Wednesday, January 19, 2011

ऋषि दधीचि का त्याग




विनय बिहारी सिंह

ऋषि दधीचि उच्च कोटि के उन ऋषियों में गिने जाते हैं जिन्होंने मानव कल्याण के लिए ही जीवन जीया। कथा है कि एक बार देवताओं के राजा इंद्र को असुर वृत्र ने स्वर्ग से बाहर कर दिया। इंद्र तत्काल भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान शिव ने कहा कि इस समस्या का समाधान भगवान विष्णु ही कर सकते हैं। भगवान शिव, इंद्र को लेकर विष्णु भगवान के पास पहुंचे। तब विष्णु जी ने कहा- पृथ्वी पर एक महान ऋषि है- दधीचि। उनकी हड्डियों से बने वज्र से ही वृत्र का वध हो सकता है क्योंकि उसे वरदान मिला हुआ है कि उसका वध किसी भी धातु, पत्थर या काठ इत्यादि के हथियार से नहीं हो सकता। तब ये देवता ऋषि दधीचि के पास पहुंचे और अपनी व्यथा सुनाई। कहा कि इंद्र जब तक स्वर्ग का राज्य दुबारा नहीं पा लेते, वहां सभी व्याकुल रहेंगे। आप अपनी हड्डियां हमें दे दीजिए ताकि हम उससे वज्र बना सकें। दधीचि अपना शरीर छोड़ने को तैयार हो गए। लेकिन उन्होंने कहा कि वे शरीर छोड़ने से पहले पृथ्वी की सभी पवित्र नदियों में स्नान कर लेना चाहते हैं। इसके लिए मुझे समय दिया जाए। तब इंद्र को लगा कि इसमें तो बहुत समय लगेगा। उन्होंने सारी नदियों को नैमिषारण्य में, जहां दधीचि रहते थे, बुला लिया। वहां सारी नदियां एक साथ मिल कर बहने लगीं। ऋषि दधीचि ने आनंदपूर्वक सभी पवित्र नदियों में स्नान किया और फिर योग के द्वारा अपना शरीर त्याग दिया। देवताओं ने उनकी रीढ़ की हड़्डी से वज्र बनाया और असुर वृत्र का वध किया।
विद्वानों का कहना है कि यह सांकेतिक कथा है। दरअसल रीढ़ की हड्डी में स्थित सुषुम्ना को प्रतीक बना कर संकेत में यह कहानी कही गई है। सुषुम्ना जब जाग्रत होती है तो मनुष्य के जीवन की सारी बाधाएं अपने आप नष्ट हो जाती हैं। और सुषुम्ना ध्यान, जप, प्रार्थना और ईश्वर के प्रति गहरी भक्ति से जाग्रत होती है।

1 comment:

Anonymous said...

ye pahle aise rishi the jinki hadiyeo se teen bajra bane
1 shiv ji ke pas hai
2 indra dev ke pas
3arjun ke pas