विनय बिहारी सिंह
सभी ऋषियों ने कहा है कि शरीर और इंद्रियों से मोह माया जाल में फंसाता है। कैसे? जिस चेहरे को हम शीशे में देख कर अच्छा महसूस करते हैं, वह एक दिन बूढ़ा हो जाएगा। झुर्रियां पड़ जाएंगी और एक दिन यह शरीर छोड़ कर जाना पड़ेगा। हम चाहें या न चाहें, यह शरीर तो एक न एक दिन छोड़ना ही है। तो फिर इससे अतिरिक्त मोह क्यों? यह बातचीत चल ही रही थी कि एक भक्त बोले- तो क्या शरीर की परवाह ही न करें? तब एक सन्यासी ने कहा- जरूर करें। समय से पौष्टिक खाना खाएं। जलपान करें। बीमार पड़ने पर चिकित्सा करें। शरीर की रक्षा तो बहुत आवश्यक है। यह शरीर भगवान का मंदिर कहा गया है। लेकिन हां, इससे अतिरिक्त मोह न करें। यह भी दिमाग में रखिए कि यह शरीर नश्वर है। एक दिन यह हमारा साथ छोड़ देगा। हमारे चाहने और न चाहने से कुछ नहीं होगा। जो होना है, वही होगा।
सन्यासी ने वहां मौजूद सारे लोगों की आंखें खोल दीं। सच ही तो है। यह शरीर हर रोज पुराना हो रहा है। यह हमारा होकर भी हमारा नहीं है। तो हमारा कौन है? सन्यासी कहते हैं- हमारे अपने भगवान हैं। वे हमें हर परिस्थिति में प्यार करते हैं। हमारी रक्षा करते हैं। उनसे प्यार करने का अर्थ है- सदा के लिए निश्चिंत हो जाना।
क्योंकि वही हमारे माता, पिता, मित्र और सदा के लिए हितैषी हैं। कहा भी गया है- त्वमेव माता च पिता त्वमेव.......
अंत में कहा गया है- त्वमेव सर्वं मम देव देव। यानी हे भगवान, आप ही सबकुछ हैं। फिर भी दुनिया में कई लोग भगवान के लिए दो मिनट का समय नहीं निकाल पाते।
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