमारा भला ही करेंगे।

Wednesday, February 9, 2011

'भारत में 2030 में 36 फ़ीसदी मौतें हृदय रोग से'

दिल

रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशियाई लोगों में औसतन पहला दिल का दौरा 53 साल की उम्र में होता है

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत समेत दक्षिण एशिया एक बड़े स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक उन लोगों की संख्या ख़ासी बढ़ रही है जो हृदय रोग, मधुमेह और मोटापे जैसी बीमारियों से ग्रस्त हैं.

विश्व बैंक की रिपोर्ट में पाया गया है कि पूरे दक्षिण एशिया में 55 प्रतिशत मौतें असंक्रामक बीमारियों के कारण हो रही हैं.

'दक्षिण एशिया में असंक्रामक रोगों का सामना' के शीर्षक से बनी रिपोर्ट में दक्षिण एशियाई क्षेत्र में 15 से 69 वर्ष के लोगों में हृदय रोग को मृत्यु का मुख्य कारण बताया गया है.

ये रिपोर्ट बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, मालदीव और श्रीलंका में अध्ययन के बाद तैयार की गई है.

छह साल पहले दिल का दौरा

अनुमान लगाया गया है कि भारत में वर्ष 2030 में होने वाली मौतों का मुख्य कारण हृदय रोग होगा और 36 प्रतिशत मौतें इसके कारण होंगी.

ये स्थिति ग़रीब लोगों के लिए ज़्यादा चिंताजनक है क्योंकि हृदय रोग के बाद ये लोग पूरी ज़िंदगी बीमारी से जुझते हुए गुज़ारते हैं और इसका ख़र्चा अपनी बचत से या फिर संपत्ति को बोचकर निकालते हैं और फिर पूरी तरह से ग़रीबी के जाल में फँस जाते हैं

विश्व बैंक के जनस्वास्थ्य विशेषज्ञ

विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशियाई लोगों में, अन्य लोगों के मुकाबले, पहला दिल का दौरा छह साल पहले होता है.

ये भी पता चला है कि इस क्षेत्र में कुल बीमारी और इससे संबंधित मृत्यु और विकलांगता में लगभग 55 प्रतिशत असंक्रामक रोगों के कारण है.

विश्व बैंक के वरिष्ठ जनस्वास्थ्य विशेषज्ञ माइकल एंजलगाव के अनुसार, "ये स्थिति ग़रीब लोगों के लिए ज़्यादा चिंताजनक है क्योंकि हृदय रोग के बाद ये लोग पूरी ज़िंदगी बीमारी से जुझते हुए गुज़ारते हैं और इसका ख़र्चा अपनी बचत से या फिर संपत्ति को बोचकर निकालते हैं और फिर पूरी तरह से ग़रीबी के जाल में फँस जाते हैं."

ग़ौरतलब है कि विश्व बैंक ने सभी आठ देशों से अपील की है कि वे इन ख़तरों का सामना करने के लिए समान राय अपनाएँ.

धूम्रपान, कैंसर की समस्या

संस्था के अनुसार यदि धूम्रपान की ओर समान रुख़ नहीं अपनाया जाता तो ये नुक़सानदेह हो सकता है. ग़ौरतलब है कि भारत में पुरुषों में 20 प्रतिशत मौतें धूम्रपान से संबंधित होती हैं.

रिपोर्ट के अनुसार भारत में उच्च रक्तचाप (हाइपर-टेंशन) से ग्रस्त लोगों की संख्या वर्ष 2000 में 11.82 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2025 में 21.35 करोड़ हो जाएगी.

विश्व बैंक के अनुसार भारत में कैंसर के 70 प्रतिशत मामलों की पहचान तब होती है जब बीमारी ख़ासी बढ़ चुकी होती है और इन लोगों को बचाना मुश्किल होता है. इस संस्था के अनुसार दक्षिण एशिया में औसत आयु 64 साल है और लोग ज़्यादा साल जीवित तो रहते हैं लेकिन बेहतर स्थितियाँ, खाना, आमदन, स्वास्थ्य सुविधाएँ जो विकसित देशों में उपलब्ध हैं वो अनेक लोगों को इस क्षेत्र उपलब्ध नहीं हैं.

