Saturday, January 15, 2011

आपके जीवन में ढेर सारी खुशियां आएं

विनय बिहारी सिंह



आप सबको मकर संक्रांति पर ढेर सारी शुभकामनाएं। आपके जीवन में ढेर सारी खुशियां आएं और आप नित नवीन आनंद का अनुभव करें। मित्रों, मैं उत्तर प्रदेश के अपने गांव में गया था। इसीलिए आपसे नियमित मुलाकात नहीं हो पाती थी। वहीं एक संत की समाधि का दर्शन हुआ। इस समाधि पर मैं बचपन में जाया करता था। आज उन्हीं के बारे में चर्चा हो। समाधि पर एक विराट बरगद का पेड़ उग आया है। इस पेड़ को अत्यंत पवित्र माना जाता है। नाम है- माया बाबा। माया बाबा, सांसारिक माया जाल की बातें करते रहते थे, इसलिए ग्रामीणों ने उनका नाम माया बाबा रख दिया। वे अत्यंत सिद्ध संत थे। आज से पचास साल पहले इस पवित्र पेड़ के बगल से गुजरने वाली सड़क (जो जिला मुख्यालय जाती है) रात को अत्यंत सुनसान हो जाती थी। रात को कोई वाहन उपलब्ध नहीं था। जिनको अर्जेंट काम होता था, वे लोग पैदल जिला मुख्यालय से अपने गांव इसी रास्ते लौटते थे। मैंने स्वयं कुछ लोगों के मुंह से घटनाएं सुनी हैं। उनमें से एक ही घटना की चर्चा यहां पर्याप्त होगी। एक व्यापारी जिला मुख्यालय गया हुआ था। वह भगवान शिव का गहरा भक्त था। वहां रात को उसे खबर मिली कि उसकी पत्नी की तबियत खराब है। व्यापारी तत्क्षण गांव के लिए रवाना हो गया। उसके पास काफी रुपए थे। जब वह आधा रास्ता पार कर चुका तो उसके मन में भूत- प्रेत का डर समा गया। वह डर कर धीरे- धीरे चलने लगा। तभी उसने पीछे से एक बहुत मीठी आवाज सुनी- कहां जा रहे हो बेटा? वह डर से कांपते हुए पीछे मुड़ा। उसने देखा- एक दिव्य संत उसकी ओर चले आ रहे हैं। पता नहीं क्यों, उस संत को देख कर व्यापारी के मन का डर बिल्कुल खत्म हो गया। व्यापारी संत को बताया कि वह अपने घर जा रहा है और उसकी पत्नी बहुत बीमार है। संत ने कहा- चलो मैं तुम्हें पहुंचा देता हूं। तुम चिंता मत करो। तुम्हारी पत्नी सात दिनों तक बीमार रहेगी। आठवें दिन वह बिल्कुल स्वस्थ हो जाएगी। लेकिन इस बीच उसे बहुत पीड़ा होगी। तुम घबराना नहीं। संत ने उस व्यापारी को उसके घर तक पहुंचा दिया। व्यापारी संत का आभार प्रदर्शन करने के लिए पीछे मुड़ा तो देखा कि वे गायब हो चुके हैं। सुबह उसने लोगों को यह घटना सुनाई। लोगों ने कहा- वे माया बाबा थे। तुम शिव जी के अच्छे भक्त हो। इसीलिए तुम्हें उनकी सुरक्षा मिल गई।
ऐसी घटनाएं और भी हैं। लेकिन माया बाबा उन्हीं का मदद करते थे, जो ईश्वर प्रेमी थे। जो प्रपंची लोग थे, उनको वे दर्शन कभी नहीं देते थे। मैं बचपन में जब भी इस बरगद के पेड़ के पास जाता था- मेरे मन में गहरी श्रद्धा होती थी। आज भी वह श्रद्धा जस की तस है। आज भी वहां लोग पूजा- पाठ करने जाते हैं। लेकिन इन घटनाओं को बताने वाले बुजुर्ग अब इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन माया बाबा का स्थान हमेशा की तरह शांति, प्रेम और भक्ति का संदेश दे रहा है।

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