Monday, January 17, 2011

हम परदेसी पंछी बाबा



विनय बिहारी सिंह


ऋषियों ने कहा है कि यह संसार हमारा परदेस है। सराय है। धर्मशाला है। हम यहां कुछ दिनों के लिए आए हैं। हमारा असली घर भगवान के पास है। भगवान ही हमारे माता- पिता हैं। हम संसार में अपनी इच्छाओं के कारण आए हैं। जिस दिन हम इच्छा शून्य हो जाएंगे और भगवान को अपनी आंतरिक श्रद्धा से पुकारेंगे, वे हमें अपने धाम का सुख देंगे। आखिर पुत्र या पुत्री की पुकार वे कैसे नहीं सुनेंगे? एक संत ने कहा है- हम परदेसी पंछी बाबा, अणी देस यह नहीं। यानी यह संसार हमारा नहीं हैं। लेकिन हम लोग संसार के माया- मोह में इस कदर फंस जाते हैं कि भगवान को ही भूल जाते हैं। जिसने हमें इस संसार में भेजा, उसे भूल कर हम तरह- तरह के प्रपंच में व्यस्त हो जाते हैं। इसीलिए ऋषियों ने कहा है कि आप घर परिवार करिए। बच्चों और पति या पत्नी से प्रेम करिए लेकिन संसार में आसक्त मत होइए। संसार में रहिए लेकिन संसार का होकर मत रहिए। भगवान का होकर रहिए। एक संत ने तो यहां तक कहा कि आप किसे अपना कह रहे हैं। जिसे आपने सघन रिश्ता बनाया है, वह भी यह संसार छोड़ कर जाएगा। इसलिए भगवान से सघन रिश्ता बनाइए जो कभी नहीं टूटता, कभी नहीं खत्म होता। चाहे मृत्यु ही क्यों न हो जाए, भगवान हमेशा हमारे साथ बने रहते हैं। यही भगवान की लीला है। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- भगवान आपके ऊपर खुद को थोपना नहीं चाहते। वे डिक्टेटर नहीं हैं। वे तो चाहते हैं कि मनुष्य खुद अपनी इच्छा से उन्हें प्रेम करे। वे जबरदस्ती प्रेम क्यों करवाएं? लेकिन हां, जब हमारे हृदय में उनके प्रति प्रेम जागता है और बढ़ने लगता है तो वे हमारे हृदय में खुद को प्रकट करते हैं। वे तो सदा से हमारे हृदय में मौजूद हैं। लेकिन हम उन्हें महसूस नहीं करते। बस एक मात्र प्रेम ही है जो भगवान को भक्त के वश में कर देता है। इसीलिए कबीरदास ने कहा- पोथी पढ़ि- पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का पढ़े से पंडित होय।।

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