(courtesy- BBC Hindi service)

Tuesday, February 8, 2011

भगवान का वामन अवतार



विनय बिहारी सिंह


भगवान ने वामन अवतार लेकर बलि से तीन पग जमीन मांगी। बालि ने सोचा कि यह बौना आदमी तीन पग चलेगा तो कितनी जमीन होगी। दे देते हैं। तभी बालि के गुरु शुक्राचार्य ने उसे चेताया- सावधान. जिसे तुम बौना आदमी समझ रहे हो, वे स्वयं भगवान कृष्ण हैं। उन्हें तीन पग जमीन मत दो। लेकिन बालि तो भगवान का अनन्य भक्त था। वह हमेशा- नारायण, नारायण कहता रहता था। इसलिए उसने वामन भगवान को तीन पग जमनीन दे दी।
भगवान ने एक पग में पाताल लोक, दूसरे पग से पृथ्वी लोक और तीसरे पग से आकाश लोक नाप लिया। यानी संपूर्ण ब्रह्मांड ही नाप लिया। अब बालि क्या करे। उसने भगवान की शरण ली। भगवान ने बालि को पाशों से बांध दिया। यह देख कर बालि के सैनिक भगवान को मारने दौड़े। बालि ने अपने सैनिकों को रोका। कहा- बेवकूफी मत करो। ये भगवान हैं। इन्हें कोई नहीं मार सकता। ये सबके स्वामी हैं। तब सैनिक जहां के तहां रुक गए। भगवान ने बालि का उद्धार कर दिया। यह कथा योगदा सत्संग के ब्रह्मचारी गोकुलानंद जी ने सुनाई। भगवान की कथा कितनी मधुर होती है। जिसने भगवान के सामने समर्पण कर दिया- हे भगवान, यह लीजिए मेरा सुख और मेरा दुख। तब भगवान भक्त के वश में हो जाते हैं। वे सदा भक्त की फिक्र करते रहते हैं। और भक्त बेफिक्र हो जाता है।

Monday, February 7, 2011

राम नाम का जप



विनय बिहारी सिह


महामंत्र क्या है? एक भक्त ने संत से पूछा। संत ने उत्तर दिया- महामंत्र है- हरे राम, हरे राम, राम, राम हरे, हरे। हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण हरे, हरे।। भक्त ने पूछा- इसके जाप से क्या होता है? संत ने कहा- इसके जाप से मनुष्य की सारी भव बाधाएं दूर हो जाती हैं। मनुष्य पर भगवद्कृपा होती है। भक्त ने पूछा- क्या भगवान बिना जाप के प्रसन्न नहीं होते? संत ने कहा- होते हैं। लेकिन नाम जप से जप करने वाले का लाभ होता है। इसलिए जप भगवान तक पहुंचने का सुगम मार्ग है। भगवान तो संपूर्ण हैं। उन्हें किसी चापलूसी की जरूरत नहीं है। नाम जप का अर्थ चापलूसी करना नहीं है। बल्कि नाम जप का अर्थ है- स्वयं की शुद्धि। मनुष्य के बुरे कर्म नष्ट हो जाते हैं। ईश्वर की कृपा बरसने लगती है। जप करने वाले मनुष्य का कल्याण होता है। महामंत्र जप कर न जाने कितने लोगों का उद्धार हुआ। लेकिन हां, यह जप दिल से करना चाहिए। यह मान कर कि आपका जप भगवान सुन रहे हैं और यह भी देख रहे हैं कि आपका मन जप में है या नहीं। मशीन की तरह जप करने का कोई फल नहीं होता। इस तरह तो तोता भी राम- राम रट सकता है। इस जप में गहरे भक्ति भाव का होना बहुत जरूरी है।

