Friday, January 28, 2011

जिनका हृदय शुद्ध नहीं है



विनय बिहारी सिंह


रामकृष्ण परमहंस कहते थे- जिनका हृदय शुद्ध नहीं है, उन्हें विश्वास ही नहीं होता कि भगवान हैं। भगवान के होने का अनुभव तो वही कर सकता है जिसका हृदय निर्मल हो। एक सच्चा भक्त सूर्योदय की घटना को भी भगवान की उपस्थिति मानता है। चांद- तारों को ईश्वर की अद्भुत सृष्टि मानता है। हम कुछ वर्षों के लिए इस पृथ्वी पर आए हैं। हमें किसने भेजा है? ईश्वर ने। क्यों? क्योंकि हमारे भीतर की सांसारिक कामनाएं धधक रही थीं। हम फिर पृथ्वी पर आने को बेचैन थे। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है- यह संसार दुख का समुद्र है। अर्जुन तुम इससे बाहर निकलो। कैसे? भगवान ने गीता में इसी को बताया है। रामकृष्ण परमहंस कहते थे- संसार में रहना है तो वैराग्य का तेल लगा कर रहो। जैसे कटहल काटने के पहले मनुष्य हाथ में तेल लगा लेता है ताकि उसको काटने से निकला चिपचिपा द्रव हाथ में न चिपके। वे कहते थे यह चिपचिपा द्रव ही मायाजाल है। संसार में रहना है तो यह हमेशा याद रखना होगा कि इस संसार में हमें सावधान रहना बहुत जरूरी है। संसार में आनंद का कोई स्थान नहीं है। आनंद सिर्फ ईश्वर में ही है। बाकी आनंद मिथ्या है। धोखा देने वाला। ईश्वर हमें हर पल देख रहे हैं। वे हमारी समीक्षा कर रहे हैं। हमारे कर्म संचित हो रहे हैं। क्यों न हम ईश्वर से प्रार्थना करते रहें कि प्रभु, हमें रास्ता दिखाइए। हमें शुभ काम ही करने की प्रेरणा दीजिए। हम जैसी आदत बना लेंगे, वैसे ही बन जाएंगे। हमेशा ईश्वर में जीने का अर्थ है सदा आनंद में रहना। ईश्वरीय सुरक्षा में रहना।

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