Friday, January 21, 2011

ईश्वर का संगीत



विनय बिहारी सिंह


ईश्वर का संगीत सुनने वाले कम लोग हैं। ज्यादातर लोग शोर- गुल वाला संगीत सुन रहे हैं। इनमें से कुछ मजबूरी में सुन रहे हैं क्योंकि कोई विकल्प नहीं है और कुछ शौकिया सुन रहे हैं क्योंकि शोर- गुल उन्हें पसंद है। ईश्वर का संगीत क्या है? ईश्वर का संगीत है- ओउम या ओम। किसी शांत जगह जाइए और गहरे मौन में उतरिए। यह ओम अपने आप सुनाई देगा। ईश्वर हमारे भीतर यह संगीत लगातार उतार रहे हैं लेकिन हमारा चंचल दिमाग इसे ग्रहण नहीं कर पा रहा है। जिस दिन हमारा दिमाग शांत होगा- ईश्वर का यह मधुर ओम संगीत हमें सुनाई देने लगेगा।
गीता में भी भगवान कृष्ण ने कहा है कि जो व्यक्ति इंद्रियातीत हो कर अपने भीतर उतरता है, वह ईश्वर को पाता है। भगवान ने अर्जुन से कहा है- मैं सबके हृदय में रहता हूं। जिनके हृदय में कूड़ा- करकट भरा है, वे भगवान को कष्ट दे रहे हैं। वहां कूड़ा के बजाय श्रद्धा, भक्ति और प्रेम होना चाहिए। कूड़ा- करकट का अर्थ है- ईर्ष्या, काम और अन्य कुप्रवृ्त्तियां। जो २४ घंटे में क्षण भर भी रुक कर भगवान को याद नहीं करता, उसका जीना व्यर्थ का जीना है। जिनकी कृपा से हम सांस ले रहे हैं, उन्हें एक क्षण भी याद न रखना कितनी कृतघ्नता है? ईश्वर हमसे अनन्य प्रेम करते हैं। इसीलिए हमारे हृदय में रहते हैं लेकिन हम हैं कि उन्हें महसूस ही नहीं करते। उन्होंने साफ- साफ कहा है- मैं मनुष्य के हृदय में रहता हूं अर्जुन। उन्होंने यह भी कहा है- तुम मेरी शरण में रहो, मेरा भक्त बनो, मुझे प्रणाम करो। तुम्हारा उद्धार हो जाएगा। भगवान ने इतना साफ- साफ कहा है लेकिन फिर भी हम उनके प्रति आकर्षित नहीं होते तो दोष किसका है?