Thursday, February 3, 2011

एक उत्सुक भक्त का प्रश्न



विनय बिहारी सिंह

एक उत्सुक भक्त ने एक सन्यासी से पूछा- ईश्वर भक्तों को लंबा इंतजार क्यों कराते हैं जबकि वे सहज ही दर्शन दे सकते हैं? इस पर सन्यासी ने कहा- तो फिर भक्त को आनंद ही क्या आएगा? वे तो भक्त की तड़प को देखना चाहते हैं। वे जब तक यह नहीं जान लेंगे कि भक्त को किसी भी भौतिक चीज से ज्यादा भगवान की चाहत है, तब तक वे क्यों दर्शन दें? आखिर वे समूचे ब्रह्मांड के स्वामी हैं। उन्हें अनंत भगवान कहा जाता है। अनंत यानी जिसकी कोई सीमा न हो। असीम। एक असीम सत्ता को आप झांसा नहीं दे सकते। वे आपके दिल के कण- कण से परिचित हैं। आपकी भावनाएं कैसे बदल रही हैं, वे यह भी जानते हैं। वे सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी ही नहीं, सर्व ग्याता भी हैं। वे हर जीव के अंतःकरण को अच्छी तरह जानते हैं। आप अपना संपूर्ण उन्हें समर्पित कीजिए तो वे उसी क्षण आपके सामने उपस्थित हो जाएंगे। भगवान एक ही हैं। लेकिन उनके रूप अलग- अलग हो सकते हैं। जो भक्त उन्हें माता के रूप में पूजता है उसके पास वे मां बन कर आते हैं। जो परमपिता के रूप में पूजते हैं, उसके पास उसी रूप में आते हैं। जो कृष्ण के रूप में पूजता है उसके पास कृष्ण के रूप मे और जो शिव जी के रूप में पूजता है, उसके पास शिव रूप में आते हैं। अनेक भक्त उन्हें मां काली के रूप में पूजते हैं तो वे उसी रूप में आ जाते हैं। जिसकी रही भावना जैसी।

Wednesday, February 2, 2011

'ऑक्सीटोसिन से पैदा होता है विद्वेष'

गाय को दूहना

भारत में ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल प्रतिबंधित है

नीदरलैंड में एम्सर्टडम विश्विद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर दुधारू पशु से ज्यादा दूध लेने के लिए उसे 'ऑक्सीटोसिन' का इंजेक्शन दिया जाए तो उस दूध का सेवन करनेवाले में कई विकार पैदा हो सकते हैं.

शोध के मुताबिक़ इस तरह के दूध के सेवन से अपने समुदाय और जाति को दूसरे से श्रेष्ठ समझने का भाव बलवती होता है.

ये शोध हाल में अमरीकन एसोसिएशन ऑफ़ एडवांसमेंट ऑफ़ साइंस की पत्रिका 'प्रोसीडिंग्स नेशनल अकेडमी ऑफ़ साइंस' में प्रकाशित हुआ है.

भारत में कई स्थानों पर दूध विक्रेता और पशुपालक अपने मवेशियों में दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए नियमित तौर पर ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन का इस्तेमाल करते हैं.

नरपत शेखावत कहते हैं, ''मुझे लगता है हाल के वर्षो में जातीय विवाद और द्वंद जिस स्तर पर उभरा है उसमें इस तरह के दूध के इस्तेमाल ने मदद की होगी इस बात से पूरी तरह से इनकार नहीं किया जा सकता है.''

अब तक ऑक्सीटोसिन को ऐसा रसायन माना जाता था जो जानवरों में अपने बछड़े के प्रति प्रेम का भाव का पैदा करता है जिससे उसे ज़्यादा दूध उतरता था.

लेकिन अब शोधकर्ताओं ने एक नई बात पाई है कि जहाँ ये अपने समुदाय के भीतर एक दूसरे के प्रति प्रेम और विश्वास को बढ़ावा देता है वहीं दूसरे समुदायों और जातियों के प्रति अविश्वास का भाव का निर्माण करता है.

शोध के अनुसार दूसरे समुदायों के प्रति पूर्वाग्रह की धारणा उत्पन्न होने से जातीय झगडे़ बढ़ सकते हैं.